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लोकपाल को हरी झंडी

लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार लोकपाल साकार होने वाला है। भ्रष्टाचार से जुडे़ मामलों के निपटारे के लिए एक मुहिम छेड़ी गई थी, जिसका नेतृत्व अन्ना हजारे ने किया था और उनके साथी व कई बड़ी-छोटी हस्तियां...

लोकपाल को हरी झंडी
हिन्दुस्तानTue, 19 Mar 2019 12:01 AM
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लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार लोकपाल साकार होने वाला है। भ्रष्टाचार से जुडे़ मामलों के निपटारे के लिए एक मुहिम छेड़ी गई थी, जिसका नेतृत्व अन्ना हजारे ने किया था और उनके साथी व कई बड़ी-छोटी हस्तियां उसमें शामिल हुई थीं। इस आंदोलन के तहत सरकार से अपील की गई थी कि जितनी जल्दी हो, लोकपाल को साकार किया जाए। बहरहाल, लोकपाल का अब तक का सफर सभी राजनीतिक दलों की मंशा पर प्रश्न चिह्न लगाता है। सभी दल हर बार अपने घोषणा-पत्र में भ्रष्टाचार को हटाने की बात तो करते हैं, लेकिन अब तक वे संजीदा नहीं दिखे। एक तरफ, हम दुनिया में भारत को सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था कहते हैं, वहीं दूसरी तरफ देश में भ्रष्टाचार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। वैसे देखा जाए, तो भ्रष्टाचार एक सोच है और इसको सभी अपने-अपने स्तर पर खत्म करें, तो बेहतर होगा। अब देखना यह है कि लोकपाल किस हद तक भ्रष्टाचार पर लगाम लगा पाता है?

अभयजीत कुमार सिंह, दिल्ली

असाधारण व्यक्तित्व

साधारण जीवन के साथ कोई व्यक्ति कैसे असाधारण बन सकता है, इसका उदाहरण मनोहर पर्रिकर से बेहतर भला कौन हो सकता है? वह एक ऐसे राजनेता रहे, जिन्होंने मुख्यमंत्री बनकर सिर्फ राज्य पर ही राज नहीं किया, बल्कि लोगों के दिलों पर भी राज किया। बतौर केंद्रीय रक्षा मंत्री सर्जिकल स्ट्राइक करके उन्होंने यह भी बता दिया कि देश की रक्षा कैसे की जाती है। ऐसे इंसान का इस दुनिया से जाना अवश्य ही एक अपूरणीय क्षति है। वह जाते-जाते भी हमें सिखा गए कि आखिरी सांस तक कैसे देश की सेवा की जाती है।

मुक्ता त्यागी, रोहाना मिल, मुजफ्फरनगर

सादगी की मिसाल

रविवार की शाम पूरा देश मनोहर पर्रिकर के निधन की खबर को सुनकर स्तब्ध रह गया। एक महान और कर्तव्यनिष्ठ नेता दुनिया को छोड़ गए। लंबे समय से कैंसर से जूझ रहे गोवा के मुख्यमंत्री सदा के लिए अपने कार्यभार से मुक्त हो गए। मगर वह अपने ईमानदार व्यक्तित्व और कर्तव्यनिष्ठ प्रकृति के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत बने रहेंगे। उन्होंने मुख्यमंत्री बनकर ही नहीं, रक्षा मंत्री के रूप में भी देश को अपनी सेवा दी। वह एक नेता के साथ-साथ एक अच्छे स्कॉलर भी थे। इतनी बड़ी उपलब्धियों को अर्जित कर लेने के बाद भी उनके स्वभाव में घमंड नाम की कोई चीज नहीं थी। हमेशा सादगी के साथ उन्होंने अपना जीवन व्यतीत किया। पर्रिकर हमेशा देश के दिल में जिंदा रहेंगे और आगामी पीढ़ी के प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।

धीरज पाठक, शास्त्रीनगर, चैनपुर

यह कैसा सम्मान

यह वर्ष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती वर्ष है। पूरा राष्ट्र इसे पूरी गरिमा के साथ मना रहा है। गांधीजी राष्ट्रीय एकता के लिए नागरी-हिंदी को महत्वपूर्ण मानते थे, किंतु केंद्र सरकार द्वारा इस अवसर पर जारी लोगो पूरी तरह से रोमन यानी अंग्रेजी में है। यह भारतीय संविधान के राजभाषा नियमों के एकदम विपरीत है। केंद्र सरकार द्वारा जारी हर लोगो का द्विभाषी (नागरी-हिंदी-रोमन-अंग्रेजी) होना आवश्यक है। गांधीजी ने तो स्वयं एक पत्रकार को साक्षात्कार में कहा था कि दुनिया से कह दो कि गांधी अंग्रेजी नहीं जानता। और अब उसी महापुरुष की जयंती का अंग्रेजी में लोगो जारी किया गया है। ऐसा करके उन्हें कैसा सम्मान दे रहे हैं हम? अब भी समय है कि हम अपनी गलती सुधार लें। आज बेशक हम चुनावी दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने राजभाषा हिंदी को अपनी प्राथमिकता में नहीं रखा है, जबकि सभी हिंदी में ही भाषण देकर वोट मांगते हैं। तो क्या राष्ट्रवाद में राजभाषा हिंदी शामिल नहीं है?

हरि सिंह पाल, राजघाट, नई दिल्ली
 

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