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संकीर्ण सियासत

सियासी संकीर्णता के फेर में राष्ट्र और राष्ट्रीय चिंतन कहीं बौना हो चुका है। यदि ऐसा न होता, तो राजनीति के दंगल में शब्दों की मर्यादा का सम्मान किया जाता और अपशब्दों से परहेज करके लोकतांत्रिक मूल्यों...

संकीर्ण सियासत
हिन्दुस्तान Tue, 12 Feb 2019 10:58 PM
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सियासी संकीर्णता के फेर में राष्ट्र और राष्ट्रीय चिंतन कहीं बौना हो चुका है। यदि ऐसा न होता, तो राजनीति के दंगल में शब्दों की मर्यादा का सम्मान किया जाता और अपशब्दों से परहेज करके लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान किया जाता। भला कौन नहीं जानता कि भारतीय लोकतंत्र जन भावनाओं के विपरीत खास सामंती आचरण की भेंट चढ़ चुका है। कुछेक परिवारों ने ही लोकतंत्र को बंधक बना लिया है। विडंबना यह है कि सियासतदां अपने गिरेबां में न झांककर केवल दूसरों में दोष गिनवाने तक सीमित हैं। जाहिर है, सियासत में चोर-चोर मौसेरे भाई की प्रवृत्ति इतनी प्रबल हो गई है कि समयानुसार राष्ट्र की संपत्ति पर डाका डालने वालों को दंडित नहीं किया जाता, जिसका दुष्परिणाम समूचे देश को भुगतना पड़ता है।
सुधाकर आशावादी, ब्रह्मपुरी, मेरठ

आधुनिकता के रंग में प्रेम
यह पूरा सप्ताह प्रेम दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। ज्यादातर लोग बढ़-चढ़कर एक-दूजे के लिए उपहारों का आदान-प्रदान करके प्रेम का इजहार कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि आधुनिक प्रेम की सार्थकता शायद उपहारों में ही सिमट गई है। रिश्तों में सिर्फ स्वार्थ और दिखावा नजर आता है। इस धरा पर भगवान से लेकर इंसानों तक ने प्रेम की मिसाल कायम की है, लेकिन आधुनिकता के रंग में लोगों ने प्रेम का अर्थ ही बदल दिया। प्रेम एक पवित्र, निश्छल और हृदय को हर्ष से भर देने वाली अनुभूति है, जिसको बताने या जताने के लिए कोई खास दिन या उपहार की जरूरत नहीं, बल्कि उसमें ईमानदारी चाहिए। हर किसी को यह समझना चाहिए।
माधुरी शुक्ला, सारनाथ, वाराणसी

 

सुधार का मसौदा
मंगलवार को प्रकाशित ‘इनके अफसर, उनके अफसर’ लेख में लेखक ने सीबीआई- कोलकाता पुलिस के बीच घटित पूरे प्रकरण की साफगोई से विवेचना की है। वाकई, जहां केवल पूछताछ के इरादे से 40 लोगों की बड़ी टीम के साथ सीबीआई का कोलकाता पुलिस कमिश्नर के घर पर छापा मारना उचित नहीं था, वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का पुलिस कमिश्नर के निवास पर आना और धरने पर बैठ जाना भी संविधान की मर्यादाओं के उल्लंघन के साथ-साथ खुद को संदिग्ध बनाने जैसा था। लेखक ने पुलिस सुधार की बात कही है, लेकिन यह सुधार किस प्रकार का और कहां-कहां हो, इसके लिए कोई ब्लूप्रिंट नहीं दिया गया। जाहिर है, सबसे पहले वर्तमान पुलिस व्यवस्था को अधिक पेशेवर बनाने की जरूरत है। फिर, अपराध की आधुनिक चुनौतियों को देखते हुए पुलिस बलों के विशेष प्रशिक्षण के साथ-साथ उन्हें तेजी से साइबर फ्रेंडली भी बनाना होगा। एक बात और, पुलिस जवानों और अधिकारियों की प्रोन्नति को इनके द्वारा केस निष्पादन की संख्या से जोड़ा जाए, न कि इनकी सेवा की अवधि से।
चंदन कुमार, देवघर

 

हिंदी की बढ़ती हैसियत
संयुक्त अरब अमीरात की सरकार ने हिंदी को अपनी अदालतों में इस्तेमाल हो सकने वाली तीसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया है। वहां अब तक यह सम्मान अरबी और अंग्रेजी को हासिल था। यह स्वागतयोग्य कदम है। ऐसी घोषणा करके अबू धाबी प्रशासन ने समस्त भारतीयों का मन जीत लिया है। यह विश्व र्में ंहदी की बढ़ती हैसियत की निशानी है। यह उसके वैश्विक प्रसार का प्रमाण है। लिहाजा अब समस्त हिंदीभाषी लोगों की जिम्मेदारी है कि वे इस भाषा को सरल, सुगम्य, सुप्रचलित और तकनीकी शब्दों से समृद्ध करें, जिससे यह विज्ञान, विधि, सूचना प्रौद्योगिकी आदि के पठन-पाठन की भाषा बन सके। तभी यह सुप्रसिद्ध कवि मैथिली शरण गुप्त के स्वप्न ‘भगवान! भारतवर्ष में गूंजे हमारी भारती’ के रूप में ही नहीं, विश्व भाषा का पद भी पा सकेगी।
श्रीधर द्विवेदी

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