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गरीबों को फायदा

आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को आरक्षण देने का फैसला आर्थिक असमानता के साथ-साथ जातीय द्वेष को दूर करने में भी सहायक होगा। वर्षों से सवर्णों की मांग रही है कि उन्हें भी आरक्षण के दायरे में शामिल किया...

गरीबों को फायदा
हिन्दुस्तानWed, 09 Jan 2019 11:54 PM
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आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को आरक्षण देने का फैसला आर्थिक असमानता के साथ-साथ जातीय द्वेष को दूर करने में भी सहायक होगा। वर्षों से सवर्णों की मांग रही है कि उन्हें भी आरक्षण के दायरे में शामिल किया जाए। यहां तक कि दलितों की नेता कही जाने वाली मायावती भी इसका वादा कर चुकी हैं। यह भी स्पष्ट है कि मंडल कमीशन लागू करते वक्त बेशक दंगे-फसाद बेकाबू हो गए थे, लेकिन अब शायद ही ऐसा हो। चूंकि अब समाज का सभी तबका आरक्षण के दायरे में होगा, इसीलिए किसी को उंगली उठाने का मौका शायद ही मिलेगा। ऐसा भी नहीं कि सवर्णों में जो गरीब हैं, उन सबकी सभी समस्याओं का समाधान इससे हो जाएगा, क्योंकि अब सरकारी नौकरियां भी कम हो रही हैं। इसीलिए उम्मीद यही है कि सभी मिलकर दलित, आदिवासी, पिछड़ी जातियों व सवर्ण निर्धनों को सशक्त बनाते हुए उन्हें सामाजिक प्रतिष्ठा दिलाने का काम करेंगे।

ब्रज भूषण त्यागी, मुजफ्फरनगर


आरक्षण की राजनीति

लोकसभा चुनाव करीब आते ही राजनीतिक दलों में हलचल तेज हो गई है। सभी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए हर तरह की घोषणाएं करने लगे हैं। आरक्षण की राजनीति भी जाहिर तौर पर इन चुनावों में अहम भूमिका निभाएगी। चूंकि केंद्र में काबिज सरकार ने सवर्णों को आरक्षण देने की कवायद शुरू कर दी है, इसलिए इससे भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में एक नया मोड़ आ गया है। सवाल यह है कि क्या सरकार सवर्णों को आरक्षण देकर उनकी नाराजगी दूर करना चाहती है या दलितों/ पिछड़ों को मिल रहे आरक्षण को दूसरे तरीके से कमजोर करने का प्रयास कर रही है? इस सवाल का जवाब चाहे जो हो, पर सत्ता पाने के लिए इस तरह की राजनीति हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सुखद नहीं है। 

आशीष करोतिया, दिल्ली विवि


गंदी सियासत

जब धर्म और जाति पर राजनीति होने लगती है, तो उसके परिणाम घातक होते हैं। इस प्रकार की राजनीति समाज और राष्ट्र को बांट देती है और लोगों के मन में कट्टरता की ऐसी जड़ें रोप देती हैं, जो मानवता पर भारी पड़ती हैं। दुर्भाग्य से पिछले कुछ समय से देश में ऐसी ही सियासत दिख रही है। यह आम लोगों के हित में कतई नहीं है। यदि राजनीति विकास, गरीबी उन्मूलन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा को लेकर हो, तो शायद देश की दशा सुधर सकती है। मगर विडंबना यह है कि नेताओं को अपनी सीमा का पता नहीं और वे अपने अंदाज में ही बयान जारी कर रहे हैं। इन सबसे हमारे नेताओं को बचना चाहिए।

धीरज पाठक, शास्त्रीनगर चैनपुर


बढ़ता साइबर अपराध 

आज के आधुनिक युग में कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल, इंटरनेट आदि की सहायता से भी अपराध किए जा रहे हैं। देश में साइबर क्राइम अब इतना बढ़ गया है कि नौजवानों तक को बरगलाकर उन्हें गलत रास्तों पर धकेला जा रहा है। हालांकि साइबर अपराध के खिलाफ कानूनी प्रावधान हैं, लेकिन देश में इस तरह के अपराध लगातार अंजाम दिए जा रहे हैं। केवल क्रेडिट कार्ड से जुड़ी धोखाधड़ी के मामले में रिजर्व बैंक ने साल  2014-15 में 13,083 मामले, साल 2015-16 में 16,468 मामले और साल 2016-17 में अप्रैल से सितंबर तक 13,653 मामले दर्ज किए थे। रिपोर्टों के मुताबिक, साल 2016 में हर 12 मिनट में एक साइबर क्राइम होता था, जो साल 2017 में हर 10 मिनट में होने लगा। सरकार भले ही  साइबर क्राइम सेल स्थापित कर चुकी हो, पर जरूरी है कि लोग खुद भी जागरूक और जिम्मेदार बनें। उन्हें किसी तरह के लालच में नहीं पड़ना चाहिए और अपनी ऑनलाइन जानकारियां किसी से साझा नहीं करनी चाहिए।

निखिल कुमार झा
 

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