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ये कैसे नियम

ये कैसे नियम दिल्ली सरकार के नए नियमों के तहत अब सड़कों, गलियों और चौराहों पर कूड़ा-कचरा फेंकने वालों पर 10,000 रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है। इस तरह के नियम कितने कारगर होते हैं, यह कोई छिपी हुई...

ये कैसे नियम
हिन्दुस्तान Sat, 20 Jan 2018 12:47 AM
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ये कैसे नियम
दिल्ली सरकार के नए नियमों के तहत अब सड़कों, गलियों और चौराहों पर कूड़ा-कचरा फेंकने वालों पर 10,000 रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है। इस तरह के नियम कितने कारगर होते हैं, यह कोई छिपी हुई बात नहीं है। एनजीटी ने यमुना में गंदगी डालने वालों पर 5,000 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया था। क्या हुआ उसका? यह नियम सिर्फ कागजों पर प्रभावी रहा। असलियत में अगर यह नियम कारगर होता, तो यमुना काफी हद तक स्वच्छ रहती। कुछ ऐसा ही हाल दिल्ली सरकार के नए नियम का भी होगा। असल में, संबंधित विभाग सख्त नहीं होता, जिस कारण लोग निश्चिंत रहते हैं। अव्वल तो यह आम लोगों की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वे अपने आसपास साफ-सफाई रखें, लेकिन मुश्किल यह है कि इस काम के लिए भी सरकार का मुंह देखा जाता है; मानो आसपास सफाई रहने से सरकार की सेहत बनती-बिगड़ती है। मेरा मानना है कि लोग तब तक इन नियमों को लेकर जागरूक नहीं होंगे, जब तक कुछ के साथ सरकार सख्ती नहीं बरतती। जुर्माने के चंद उदाहरण जैसे ही सामने आएंगे, लोग खुद इन नियमों का पालन करने लगेंगे।
रवींद्रनाथ झा, महरौली, नई दिल्ली

खिसियानी बिल्ली
इजरायल के प्रधानमंत्री के भारत आगमन पर पाकिस्तान ने जिस तरह की टिप्पणी की, वह खिसियानी बिल्ली के खंभा नोचने जैसी है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री का बयान आया कि इजरायल और भारत की नजदीकियों के पीछे इस्लाम और मुस्लिमों के प्रति उनकी नफरत मुख्य वजह है। मुस्लिमों को लेकर अगर भारत इतनी ही नफरत पालता, तो पाकिस्तान से अधिक मुसलमान भारत में नहीं रहते। इतना ही नहीं, जिस शांति और सौहार्द के साथ यहां अल्पसंख्यक समुदाय बसते हैं, उतनी ही कष्टदायक वहां अल्पसंख्यकों की हालत है। अगर इन सब सच्चाइयों से आंखें मूंदकर पाकिस्तानी विदेश मंत्री बयानबाजी कर रहे हैं, तो यह उनका मानसिक दिवालियापन बताता है। बेंजामिन नेतन्याहू वापस इजरायल लौट चुके हैं, पर पाकिस्तान को रास नहीं आ रहा कि दुनिया भर के तमाम ताकतवर मुल्क भारत के साथ दोस्ती बढ़ाना चाह रहे हैं। पाकिस्तान को अपनी घरेलू स्थिति दुरुस्त करनी चाहिए, तभी दूसरे बड़े देशों के शासनाध्यक्ष वहां का दौरा करेंगे।
मोहित, वैशाली, गाजियाबाद

बआरक्षण की मार
किसी भी सरकारी सेवा में आवेदन करने के लिए सामान्य वर्ग से आवेदन शुल्क लिया जाता है, जो एक बेरोजगार आवेदक के लिए कष्टदायक होता है। मगर जातिगत आधार पर आरक्षण पाने वाले आवेदकों को आवेदन शुल्क में ही नहीं, आयु, शैक्षणिक योग्यता, शारीरिक मापदंड जैसे हर वर्ग में छूट दी जाती है। संविधान बनाते समय वंचित वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी, जिसे चंद वर्षों में समाप्त किए जाने का प्रावधान किया गया था। मगर ऐसे आवेदकों को सरकार व संविधान के अनुसार छूट मिलते हुए लगभग सात दशक बीत चुके हैं और यह व्यवस्था आज भी कायम है। क्या इस व्यवस्था के लाभार्थियों का जीवन-स्तर सुधरा नहीं है? अगर नहीं, तो कुछ दूसरी व्यवस्था बनानी चाहिए, न कि आरक्षण को ढोना चाहिए। हमारे राजनेता अपनी सत्ता बचाने के लिए आरक्षण व्यवस्था को हवा देते हैं।  यह परंपरा बंद होनी चाहिए।
सुनील कुमार जैन, भजनपुरा, दिल्ली

कमजोर बुनियादी ढांचा
आजादी के 70 वर्षों के बाद हमारे पास गर्व करने लायक बहुत कुछ है, पर कुछ बुनियादी क्षेत्रों में हम आज भी पिछड़े हुए हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य ऐसे ही क्षेत्र हैं। ऐसा नहीं कि इन क्षेत्रों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सरकारें योजनाएं बनाती हैं, लेकिन वे जमीनी स्तर पर लागू होने से पहले ही दम तोड़ देती हैं। जब तक ‘हाशिये पर खड़े अंतिम व्यक्ति’ तक मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पाएंगी, तब तक सही मायने में हम विकास के शिखर तक नहीं पहुंच सकेंगे। 
मो. आरिफ शरीफ, चरगांवा, गोरखपुर

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