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फाइनल में हार

भारत के हाथों से अंडर-19 विश्व कप छिन जाना उतना दुखी नहीं करता, जितना बांग्लादेश से पराजित होना करता है। हमारी टीम पूरे टूर्नामेंट में अजेय रही, लेकिन फाइनल में हारी तो उस टीम से, जो पहली बार किसी...

फाइनल में हार
हिन्दुस्तानMon, 10 Feb 2020 09:42 PM
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भारत के हाथों से अंडर-19 विश्व कप छिन जाना उतना दुखी नहीं करता, जितना बांग्लादेश से पराजित होना करता है। हमारी टीम पूरे टूर्नामेंट में अजेय रही, लेकिन फाइनल में हारी तो उस टीम से, जो पहली बार किसी आईसीसी विश्व कप का फाइनल खेल रही थी। दरअसल, हमने खुद ही मैच उनकी झोली में डाल दिया। पहले बल्लेबाजी में फाइनल का दबाव साफ दिखा और फिर गेंदबाजी में तो हमारे खिलाड़ियों ने रही-सही कसर पूरी कर दी। कोई सोच भी नहीं सकता कि चार बार की विश्व विजेता टीम फाइनल मैच में 33 रन अतिरिक्त देगी। इसके अलावा टीम प्रबंधन भी बहुत सतही दिखा। इससे यही लगता है कि बांग्लादेश की जीत में जितना योगदान उसके खिलाड़ियों का है, उससे कम हमारा नहीं है।
कृष्ण मोहन सिंह

नए सिक्कों की दुविधा
आजकल हर दिन एक नई समस्या का सामना करना पड़ रहा है। समस्या अब यह है कि नए सिक्कों, खासतौर से दस रुपये के सिक्के को वैध नहीं माना जा रहा। इससे आम नागरिकों को सामाजिक और आर्थिक स्तर पर नुकसान झेलना पड़ रहा है। इन सिक्कों को लेने से लोग इनकार कर देते हैं। उत्तर भारत में यह समस्या ज्यादा विकट है। इससे आम नागरिकों में यह भाव उत्पन्न हो रहा है कि ये सिक्के अवैध हैं, जबकि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया समय-समय पर यह सूचना देता रहा है कि सभी सिक्के वैध हैं और अगर कोई इसे स्वीकार नहीं कर रहा, तो इसे कानूनन अपराध माना जाएगा। लेकिन यह सूचना आम लोगों तक नहीं पहुंच रही। शासन-प्रशासन को इस दिशा में सक्रिय होना चाहिए और लोगों को इस बाबत जानकारी पहुंचानी चाहिए।
चौ. भूपेंद्र सिंह रंगा, हरियाणा

अनिवार्य हो मतदान
चुनाव आयोग के तमाम प्रयासों और अन्य सभी संगठनों की अपील के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मतदान कम होना निराशाजनक है। लगता है, हम लोकतंत्र में अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा रहे हैं। मतदान हमारा अधिकार ही नहीं, कर्तव्य भी है। चुनाव आयोग द्वारा इस बाबत निरंतर विज्ञापन दिए गए। दिव्यांग और अस्सी वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों के लिए मतदान बूथों तक आने-जाने की विशेष व्यवस्था भी की गई। चुनाव के लिए अवकाश का पहले से ही प्रावधान है। फिर भी, राजधानी दिल्ली में 62 प्रतिशत के आसपास ही मतदान हुआ। विशेषकर मध्यम व उच्च वर्ग के मतदाता मतदान के प्रति उदासीन रहे। शायद उनकी यही धारणा है, ‘कोउ नृप होय हमें का हानि’। उचित होगा कि सरकार और चुनाव आयोग मतदान को अनिवार्य करने पर विचार करें। बहुत बड़ी मजबूरी होने पर प्रमाण दिखाने वाले को ही इसमें छूट मिलनी चाहिए। अनिवार्य मतदान आज की सबसे बड़ी जरूरत है। 
विनोद चतुर्वेदी, लोनी रोड, दिल्ली

एक प्रखर कथाकार
हिंदी कथा साहित्य के प्रखर विद्वान और सृजनकर्ता गिरिराज किशोर किसी परिचय के मोहताज नहीं रहे। उनकी रचनाओं ने जनमानस पर अमिट छाप छोड़ी। साहित्य अकादेमी और पद्मश्री जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित गिरिराजजी एक सफल उपन्यासकार, कुशल कहानीकार, प्रबुद्ध नाटककार, कुशल वक्ता और आलोचक थे। उनकी लेखनी को पहचान उनके दो उपन्यास- ‘ढाई घर’ और ‘पहला गिरमिटिया’ ने दिलाई। लोकतंत्र की कमियों और आधुनिकता बोध से उपजे मानवीय मन की कुंठा, संत्रास, लघुताबोध आदि उनकी कथा के मुख्य कथ्य रहे। मानवीय संवेदनाओं की सरल भाषा में अभिव्यक्ति ही उनकी लेखनी को लोकप्रिय और दूसरों से अलग बनाती है। गिरिराज किशोर का देहावसान हिंदी कथा-साहित्य के लिए एक अपूरणीय क्षति है। 
सत्यम भारती, वनद्वार, बेगूसराय

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