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विकास का असली अर्थ

विकास का असली अर्थ विकास हकीकत में वह अवस्था है, जो किसी भी देश के नागरिक को शैक्षणिक, मानसिक, शारीरिक और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है, जिस स्थिति में प्रति व्यक्ति आय निरंतर बढ़ती है और जीवन-स्तर...

विकास का असली अर्थ
हिन्दुस्तानSun, 26 Aug 2018 10:06 PM
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विकास का असली अर्थ
विकास हकीकत में वह अवस्था है, जो किसी भी देश के नागरिक को शैक्षणिक, मानसिक, शारीरिक और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है, जिस स्थिति में प्रति व्यक्ति आय निरंतर बढ़ती है और जीवन-स्तर में भी लगातार सुधार होता है। मगर अपने देश में कमोबेश सभी राजनीतिक दलों ने आजादी के बाद से ही जनता को गुमराह करने का काम किया है। जनता आज भी विकास के सही मायने को नहीं समझ पाई है। अपने यहां विकास को इस तरह परिभाषित किया गया है कि अमीर दिनोंदिन अमीर होता गया है, जबकि गरीब और गरीब। शायद सत्ता और धन-बल की ठसक रखने वाला वर्ग यह चाहता ही नहीं है कि जनता विकास के सही मायने को समझे। इससे सत्ता के गलियारे में सन्नाटा पसर जाएगा और जनता को अपने अधिकारों का बोध हो जाएगा। हालांकि वास्तविक विकास में बाधा जनता खुद भी है। यहां आबादी सैलाब की तरह बढ़ती जा रही है और देश का एक बड़ा वर्ग बेरोजगार, अनपढ़ और अंधविश्वास में डूबा है। नतीजतन, हमारी आबादी कोई संसाधन नहीं, बल्कि एक समस्या बन गई है। -राकेश शर्मा, नई दिल्ली- 58

स्वर्ग को नरक बनाने वाले
कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, लेकिन धरती के इस स्वर्ग को पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकवादी लगातार नरक बनाने पर तुले हुए हैं। यहां के युवाओं को भड़काया जाता है और उन्हें आतंकवाद के रास्ते पर धकेला जाता है। यही वजह है कि यहां के नौजवान पत्थरबाजी में लगे हैं और जब-तब आईएस या पाकिस्तान का झंडा लहराते हैं। वे अपने देश का राष्ट्रीय ध्वज फहराने और ‘भारत माता की जय’ बोलने वालों का हिंसात्मक विरोध भी करते हैं। कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के साथ ऐसा ही वाकया पेश आया है। उन्होंने नई दिल्ली में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के श्रद्धांजलि समारोह में ‘भारत माता की जय’ और ‘जय हिंद’ बोला था, जिसके विरोध में उनके साथ बदसुलूकी की गई। लोकतंत्र में ऐसी घटनाओं की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। -सुनील कुमार सिंह, मेरठ, उत्तर प्रदेश

संभलना होगा हमें
पंकज चतुर्वेदी का लेख ‘हमें लगातार पिछड़ने को मजबूर कर रही है बाढ़’ में तमाम राज्यों में आने वाली बाढ़ की विभीषिका का चित्रण किया गया है। बिगड़ते पारिस्थितिकी तंत्र के लिए इंसानी गतिविधियां जिम्मेदार हैं। मानव ने अपनी सुख-सुविधाओं के हिसाब से प्रकृति के साथ असीम छेड़छाड़ की है, जिसका नतीजा बाढ़ के रूप में हमें भुगतना पड़ रहा है। कहीं नदियों का रास्ता रोका जा रहा है, तो कहीं शहरों को बसाने के नाम पर असीमित रूप में पेड़ों की कटाई की जा रही है। यदि प्रकृति के साथ की जाने वाली इस छेड़छाड़ को सीमित नहीं किया गया, तो हालात विस्फोटक हो सकते हैं। हमें जल्द ही संभल जाना चाहिए। -हितेंद्र डेढ़ा, चिल्ला गांव, दिल्ली

सुधरते सरकारी स्कूल
राजधानी दिल्ली के सरकारी स्कूलों की सेहत लगातार सुधर रही है। चाहे बात इन्फ्रास्ट्रक्चर की हो या फिर पढ़ाई की, निजी स्कूलों के मुकाबले वे लगातार बेहतर कर रहे हैं। इन स्कूलों में कमजोर बच्चों के लिए विशेष शिक्षक व जीरो पीरियड की व्यवस्था तो की ही गई है, खेल को भी अनिवार्य विषय बना दिया गया है। यही वजह है कि सरकारी स्कूलों के बच्चे निजी स्कूलों के बच्चे से बराबरी का मुकाबला कर रहे हैं। हालांकि लोगों की मानसिकता को बदलने का काम भी सरकार को करना होगा, क्योंकि अब भी लोग निजी स्कूलों को तवज्जो देते हैं। हालांकि दिल्ली में जिस तरह सरकारी स्कूलों पर ध्यान दिया गया है, यदि अन्य राज्य भी इससे सबक ले सकें, तो पूरे देश की शिक्षा-व्यवस्था सुधर जाएगी। -आशीष, डीयू

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