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दिशाहीन विपक्ष

दिशाहीन विपक्ष जब बात लोकतंत्र में विपक्ष की होती है, तो दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां याद आ जाती हैं- ‘ सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।’ वाकई...

दिशाहीन विपक्ष
हिन्दुस्तानFri, 25 May 2018 08:40 PM
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दिशाहीन विपक्ष
जब बात लोकतंत्र में विपक्ष की होती है, तो दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां याद आ जाती हैं- ‘ सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।’ वाकई विपक्ष की भूमिका ऐसी ही होनी चाहिए। वह सरकार को मनमानी न करने दे। सरकार के किसी गलत निर्णय से होने वाले दुष्परिणामों से सरकार और आम जनता, दोनों को अवगत कराए। बावजूद इसके यदि सरकार अपना अड़ियल रुख छोड़ने को तैयार न हो, तो वह सदन के भीतर और बाहर, दोनों जगह अपना विरोध प्रकट करे। मगर आजकल विपक्ष का एक अलग रूप देखने को मिल रहा है। सत्ताधारी दलों को छोड़कर बाकी सभी पार्टियां एक हो चुकी हैं। विपक्ष की भूमिका सिर्फ हंगामा करने तक सिमट गई है। सदन में विधेयक पेश किए जाते हैं, लेकिन उन पर बहस तक नहीं हो पाती। विपक्ष की यह भूमिका लोकतंत्र की सेहत के लिए कतई ठीक नहीं। -शुभेन्द्र सिंह, लक्ष्मी नगर, नई दिल्ली

महंगा तेल
पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों से सभी वस्तुओं के दाम बढ़ने स्वाभाविक हैं, क्योंकि इससे चालित वाहनों से ही देश में अधिकांश मालों की ढुलाई होती है। मोदी सरकार का इस पर बेहद उदासीन रुख आगामी आम चुनाव में कुछ असर जरूर डाल सकता है। देखा जाए, तो बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और जनसंख्या ही आज देश की प्रमुख समस्याएं हैं, जिन पर दुर्भाग्य से सरकार कुछ कर नहीं रही है, जबकि अब उसके पास न जन की कमी है, और न धन की। कमी तो सिर्फ नीति और नीयत की है। इसलिए सरकार को इस मसले पर जनता को बहुत जल्द संतुष्ट करना होगा। इसके अतिरिक्त विपक्षी एकता भी सत्तारूढ़ पार्टी पर भारी पड़ सकती है। इसलिए सरकार को बहुत ही संभलकर चलना होगा। अगर वह चाहे, तो इस वक्त भी अपने अच्छे ऐतिहासिक कदमों से सभी को पछाड़ सकती है। -वेद मामूरपुर, नरेला

पांचवें साल में कदम
साल 2014 में आम चुनाव के दरम्यान भाजपा द्वारा देश के हर वर्ग के लिए ‘अच्छे दिन’ लाने का वादा किया गया था। केंद्र सरकार अब चुनावी साल यानी पांचवें वर्ष में प्रवेश कर रही है। ऐसे में, यह विश्लेषण जरूरी है कि यह सरकार आमजन की उम्मीदों पर कितनी खरी उतर सकी? इस सवाल पर निश्चय ही सबके अपने-अपने मत होंगे, पर मोदी सरकार कुछ मुद्दों पर नाकाम ही साबित हुई है। सरकार ने आर्थिक भ्रष्टाचार रोकने के लिए नोटबंदी और जीएसटी जैसा कड़वा घूंट पिलाया जरूर, विदेशों से रिश्ते मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री ने यात्राएं भी खूब कीं, मगर सरकार के चार साल का हाल उनसे पूछना चाहिए, जिन्होंने आतंकवाद और नक्सलवाद में अपने जवान बेटे खोए। यह उनसे भी पूछा जा सकता है, जिनको सरकार की गलत नीतियों के कारण या तो अपने रोजगार खोने पड़े या उद्योग-धंधे समेटने पड़े। कुल-मिलाकर, सुख-दुख में बीते ये चार साल। -राजेश कुमार चौहान, जालंधर

एकजुट विपक्ष
कर्नाटक में जिस तरह एकजुट विपक्ष की तस्वीर दिखी है, वह भाजपा या एनडीए के लिए चिंता की वजह हो सकती है। अब तक के चुनावों में यह दिखा भी है कि जहां-जहां विपक्षी पार्टियां बंटी हुई थीं, वहां-वहां भाजपा या एनडीए को फायदा पहुंचा। और जहां विपक्षी दल एक हुए, वहां भाजपा को मुंह की खानी पड़ी। इस लिहाज से देखें, तो 2019 का चुनाव अब काफी दिलचस्प हो गया है। देखना होगा कि भाजपा विपक्ष की इस साझा रणनीति का कैसे मुकाबला करती है? हालांकि देश में जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में माहौल है, उससे यही लगता है कि मुकाबला काफी कड़ा होने वाला है। -स्वाति, महरौली, नई दिल्ली

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