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नुकसान में जनता

नुकसान में जनता लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले संसद में जिस प्रकार के कृत्य हमारे माननीय कर रहे हैं, वे न सिर्फ लोकतंत्र के मुंह पर जोरदार तमाचा है, बल्कि आम जनता की आंखों में धूल झोंकने का निंदनीय...

नुकसान में जनता
हिन्दुस्तानWed, 21 Mar 2018 09:26 PM
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नुकसान में जनता
लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले संसद में जिस प्रकार के कृत्य हमारे माननीय कर रहे हैं, वे न सिर्फ लोकतंत्र के मुंह पर जोरदार तमाचा है, बल्कि आम जनता की आंखों में धूल झोंकने का निंदनीय काम भी है। जनता तो इन्हें बड़ी आशा के साथ संसद में भेजती है, ताकि वे लोगों का भला करेंगे, पर सत्ता पक्ष व विपक्ष, दोनों ने जनता को मूर्ख बनाने का ही काम किया है। उदाहरण मौजूदा बजट सत्र है, जिसमें लगातार हंगामे की वजह से कुछ भी प्रगति नहीं हो पाई है। पिछले दिनों बजट बिना किसी चर्चा के शोर-शराबे में पास हो गया, यानी बिना किसी जवाबदेही के देश का इतना महत्वपूर्ण बजट पारित हो गया। हमें नहीं पता कि संसद में कौन सी पार्टी राजनीति कर रही है? मगर एक बात तय है कि इससे सिर्फ आम जनता का नुकसान हो रहा है। आशा है कि राष्ट्रहित को पार्टी हित से ऊपर स्थान दिया जाएगा। -कन्हैया पांडेय, मुखर्जी नगर, नई दिल्ली

अमर्यादित आचरण 
पैसे कमाने की उम्मीद में 2014 में देश के अलग-अलग राज्यों से 40 भारतीय मजदूर इराक गए थे, जहां पर उन्हें पहले आईएस ने बंधक बनाया और फिर उनमें से 39 मजदूरों को क्रूरतम मौत देकर पहाड़ों में दफना दिया, जबकि एक अपनी मुस्लिम पहचान बनाकर वहां से भाग निकलने में कामयाब रहा। 39 भारतीयों को खोने का गम आज देश के हर शख्स को है। मगर जब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज संसद में इनकी मौत की पुष्टि कर रही थीं, तो कई सांसदों ने जमकर हंगामा किया और इतनी संवेदनशील घटना को भी राजनीतिक रंग देने का प्रयास करके संसद की मर्यादा को तार-तार कर दिया। इराक में भारतीय मजदूरों की असमय मौत अत्यंत दुखद तो है ही, लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा पीड़ादायक हमारे सांसदों की यह गैर-जिम्मेदाराना हरकत है, जो हर व्यक्ति को झकझोर रही है। -सूरज तिवारी, रीवा

विशेष राज्य का दर्जा 
हिन्दुस्तान एक बड़ा परिवार है और राज्य इसकी इकाइयां। अब अगर परिवार का हर सदस्य अपने लिए विशेषाधिकार की मांग करने लगे, तो फिर परिवार नामक संस्था का क्या होगा? विकास छोटे स्तर से ही शुरू होता है और व्यापक रूप लेता है, इसलिए व्यक्ति व राज्य का विकास देश के विकास क्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन विकास के नाम पर किसी राज्य के लिए विशेष दर्जे की मांग उचित नहीं लगती। यह तो संयुक्त यानी संघीय संस्था की जगह एकल संस्था का समर्थन करना है। विश्व में किसी देश की पहचान उसके संयुक्त रूप की वजह से होती है, एकल राज्य की वजह से नहीं। -नीलू सिन्हा, रोहिणी

नक्सली बनाम सुरक्षाकर्मी
पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के सुकमा में हमारे नौ जवानों को नक्सलियों ने शहीद कर दिया। उनमें से कई के परिजन बेसहारा हो गए। इस तरह की दुखद घटना अक्सर कुछ अंतराल पर हमारे देश में लगातार हो रही है। एक आकलन के अनुसार, सन 2010 से अब तक लगभग 200 जवान नक्सलियों के हाथों मारे जा चुके हैं। मगर दिक्कत यह है कि इस समस्या को ऐसे देखा जाता है, मानो नक्सली किसी दूसरे देश के लोग हों, जबकि असलियत में यह समस्या पूंजीपतिपरस्त सरकारों की नीतिगत उपज है। आखिर क्या कारण है कि स्वतंत्रता के 70 वर्षों के बाद भी सुदूर गांवों के लोग भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क तक के लिए तरस रहे हैं? दिल्ली के वातानुकूलित कमरों में बैठकर नक्सली समस्या का समाधान नहीं हो सकता। वक्त का तकाजा है कि गांव के गरीब लोगों और किसानों के शोषण के अंतहीन सिलसिले को समय रहते सुलझा लिया जाए। शोषण की पराकाष्ठा से ही विद्रोह का जन्म होता है। इसे खत्म करना जरूरी है। -निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद

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