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भविष्य से खिलवाड़

भविष्य से खिलवाड़ हमारे देश की विडंबना है कि बेमतलब के मुद्दों पर शोर मचाने से असली मुद्दे गौण हो जाते हैं। किसी भी देश की शक्ति युवा होते हैं। उन्हीं पर देश का भविष्य निर्भर होता है, पर दुख की बात...

भविष्य से खिलवाड़
हिन्दुस्तानThu, 15 Mar 2018 09:08 PM
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भविष्य से खिलवाड़
हमारे देश की विडंबना है कि बेमतलब के मुद्दों पर शोर मचाने से असली मुद्दे गौण हो जाते हैं। किसी भी देश की शक्ति युवा होते हैं। उन्हीं पर देश का भविष्य निर्भर होता है, पर दुख की बात है कि उनके ही भविष्य के साथ क्रूर मजाक किया जा रहा है। कर्मचारी चयन आयोग की धांधली का मुद्दा इन दिनों गरमाया हुआ है। शर्म की बात यह है कि ऐसा पहली बार नहीं है। देश में परीक्षा प्रणाली को मजाक बनाकर रख दिया गया है। जहां देखो, वहीं रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का बोलबाला नजर आता है। विद्यार्थियों को अपने विषय का नाम भी नहीं पता होता और वे बोर्ड की परीक्षा में टॉप कर लेते हैं। सवा यह है कि इतना बड़ा भ्रष्टाचार होता कैसे है? बिना बड़े अधिकारियों और नेताओं की संलिप्तता के ऐसा होना मुमकिन नहीं। यही वजह है कि परीक्षा पास करवाने वालों का गिरोह फल-फूल रहा है। अपने देश में तकनीक इतनी उन्नत है कि इस समस्या को आराम से रोका जा सकता है, मगर जब सरकारी तंत्र ही इस पर लगाम न कसना चाहे, तो भला कोई कैसे कुछ कर सकता है? -शिल्पा जैन सुराणा, वारंगल

नतीजों का आकलन
गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट गंवाना कहीं न कहीं भारतीय जनता पार्टी से जनता के उठते विश्वास का संकेत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कर्मठता को देखते हुए और तत्कालीन समय के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में जनता के दिलों पर छा जाने के कारण वोटरों ने हर जगह कमल को खिला दिया। प्रधानमंत्री पहले जैसे ही क्रियाशील दिखाई देते हैं, पर भाजपा के सांसद अथवा विधायक उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं। इन्होंने चुनाव जीतने के बाद अपने-अपने क्षेत्रों में पलटकर नहीं देखा, सिर्फ मोदी की विश्वसनीयता को भुनाते रहे। इसी का खामियाजा नरेंद्र मोदी जैसे योग्य नेता भुगत रहे हैं। उत्तर प्रदेश में कर्मचारी वर्ग और जनता का एक बड़ा तबका राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदमों से खुश नहीं था। इसलिए उपचुनाव के नतीजों का आकलन करके 2019 के आम चुनाव की रणनीति बनानी चाहिए। -रामदुवेश

थमती लहर
बिहार और उत्तर प्रदेश के उपचुनावों के नतीजे का एक संदेश शीशे की तरह साफ है। वह यह कि अपराजेय दिखने वाली पार्टी को भी पराजित किया जा सकता है। अगर विपक्ष में एकता हो, तो भाजपा की लहर रोकी जा सकती है। वैसे भी लहर अथवा तूफान कितना भी प्रचंड क्यों न हो, एक समय के बाद उसे शांत होना ही पड़ता है। भाजपाइयों के चेहरे पर चिंता की जो लकीरें दिख रही हैं, वे सिर्फ फूलपुर और गोरखपुर गंवाने से नहीं उभरी हैं। बल्कि सपा-बसपा के अप्रत्याशित मिलन से वे ज्यादा आहत हो गए हैं। अगर 2019 में यह गठबंधन कायम रहा, तो उत्तर प्रदेश में भाजपा का अच्छा-खासा नुकसान हो सकता है। केंद्र में सरकार बनाने की राह उत्तर प्रदेश से होकर गुजरती है। ऐसे में, भाजपा का फिर से सत्ता में आने का ख्वाब बिखर सकता है।  -जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी

डाकघर का न होना
यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि वर्षों बाद भी जो डाकघर वसुंधरा एन्क्लेव दिल्ली-96 के लिए स्वीकृत है, वह खिचड़ीपुर में संचालित हो रही है। आखिर इसकी वजह क्या है? हालांकि यहां पर 40 से अधिक सोसायटी हैं, साथ ही यह क्षेत्र दल्लुपूरा, न्यू अशोक नगर, नोएडा सेक्टर 1-2, 7-8 से भी घिरा हुआ है, जहां आस-पास में डाकघर की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसीलिए  जनता की असुविधा को ध्यान में रखते हुए डाक विभाग के अधिकारियों से अनुरोध है कि इस डाकघर को अविलंब अपने मूल स्वीकृत स्थान वसुंधरा एन्क्लेव में नियत किया जाए। ऐसा किया जाना नियम के मुताबिक ही होगा। -बीएस चौहान -वसुंधरा एन्कलेव, दिल्ली

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