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नहीं सुधरी भारतीय रेल

नहीं सुधरी भारतीय रेल भारतीय रेल से रोजाना ढाई करोड़ यात्री सफर करते हैं, और इसीलिए यह भारत की जीवन-रेखा भी मानी जाती है। मगर आज के हालात को देखकर यही लगता है कि सुरक्षा के मामले में अब भी हम मुकम्मल...

नहीं सुधरी भारतीय रेल
हिन्दुस्तानThu, 11 Oct 2018 12:09 AM
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नहीं सुधरी भारतीय रेल
भारतीय रेल से रोजाना ढाई करोड़ यात्री सफर करते हैं, और इसीलिए यह भारत की जीवन-रेखा भी मानी जाती है। मगर आज के हालात को देखकर यही लगता है कि सुरक्षा के मामले में अब भी हम मुकम्मल मुकाम हासिल नहीं कर पाए हैं। रायबरेली में न्यू फरक्का एक्सप्रेस का दुर्घटनाग्रस्त होना दुखी कर गया। इस दुर्घटना में कई यात्रियों की मौत कई के जख्मी होने की खबर आई है। जरूरी यह है कि केंद्र सरकार और रेल मंत्रालय सबसे पहले रेल सुविधाओं और यात्री सुरक्षा पर विशेष ध्यान दें। भारत में बुलेट ट्रेन न भी आएगी, तो यात्रियों का काम चल जाएगा। मगर भारतीय रेल मुसाफिरों की ‘कब्रगाह’ बन जाए, यह शायद ही किसी को कुबूल होगा। -
देवेश कुमार, गिरिडीह, झारखंड

आरक्षण का आधार
सपाक्स, करणी सेना और उनके सहयोगियों का राष्ट्रीय/ प्रादेशिक सरकारों के विरुद्ध आंदोलन करने और चुनाव लड़ने की घोषणा अंतत: आरक्षण व्यवस्था को बनाए रखने वाले संगठनों को ही मजबूती देगी। इन संगठनों को यह तय करना होगा कि इनकी जंग किसके विरुद्ध है? एक बुराई को दूर करने के लिए दूसरी बड़ी बुराई को आमंत्रण क्यों? यह फैसला अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। मेरा मानना है कि आरक्षण ‘आर्थिक आधार’ पर ही होना चाहिए। यदि वर्तमान व्यवस्था को बनाए रखना मजबूरी हो, तो जिन अति-गरीबों को इसका लाभ नहीं मिल रहा, उन्हें यह मिलना चाहिए और अच्छी जीवनशैली जीने वाले अपात्रों को इसमें से हटाया जाना चाहिए। आरक्षण के खिलाफ पनप रहे विरोध को टालने का यही उपाय उचित जान पड़ता है। -राधेश्याम ताम्रकर, इंदौर

इंसान की कीमत
पिछले दिनों खबर पढ़ने को मिली कि एक टेंपो से कुत्ते के टकराने के बाद कुत्ते को ‘सॉरी’ न बोलने के कारण टेंपो चालक की जान ले ली गई। यह वाकई चिंतनीय घटना है। यह घटना बताती है कि हमारा अब खुद पर काबू नहीं रहा। हमारे अंतस से धैर्य, क्षमा आदि महान गुण खत्म होते जा रहे हैं। यह बात मानी जा सकती है कि पालतू जानवरों के साथ हमारा भावनात्मक लगाव होता है और वे हमारे परिवार का ही हिस्सा बन जाते हैं। परंतु यह भी सत्य है कि इंसान का वजूद जानवर से कहीं बढ़कर होता है। एक इंसान के खोने से अनेक रिश्ते बिखर जाते हैं। बच्चे अनाथ हो जाते हैं और पत्नी व मां-बाप का सहारा खत्म हो जाता है। हम ईश्वर की सर्वोत्तम रचना हैं, इसलिए कभी भी इंसान से बढ़कर जानवर नहीं हो सकता। इतना ही नहीं, हम भारतीय अपने संयम, त्याग और संस्कारों की खूब दुहाई देते रहते हैं, लेकिन अगर इस प्रकार की घटनाएं सामने आती हैैं, तो ये हमारे इन्हीं मूल्यों पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। समाज में मानवीय मूल्यों का संरक्षण बहुत जरूरी है। -सीमा चौहान

बेहाल कानून-व्यवस्था 
पूरे भारत में स्वतंत्र होकर विचरण करने का मौलिक अधिकार हर भारतीय को हासिल है। इस अधिकार की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य व केंद्र सरकार और स्थानीय पुलिस-प्रशासन की है। किंतु लगता है कि आजाद भारत में संपूर्ण व्यवस्था पर असामाजिक तत्व ही भारी रहे हैं। कई बार अराजक तत्व अराजकता में लीन रहे और पीड़ित सुरक्षा की गुहार लगाते दिखे। व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी जिनकी है, वे सभी एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर अपना पल्ला झाड़ते दिखे। महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों की सार्वजनिक पिटाई और उत्पीड़न के जिम्मेदारों को यदि कठोर दंड मिल गया होता, तो शायद आज उसी घटना की पुनरावृत्ति गुजरात मे न होती। मुमकिन है कि आने वाले दिनों में अन्य राज्यों में भी यह सब होता दिखे। इन्हीं सबको देखकर यह लगता है कि अंग्रेजों की शासन क्षमता हम भारतीयों से श्रेष्ठ थी। -राजीव प्रकाश शर्मा, गोला

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