फोटो गैलरी

मेट्रो से दूरी

मेट्रो से दूरी दिल्ली मेट्रो देश की सबसे बेहतर मेट्रो सेवा मानी जाती है। मगर इन दिनों यह दोहरी मार से जूझ रही है। एक तरफ, इसकी परिचालन लागत बढ़ रही है, जिसे पाटने के लिए किराये में वृद्धि भी की गई,...

मेट्रो से दूरी
हिन्दुस्तानThu, 10 May 2018 10:09 PM
ऐप पर पढ़ें

मेट्रो से दूरी
दिल्ली मेट्रो देश की सबसे बेहतर मेट्रो सेवा मानी जाती है। मगर इन दिनों यह दोहरी मार से जूझ रही है। एक तरफ, इसकी परिचालन लागत बढ़ रही है, जिसे पाटने के लिए किराये में वृद्धि भी की गई, तो दूसरी तरफ, बढ़े किरायों के कारण यात्रियों की संख्या में कमी आई है। रही-सही कसर पार्किंग के बढ़े चार्ज ने पूरी कर दी। जिस तरह दिल्ली मेट्रो गलत नीतियों का शिकार हो रही है, ऐसा लगता है कि वह दिन दूर नहीं, जब लोग फिर से बसों की ओर लौटेंगे। इतना ही नहीं, पीक आवर में, जब भीड़ ज्यादा होती है, तब किराया भी ज्यादा लिया जाता है, जबकि बाकी समय भीड़ कम होती है, तो किराया कम लिया जाता है। यह आदर्श व्यवस्था नहीं है। अधिकारियों को इस ओर ध्यान देना चाहिए। -रोहित, इंदिरापुरम, गाजियाबाद

बीएचयू की गरिमा
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू में छात्रों के बीच हुई झड़प, पत्थरबाजी व पेट्रोल-बम फेंकने की घटना से वे सभी अभिभावक चिंतित हैं, जिनके बच्चे इस समय वहां पर अध्ययन कर रहे हैं। बीएचयू की अपनी एक स्वायत्त प्रशासनिक व्यवस्था है, जिस पर कैंपस में कानून-व्यवस्था कायम रखने की जिम्मेदारी होती है। अपराधी प्रवृत्ति के विद्यार्थियों पर लगाम लगाना व अध्ययनरत छात्रों को उचित वातावरण देना इस प्रशासनिक मशीनरी की जिम्मेदारी होती है। चीफ प्रॉक्टर इस मशीनरी का मुखिया होता है, जिसकी मांग पर स्थानीय पुलिस-प्रशासन का सहयोग भी लिया जाता है। कई बार अपराधी प्रवृत्ति के विद्यार्थी विश्वविद्यालय से निष्कासित किए जाते हैं। मगर जिस तरह छात्रावास के विद्यार्थियों में टकराव हुआ है, उसे देखते हुए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। इससे सख्त संदेश जाएगा।  - हरिप्रसाद राय, बालडीह, आजमगढ़

घिसी-पिटी पटकथा
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव कल होने वाला है। कांग्रेस जहां अपने इस आखिरी बड़े दुर्ग को बचाने के लिए प्रयासरत है, तो वहीं भाजपा ने दक्षिण के प्रवेश द्वार को फिर से हथियाने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी है। राहुल के आक्रमण और प्रधानमंत्री के जवाब से प्रादेशिक चुनाव का स्वरूप राष्ट्रीय हो गया है। भाजपा भी मन ही मन यही चाह रही थी, क्योंकि मुख्यमंत्री के तौर पर सिद्धरमैया भाजपा के चेहरे येदियुरप्पा पर शुरू से ही भारी पड़ रहे थे। चुनाव के राष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्रित हो जाने से जेडी-एस का सबसे ज्यादा नुकसान होता दिख रहा है, क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति में उसकी कोई खास भूमिका नहीं है। हालांकि इतने महत्वपूर्ण चुनाव में भी जिस तरह की राजनीति देखने को मिल रही है, वह चिंता पैदा करती है। हर पार्टी किसी भी तरह जीत चाहती है। सिद्धांत या नैतिकता पूरी तरह गायब रही। आरोप-प्रत्यारोप, व्यक्तिगत छींटाकशी, धर्म, जाति और क्षेत्रीयता जैसे मसले भी काफी हद तक हावी रहे। अच्छा है कि अब कर्नाटक में प्रचार का परदा गिर गया है। -विश्व वीर सिंह, नरौली, संभल

बेकाम हाथ
देश में बेरोजगारी अपने चरम पर है, पर अफसोस की बात है कि यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है। पीएचडी, एमबीए डिग्रीधारी क्लर्क या उससे भी नीचे के पद के लिए आवेदन कर रहे हैं, जो इस स्थिति को और खतरनाक बना रही है। असल में, इस सबकी जड़ हमारी दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली है, जो हमें सिर्फ तोता बनना सिखाती है। बरसों बीत जाने के बाद भी पाठ्यक्रमों में बदलाव नहीं हुआ है। जब तक नई जरूरत के मुताबिक पाठ्यक्रमों में संशोधन नहीं होगा, यह स्थिति बनी रहेगी। अब छात्र नौकरी मांगने की बजाय खुद कुछ करके दिखाएं। छात्रों को स्वरोजगार दिलाने वाली शिक्षा की जरूरत है। करोड़ों-अरबों खर्च करने से कुछ नहीं होगा, जब तक हम इस समस्या की जड़ तक नहीं पहुंचेंगे। -शिल्पा जैन सुराणा, वारंगल

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें