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नोटा का हो प्रचार

नोटा का हो प्रचार नोटा को लेकर जिस प्रकार गुजरात और हिमाचल प्रदेश में वोटरों ने उत्साह दिखाया है, उससे लगता है कि लोगों के बीच इसे लेकर जागरूकता बढ़ती जा रही है। अकेले गुजरात में 5.5 लाख मतदाताओं ने...

नोटा का हो प्रचार
हिन्दुस्तानWed, 20 Dec 2017 10:22 PM
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नोटा का हो प्रचार
नोटा को लेकर जिस प्रकार गुजरात और हिमाचल प्रदेश में वोटरों ने उत्साह दिखाया है, उससे लगता है कि लोगों के बीच इसे लेकर जागरूकता बढ़ती जा रही है। अकेले गुजरात में 5.5 लाख मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया। हालांकि एक सच यह भी है कि अब भी नोटा के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं, जिससे वे किसी एक को अपना वोट डालने को मजबूर हो जाते हैं। चुनाव आयोग हर प्रकार के चुनाव में वोट डालने की अपील करता है, पर नोटा के बारे में बहुत कम प्रचार करता है। ऐसे में, यदि नोटा को प्रचारित किया जाए, तो मतदाताओं को इसके बारे में पर्याप्त जानकारी मिल सकेगी और वे इसका इस्तेमाल कर पाएंगे। इससे नेताओं को भी यह समझ में आ जाएगा कि उनकी दाल गलने वाली नहीं। नतीजतन, वे जनता के हित में काम करेंगे। इससे आखिरकार जनता को ही फायदा होगा।
जितेन्द्र कश्यप, अलीगढ़

बच्चों के दोस्त बनें 
बुधवार को संपादकीय पेज पर प्रकाशित ‘लमहों का गुस्सा, सदियों का विमर्श’ लेख पढ़ा। लेख सारगर्भित प्रतीत हुआ। निश्चय ही जो मौजूदा हालात हैं, वे शोचनीय हैं। बात सिर्फ स्त्रियों की सुरक्षा की नहीं है, उन अबोध किशोरों की अपरिपक्व दिशाहीन मानसिकता की भी है, जिसके लिए हर वे अभिभावक जिम्मेदार हैं, जिन्होंने आधुनिकता के अंधानुकरण में अपने मासूम बच्चे को धकेल दिया है। ऐसे लोगों के पास अपने नवीन गजटों के साथ घंटों व्यतीत करने का समय तो है, पर बच्चों के अतृप्त अंतर्मन में चल रहे हजारों उलझे सवालों के लिए किंचित भी समय नहीं है। पैसों की ऐसी हाय-तौबा मची है कि बच्चा मां और बाप, दोनों के स्नेहिल स्पर्श से वंचित हो गया है। इसी का नतीजा आए दिन दिल दहला देने वाली घटनाओं में हम देख रहे हैं। ऐसी स्थिति से उबरने के लिए जरूरी है कि किशोर होते बच्चों का दोस्त बना जाए, ताकि उन्हें राह से भटकने से बचाया जा सके।
कजरी मानसी ऐश्वर्यम, गुरुग्राम

युवा नेताओं का उभरना
गुजरात में हार्दिक पटेल पाटीदारो के, अल्पेश ठाकोर अन्य पिछड़े वर्गों के और जिग्नेश मेवानी हरिजनों के नए नेता के रूप में उभरे हैं। उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर मोदी लहर को काफी हद तक रोका है। इसी तरह, उत्तर प्रदेश और बिहार में भी क्रमश: मुलायम सिंह यादव और लालू यादव के बेटे ने भी अपने वोटबैंक का नेता बनकर वहां की राजनीति को प्रभावित किया है। धर्म, जाति, वंश और परिवार अंतत: समाज ही की इकाई हैं, जिनके दायरे में काम करने में किसी को हर्ज नहीं होना चाहिए। सेवा और अच्छे कार्य कोई भी कर सकता है। इसलिए जातिवादी नेता होना गलत नहीं है। गलत तो सही दिशा में काम न कर पाना है। ऐसे में, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने बड़ी चुनौती है। चूंकि उनमें परिपक्वता आ गई है, इसलिए वह ऐसे युवा नेताओं को साथ लेकर नई, सही और ऐतिहासिक दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। अगर वे ऐसा कर पाएं, तो वाकई काफी कुछ कर सकेंगे।
वेद मामूरपुर, नरेला

एक मुश्किल जीत 
गुजरात के चुनावी रण में मोदी और शाह की जोड़ी के सामने एक बार फिर राहुल गांधी फेल हो गए। प्रधानमंत्री ने पाटीदारों के गुस्से और कांग्रेस के पक्ष में बन रहे माहौल के बाद मिली इस जीत को सामान्य नहीं, असामान्य बताया है। वाकई कई मायनों में चुनावी नतीजे भाजपा के लिए सामान्य नहीं हैं। वह कई मोर्चों पर पिछड़ती नजर आई। संभवत: इसीलिए वह 22 साल के इतिहास में पहली बार सीटों का शतक भी नहीं लगा सकी और कई सीटों पर उसे नजदीकी जीत मिली। इतना ही नहीं, भाजपा का पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले मत-प्रतिशत भले बढ़ा हो, पर लोकसभा चुनावों में उसे 59 फीसदी वोट मिले थे, यानी भाजपा को अभी कई चुनौतियों से जूझना होगा। 
प्रताप सिंह, सैडभर, बागपत
 

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