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यह कैसा इनाम

शिक्षा, स्वास्थ्य, खुशहाली, भुखमरी जैसे तमाम क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर दयनीय स्थिति के दौर में भी इसरो और डीआरडीओ जैसे संस्थान ही हैं, जिनके कार्यों से वर्तमान समय में विश्व पटल पर भारत का सिर...

यह कैसा इनाम
हिन्दुस्तानTue, 23 Jul 2019 09:20 PM
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शिक्षा, स्वास्थ्य, खुशहाली, भुखमरी जैसे तमाम क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर दयनीय स्थिति के दौर में भी इसरो और डीआरडीओ जैसे संस्थान ही हैं, जिनके कार्यों से वर्तमान समय में विश्व पटल पर भारत का सिर ऊंचा होता है। चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करके इसरो ने अपनी सफलता की लंबी फेहरिस्त में एक और नया अध्याय जोड़ लिया है। मगर एक खबर यह भी आई है कि इसरो के सपूतों को साल 1996 से अतिरिक्त वेतन वृद्धि के रूप में मिल रही प्रोत्साहन राशि अब नहीं मिलेगी। सरकार का यह फैसला असंगत, अमर्यादित और नासमझी भरा है। इस फैसले पर पुनर्विचार होना चाहिए। आज इसरो के मेहनती वैज्ञानिक ही हैं, जो देश का मस्तक ऊंचा उठाए हुए हैं। उनकी सुविधाओं में कतई कटौती नहीं होनी चाहिए। (निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद)

चांद को छूता भारत
एक समय था, जब पश्चिमी देशों ने ‘संपेरों का देश’ कहकर भारत का उपहास उड़ाया था। आज उसी भारत ने अपने चंद्रयान-2 का सफल परीक्षण करके सबको चौंका दिया है। इस अभियान से भारत चांद की वह महत्वपूर्ण जानकारियां दुनिया के सामने रख सकेगा, जिनसे अभी दुनिया अनजान है। अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत यह परीक्षण करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। कभी कहानियों में चांद को छूने की बात सुनी जाती थी, पर हमारे प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि चांद को छूना कोई कहानी नहीं, बल्कि हकीकत है।
(ललित शंकर, मवाना, मेरठ)

सोच बदलनी होगी
आज लड़कियां भी हर क्षेत्र में खुद को साबित कर रही हैं और हर क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाने में काफी हद तक सफल भी रही हैं। फिर भी हमारे समाज में लड़कियों को लड़कों से कम आंका जाता है। यह पूरी तरह से अनुचित है। आज ऐसी मानसिकता की जरूरत है, जो लड़कियों का मनोबल बढ़ाए और उन्हें आगे बढ़ने के लिए लगातार प्रेरित करे। जिस दिन समाज की मानसिकता बदल जाएगी, उस दिन हमारे देश की लड़कियां अलग रूप में नजर आएंगी। फिर, पूरे देश का नक्शा बदलने में देर नहीं लगेगी। (पूजा गुप्ता, मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश)

आफत की बारिश
जो बारिश मन को लुभाती है, उसी बारिश से इन दिनों कई राज्यों में त्राहिमाम की स्थिति बनी हुई है। बिहार, असम जैसे सूबों में जलप्रलय का कहर जारी है। उफनती नदियों से बाढ़ की समस्या गहराती जा रही है। हालांकि राहत और बचाव-कार्य जारी हैं, लेकिन प्रकृति का प्रकोप सब पर भारी पड़ रहा है। सवाल यह है कि क्या इन सबकी वजह सिर्फ बारिश है? अगर इंसान प्रकृति से छेड़छाड़ बंद कर दे, तो कई आपदाओं से हम बच सकते हैं। नदियों को हमें रास्ता देना होगा। उनके बहाव को रोकना हमारे लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है। मगर क्या हम इसको लेकर संजीदा होंगे। आखिर कब तक प्रकृति की ऐसी मार हम झेलते रहेंगे? (साक्षी साहनी, देहरादून)

कमजोर होता कानून
केंद्र सरकार ने ‘सूचना का अधिकार अधिनियम 2005’ में संशोधन करके इस महत्वपूर्ण पारदर्शी कानून को कमजोर करने का काम किया है। संशोधन के अनुसार, मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त, राज्यों के मुख्य सूचना आयुक्त, आयुक्तों के वेतन, भत्ते, निलंबन और सेवा की शर्तें आदि केंद्र सरकार द्वारा तय की जाएंगी। इससे पहले ये सभी शर्तें केंद्र और राज्यों के निर्वाचन अधिकारी व अन्य निर्वाचन आयुक्तों की तरह तय की गई थीं। सरकार का यह संशोधन संघीय व्यवस्था पर कड़ी चोट है। यह तानाशाही को तो बढ़ावा देगा ही, सूचना का अधिकार अधिनियम को बिना पंजे का शेर भी बना देगा। (मदनलाल लंबोरिया, भिरानी)

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