फोटो गैलरी

जीवंत त्योहार

होली एक त्योहार मात्र नहीं है, बल्कि यह समाज को सांप्रदायिकता के जहर से निकालकर बंधुत्व और भाईचारे के सौहार्दपूर्ण वातावरण से जोड़ने का एक बेहतरीन जरिया भी है। इस भाग-दौड़ भरी आधुनिक जिंदगी में जहां...

जीवंत त्योहार
हिन्दुस्तानWed, 20 Mar 2019 11:41 PM
ऐप पर पढ़ें

होली एक त्योहार मात्र नहीं है, बल्कि यह समाज को सांप्रदायिकता के जहर से निकालकर बंधुत्व और भाईचारे के सौहार्दपूर्ण वातावरण से जोड़ने का एक बेहतरीन जरिया भी है। इस भाग-दौड़ भरी आधुनिक जिंदगी में जहां लोगों के पास मिल-बैठकर उत्सव मनाने और खुशियां बांटने के लिए बहुत कम समय होता है, ऐसे में होली पड़ोसियों, मित्रों और रिश्तेदारों के साथ शुष्क पड़ते रिश्तों को फिर से जीवंत बनाने का एक खास मौका देती है। आज के प्रतिस्पद्र्धा भरे दौर में इस त्योहार की महत्ता तब और भी बढ़ जाती है, जब खुद का उपहास उड़ाना और अपने को बेवकूफ बनाना श्रेष्ठता का प्रतीक बन जाता है। यह पर्व हमें खुद पर हंसकर दूसरों को हंसाने से मिलने वाली अद्भुत और अद्वितीय खुशी से अवगत कराता है। लिहाजा होली हमें उसके मूल रूप में खेलनी चाहिए और खुद पर दूसरों को हंसाकर तनाव कम करने का हुनर सीख लेना चाहिए। (अंकित कुमार मिश्रा, बेंगलुरु)

रंगों की कुदरती रंगत
होली! इस शब्द के बारे में सोचते ही मस्तिष्क रंगों के संसार में खो जाता है। मन में एक तरंग सी उत्पन्न होने लगती है और चेहरा मुस्कराहट से भर जाता है। और यदि दिन ही होली का हो, तो फिर गुलाल, रंगीन पानी से भरी पिचकारी, गुब्बारे और रंगों भरी मस्ती, सब हमारे हो जाते हैं। हालांकि रंगों का यह उत्सव कभी-कभी रंगहीन भी लगने लगता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि रासायनिक रंगों की वजह से अब लोग रंगों से बचना चाहते हैं। इस तरह के रासायनिक रंगों से लोगों को स्किन इन्फेक्शन, जलन, खुजली जैसी समस्याएं होने लगती हैं। इसलिए जरूरी है कि हम पूरी सजगता और सावधानी से होली मनाएं। (महिमा चौहान)

उचित मूल्यांकन हो 
देश भर में बोर्ड परीक्षाओं के साथ-साथ उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन का कार्य भी चल रहा है। उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में लगे मूल्यांकनकर्ता पूर्णत: सजगता, सावधानी और गंभीरता से मूल्यांकन का कार्य संपादित करें, क्योंकि उनकी तनिक सी असावधानी, लापरवाही या जल्दबाजी अर्थ का अनर्थ कर सकती है। पिछले वर्षों के अनुभव यही बताते हैं कि प्रतिकूल परिणाम आने के बाद परीक्षार्थी आत्महत्या जैसे कदम तक उठा लेते हैं, जबकि समाचार पत्रों में पढ़ने को यह भी मिलता है कि कई विद्यार्थियों द्वारा पुन: मूल्यांकन कराने के बाद परीक्षा परिणाम में जमीन-आसमान का अंतर दिखा। यहां मूल्यांकनकर्ता की योग्यता पर सवाल उठाना मकसद नहीं है। मेरे कहने का यह अर्थ है कि गलती कोई करे और सजा दूसरा भुगते जैसी स्थिति इस बार उत्पन्न न हो। मूल्यांकनकर्ता परीक्षार्थी के अमूल्य जीवन को  ध्यान में रखते हुए गंभीरता से मूल्यांकन करें। (हेमा हरि उपाध्याय, उज्जैन)

गरिमा खोती राजनीति
आज राजनीतिक विमर्श का स्तर रसातल में जा रहा है। एक दल दूसरे की आलोचना का जवाब उसी की भाषा में देना पसंद करता है। गाली का जवाब गाली से देना कीचड़ को कीचड़ से साफ करने की कोशिश है। जब बड़े नेता तू-तू, मैं-मैं करते हैं, तो उनके सहयोगी नेता और प्रवक्ता भी बढ़-चढ़कर ऐसा करने लगते हैं। इससे ऐसा लगने लगता है कि राजनीतिक दल एक-दूसरे के विरोधी कम, जानी दुश्मन अधिक हो गए हैं। उनके व्यवहार में आलोचना और निंदा के साथ-साथ अब एक-दूसरे को अपमानित करना भी शामिल हो गया है। हमारे राजनीतिक दल यह भला कब समझेंगे कि यदि राजनीति निष्ठुर होगी, तो वह अशालीन भी होगी? इस तरह की राजनीति से सभी दलों को बचना चाहिए। किसी भी लोकतांत्रिक देश में राजनीति हमेशा सकारात्मक होनी चाहिए, नकारात्मक नहीं। (सत्य प्रकाश, लखीमपुर)

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें