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स्वागतयोग्य फैसला

दिल्ली हाईकोर्ट ने निर्भया गैंगरेप के चारों दोषियों को सभी कानूनी उपायों का सहारा लेने के लिए अंतिम रूप से एक सप्ताह का समय देकर बहुत सार्थक निर्णय दिया है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि कानूनी...

स्वागतयोग्य फैसला
हिन्दुस्तानThu, 06 Feb 2020 11:49 PM
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दिल्ली हाईकोर्ट ने निर्भया गैंगरेप के चारों दोषियों को सभी कानूनी उपायों का सहारा लेने के लिए अंतिम रूप से एक सप्ताह का समय देकर बहुत सार्थक निर्णय दिया है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि कानूनी प्रावधानों का इस्तेमाल दंड से बचने या व्यर्थ में लंबित रखने के लिए नहीं होना चाहिए। किसी दोषी को सजा से बचाने की सामाजिक पैरवी भी उचित नहीं। हमें गलती और गुनाह के अंतर को समझना होगा। निर्भया के साथ सामूहिक बलात्कार और उसकी हत्या जैसा क्रूरतम गुनाह छह लोगों (एक नाबालिग था और एक ने बाद में आत्महत्या कर ली) द्वारा अंजाम दिया गया। मगर ये दोषी सजा घोषित होने के बाद अब तक कानूनी प्रावधानों से अपनी फांसी को आगे बढ़ाते रहे। यह बेशक देश में ‘कानून सभी के लिए’ को सिद्ध करता है, लेकिन अब जब दिल्ली हाईकोर्ट ने एक हफ्ते का समय दे दिया है, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। (सम्राट सुधा, रुड़की, उत्तराखंड)

देर से मिलता इंसाफ
भारत जैसे महान लोकतांत्रिक देश में न्यायिक प्रक्रिया पर आधारित फिल्में लोकप्रियता के शिखर पर क्यों पहुंचती हैं? क्या जन-साधारण न्यायपालिका की कार्यशैली से आकर्षित होता है? महज दो घंटे की फिल्म में न्यायालय के भीतर वकीलों में होने वाली बहसें, कठघरे में खडे़ अभियुक्त, गवाह और उनसे होने वाले सवाल-जवाब और अंत में अत्यंत महत्वपूर्ण न्याय... हर पहलू आकर्षण का केंद्र लगता है, परंतु असल जिंदगी में यह प्रक्रिया बहुत जटिल होती है। हमारी न्यायपालिका पर देरी से न्याय देने के आरोप लगते रहे हैं। देरी का कारण चाहे मुकदमों की अपेक्षा न्यायाधीशों की संख्या की कमी हो या फिर एक भी निर्दोष को सजा न मिल पाने का सिद्धांत? जो भी हो, पर क्या हमारी स्वतंत्र न्यायपालिका की कार्रवाई को सत्ताधारी पार्टी या राजनेता अपने अधिकार क्षेत्र में रहकर प्रभावित करते हैं, जिसके पीछे उनका राजनीतिक स्वार्थ होना स्वाभाविक है? ताजा उदाहरण निर्भया मामले में दोषियों की फांसी की तारीख का है। परिणामस्वरूप देरी से मिलने वाले न्याय को अन्याय की श्रेणी में रखने में जनसाधारण परहेज नहीं करता है और हैदराबाद पुलिस द्वारा बलात्कारियों के एनकाउंटर जैसी घटनाओं का व्यापक स्तर पर पुरजोर समर्थन करता है। (शिवम सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय)

रेवड़ियां बांटते दल
दिल्ली की गद्दी के लिए सभी मुफ्त की रेवड़ी बांटने की होड़ में लग गए हैं। पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में जुटी हैं। दिल्ली में सत्तारूढ़ दल की तरह सभी पार्टियां जनता को मुफ्त में सुविधाएं देने का वायदा कर रही हैं। क्या यह उचित है? सरकार का काम रोजगार के स्रोत को बढ़ाने के साथ-साथ उद्योग और जनहित के कार्यों को बढ़ावा देना है, ताकि लोग आत्मनिर्भर बन सकें। पर अब तो सब कुछ मुफ्त में देने की घोषणा की जाने लगी है। संभव है कि इसका नाकारात्मक असर अर्थव्यवस्था पर पड़े। (मनकेश्वर महाराज 'भट्ट', मधेपुरा, बिहार)

चुनावी रंग में दिल्ली
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में चुनाव के अपने ही सुर होते हैं। अब दिल्ली में महामुकाबला देखने को मिल रहा है। चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, राजनीतिक बयानबाजी तेज होती दिख रही है। जहां एक तरफ आम आदमी पार्टी अपने पांच साल के कामकाज पर चुनाव लड़ रही है, तो दूसरी तरफ भाजपा अपने एजेंडे और ऐतिहासिक फैसलों के दम पर मतदाताओं को लुभाने में जुटी है। स्वयं केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा अध्यक्ष जैसे नेतागण घर-घर जा रहे हैं। इससे यही लगता है कि अबकी बार फिर एक रोमांचक राजनीति जंग देखने को मिलेगी। मतदाता शनिवार को मतदान करके अपने अधिकार का लाभ उठाएंगे। (अमन जायसवाल)

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