फोटो गैलरी

जायज मांगें

किसान आंदोलनकारियों की न्यूनतम समर्थन मूल्य से जुड़ी मांगें पूरी तरह से जायज लगती हैं। जब सरकार गरीब जनता के कर से मंडियों में यह भाव दे सकती है, तब बडे़ कारोबारी घरानों से किसानों को यही भाव क्यों...

जायज मांगें
हिन्दुस्तान Wed, 02 Dec 2020 11:04 PM
ऐप पर पढ़ें

किसान आंदोलनकारियों की न्यूनतम समर्थन मूल्य से जुड़ी मांगें पूरी तरह से जायज लगती हैं। जब सरकार गरीब जनता के कर से मंडियों में यह भाव दे सकती है, तब बडे़ कारोबारी घरानों से किसानों को यही भाव क्यों नहीं दिलवा सकती? क्या यह इसलिए कि नीति-निर्माताओं को पता है कि तय होने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य असलियत में बाजार मूल्य से कहीं ज्यादा होता है? अगर यही वजह है, तो सरकार को यह अनियमितता शीघ्र दूर करनी चाहिए, नहीं तो सरकारी मनमानी और भ्रष्टाचार से जूझ रही मंडियां इनमें हमेशा के लिए डूब जाएंगी।
रचित भाटिया, बरेली

वैक्सीन का खेल
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर देश में कम हो रहे महामारी के आंकड़ों को दोहराया। उन्होंने मृत्यु दर में आ रही गिरावट और मरीजों के सेहतमंद होने की दर में लगातार बढ़ोतरी होने की बात भी कही। मगर उनके जिस बयान पर खासा नजर जाती है, वह है उनका यह कहना कि संपूर्ण देशवासियों को वैक्सीन देने की बात कभी कही ही नहीं गई। बिहार चुनाव को अभी महीने भर भी नहीं हुए होंगे, जिसमें नेतागण चिल्ला-चिल्लाकर सभी को मुफ्त में वैक्सीन देने के वायदे कर रहे थे। तो क्या वैक्सीन की उपयोगिता वोट बैंक तक ही थी? स्वास्थ्य सचिव ने स्पष्ट किया है कि तथ्यात्मक जानकारी के आधार पर तय किया जाएगा कि किसे वैक्सीन दिया जाना है? इससे उन लोगों की आस जरूर टूट गई होगी, जो इस उम्मीद में थे कि वैक्सीन आते ही वे सुरक्षित हो जाएंगे। अगर सचिव के बयान का सही-सही मतलब निकालें, तो सरकार अब भी यही चाहती है कि हम खुद सतर्क रहें और मास्क व दो गज की शारीरिक दूरी का पालन करें।
अमन जायसवाल, डीयू

आधारहीन विरोध
आंदोलन के लिए सड़क को बंद कर देना सियासत का नया पैंतरा है। इसका इस्तेमाल विपक्ष खूब कर रहा है। पहले शाहीन बाग, और अब सिंधु बॉर्डर। यह एक तरह से जनता के अधिकारों को जबर्दस्ती हथियाना है। अपनी बात मनवाने के लिए ब्लैक मेल करने जैसा है यह। लोकतंत्र में आंदोलन करना बेशक सबका अधिकार है, लेकिन यह शांतिपूर्ण और संवाद की गुंजाइश बनाकर होना चाहिए, ताकि आम लोग परेशान न हों। मगर अब तो जब विचार के तर्क कमजोर हो जाते हैं, तो सड़कों पर राजनीति होने लगती है। हैरत की बात यह है कि जिन तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन चल रहा है, उनके पक्ष में तो कई तर्क सुनने को मिलते हैं, लेकिन कानूनों के विरोध में कोई तथ्यात्मक तर्क नहीं दिखता। साफ है, सिर्फ विरोध के लिए इन कानूनों का विरोध किया जा रहा है। विपक्ष को यह राजनीति शोभा नहीं देती। इस तरह की प्रवृत्ति पर रोक जरूरी है।
नवीनचंद्र तिवारी, रोहिणी, दिल्ली

तनाव बढ़ाने की नीयत
चीन ने एक बार फिर भारत समेत अन्य देशों को तंग करना शुरू कर दिया है। चीन अब ब्रह्मपुत्र नदी पर, जो तिब्बत के रास्ते भारत के पूर्वोत्तर को जाती है, अपना कब्जा करने की कोशिश कर रहा है, ताकि भारत के पूर्वी क्षेत्र में अपनी धाक जमा सके। ब्रह्मपुत्र नदी भारत के पूर्वोत्तर समेत बांग्लादेश की जीवन रेखा है। अगर इस पर पनबिजली बांध बन जाता है, तो अरुणाचल प्रदेश सहित पूरे पूर्वोत्तर को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। इतना ही नहीं, यहां भुखमरी की नौबत भी आ सकती है, क्योंकि इस नदी का पानी अरुणाचल से होकर असम में पहुंचता है और फिर वहां से आगे बढ़कर यह बांग्लादेश की तरफ जाता है। जाहिर है, बांध बन जाने से भारत और बांग्लादेश के कृषक वर्ग को काफी नुकसान होगा, इसलिए इन दोनों देशों को मिलकर चीन के खिलाफ रणनीति बनानी चाहिए।
अनिमा कुमारी, पटना

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें