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भत्ते पर रोक

बहुत ही दुखद और स्तब्ध कर देने वाला एक समाचार अखबारों में दिखा। समाचार के अनुसार, भारतीय सेना के अभिन्न अंग और सीमा के रक्षक सशस्त्र सीमा बल के जवानों के भत्ते फंड की कथित कमी के कारण दो महीने के लिए...

भत्ते पर रोक
हिन्दुस्तानThu, 30 Jan 2020 12:28 AM
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बहुत ही दुखद और स्तब्ध कर देने वाला एक समाचार अखबारों में दिखा। समाचार के अनुसार, भारतीय सेना के अभिन्न अंग और सीमा के रक्षक सशस्त्र सीमा बल के जवानों के भत्ते फंड की कथित कमी के कारण दो महीने के लिए रोक दिए गए हैं। इसी प्रकार का व्यवहार पिछले साल सीआरपीएफ जवानों के साथ किया गया था। कितने अफसोस की बात है कि सरकार भारतीय रिजर्व बैंक से उसकी संचित राशि का एक हिस्सा झटके से निकाल लेती है, पर जवानों को देने के लिए सरकारी खाते में पैसे नहीं हैं। जाहिर है, प्राथमिकताएं अलग हैं। लगता तो यही है कि सरकार जान-बूझकर मूल विषयों को किसी न किसी बहाने नेपथ्य में धकेलकर व्यर्थ के कार्यों पर पैसे खर्च कर रही है। (निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद)

केजरीवाल की ताकत
यह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम जनता के साथ जुड़ने और उनके हित में काम करने की लगन का ही परिणाम है कि आज भाजपा को अपनी पूरी ताकत झोंकनी पड़ रही है। राम मंदिर, अनुच्छेद 370, तीन तलाक का राग अलापने वाली भाजपा अब अरविंद केजरीवाल को घेरने के लिए पानी, बिजली, सड़क और प्रदूषण की बातें करने लगी है, अन्यथा झारखंड और महाराष्ट्र में तो उसने इन मुद्दों को किनारे ही रखा था। पर दिल्ली में दाल गलती न देखकर अब पिछले डेढ़ महीने से चल रहे शाहीन बाग के धरने को चुनावी मुद्दा बनाने का प्रयास किया जा रहा है, क्योंकि महंगाई, पानी, बिजली, सड़क, प्रदूषण, अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी पर तो बोलने का वह साहस ही नहीं जुटा पा रही है। दिल्ली चुनाव में जीत भले ही किसी की हो, पर आम आदमी पार्टी के केजरीवाल ने बाकी नेताओं की पेशानी पर बल जरूर ला दिए हैं। (हेमा हरि उपाध्याय, उज्जैन, मध्य प्रदेश)

मजहबी रंग में चुनाव
दिल्ली में सत्ता पक्ष और विपक्ष अब तक विकास कार्यों पर ही विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन शाहीन बाग ने उन्हें एक बड़ा मुद्दा थमा दिया है। दिल्ली विधानसभा का चुनाव क्या विकास की जगह शाहीन बाग के प्रदर्शन पर लड़ा जाएगा? मतदान के महज कुछ दिन पहले राजनीतिक पार्टियों की बयानबाजी जिस तरह से दिल्ली के जमीनी मसलों की जगह शाहीन बाग के मुद्दे पर शिफ्ट हो गई, उससे तो कुछ ऐसा ही संदेश जा रहा है। इसने मानो सारे मुद्दों को एक तरह से हाइजैक कर लिया है। इसकी शुरुआत डेढ़ महीने से बंद पड़ी शाहीन बाग सड़क को खुलवाने के मुद्दे से हुई, जिसे खोलने का आदेश कोर्ट भी दे चुका है, लेकिन प्रदर्शनकारी टस से मस होने को तैयार नहीं हैं। भाजपा का आरोप है कि दिल्ली सरकार प्रदर्शनकारियों का समर्थन कर सड़क खुलवाने नहीं दे रही, जबकि केजरीवाल इसे भाजपा की रणनीति बता रहे हैं। अब सच्चाई जो हो, लेकिन यह तय है कि बाकी सभी राज्यों की तरह अब दिल्ली में भी पानी, बिजली, सड़क, रोजगार को छोड़कर विधानसभा चुनाव मजहब पर लड़ा जाएगा। (नीतीश कुमार पाठक, नई दिल्ली)

बेरोजगारी की एक वजह
मशीनीकरण के कारण भी अपने देश में बेरोजगारी की समस्या विकराल होती जा रही है। विकसित देशों की तर्ज पर भारत में भी मशीनीकरण का प्रचलन बढ़ता जा रहा है, जिस कारण कई हाथ बेरोजगार हो रहे हैं। यह स्थिति भविष्य में बेरोजगारी संकट को और बढ़ा सकती है। स्वाभाविक है कि जब सवा अरब आबादी वाले देश में मशीनें काम करने लगेंगी, तो लोगों को काम भला कैसे मिल सकेगा? अत: सरकार को मशीनीकरण की तरफ सोच-समझकर बढ़ना चाहिए। उसे ऐसी राह तलाशनी चाहिए कि यंत्रीकरण का हमें फायदा भी मिले और रोजगार पर संकट भी न आए। ऐसे उपाय से ही बेरोजगारी दर घट सकती है। (अभिषेक तोमर)

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