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बेपटरी होती रेल

केंद्र सरकार की निजीकरण की रेल ने अब भारतीय रेलवे को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया है। यह सही है कि अब तक दर्जनों महत्वपूर्ण सार्वजनिक निगमों को निजी हाथों में सौंपा जा चुका है और विनिवेश के नाम पर...

बेपटरी होती रेल
हिन्दुस्तान Mon, 27 Jul 2020 10:33 PM
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केंद्र सरकार की निजीकरण की रेल ने अब भारतीय रेलवे को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया है। यह सही है कि अब तक दर्जनों महत्वपूर्ण सार्वजनिक निगमों को निजी हाथों में सौंपा जा चुका है और विनिवेश के नाम पर सार्वजनिक कंपनियों की हिस्सेदारी बेची जा रही है, लेकिन भारतीय रेलवे को लेकर उठाया जा रहा यह कदम उचित नहीं है। ऐसे वक्त में तो और भी नहीं, जब कोविड-19 के कारण लोगों के रोजगार छिन रहे हैं। भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा बड़ा रेल नेटवर्क है, और यह गरीब व बेसहारा लोगों का बड़ा सहारा है। भारतीय रेलवे गरीबों को सामाजिक न्याय दिलाने वाली एक सार्वजनिक संस्था भी है। ऐसे में, इसे निजी हाथों में सौंप देने से सामाजिक न्याय की इसकी  अवधारणा टूट जाएगी। जो लोग रेलवे के निजीकरण का स्वागत कर रहे हैं, उनको एक बार निजी अस्पतालों द्वारा इलाज के नाम किए जाने वाले शोषण को याद करना चाहिए। यदि रेलवे का निजीकरण हुआ, तो यहां भी आने वाले वर्षों में इसी तरह का शोषण दिखेगा।
कुलिंदर सिंह यादव

कब थमेगा कोरोना
विश्व में कोरोना का संक्रमण काबू में आता नहीं दिख रहा। अपने यहां तो दो दिनों के भीतर ही एक लाख नए मामले सामने आ गए। देश के कुछ हिस्सों में तो संक्रमण बहुत तेजी से हो रहा है। दुर्भाग्य से, अब इसका  शिकार वे लोग अधिक हो रहे हैं, जो देशहित में तन-मन-धन से जुटे हुए हैं। शोचनीय बात यह भी है कि जब संक्रमण इतनी तेजी से फैल रहा है, तब लोग इतनी लापरवाही क्यों बरत रहे हैं? दूसरी तरफ, बकरीद और रक्षा बंधन जैसे त्योहारों को लेकर भी लापरवाहियां खूब दिख रही हैं। यह सब देश को बड़े संकट में डाल सकता है। हमें आसपास के लोगों को बताना चाहिए कि वे अपनी जान जोखिम में न डालें और सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन करें।
ममता रानी, काशीपुर

सख्ती दिखाए सरकार
कोरोना के मामले देश में लगातार बढ़ रहे हैं। जैसे-जैसे जांच बढ़ रही है, कोरोना मरीजों की संख्या में भी आश्चर्यजनक वृद्धि हो रही है। इस हालत में सरकार को और सख्ती दिखानी चाहिए। अभी देश में बकरीद और रक्षा बंधन के रूप में दो बड़े त्योहार आने वाले हैं। जनता कोरोना के खतरे से अनजान होकर इन दोनों त्योहारों को मनाने की तैयारी कर रही है। इस तैयारी में वह कितनी लापरवाह हो गई है, इसका अंदाजा बाजारों में लगती भीड़ को देखकर लगाया जा सकता है। चिंता की बात यह है कि इतनी भीड़ में भी बहुत कम लोग मास्क लगा रहे हैं। और जो लगा रहे हैं, उनमें से भी बहुत कम सही से लगा रहे हैं। अगर इन सब पर सख्ती नहीं बरती गई, तो जल्द ही भारत में भी इटली और अमेरिका जैसे भयावह हालात बन जाएंगे। सरकार और स्थानीय प्रशासन को इस पर गंभीरता से चिंतन करना चाहिए।
ललित शंकर, मवाना, मेरठ

पाला बदलता नेपाल
इस समय भारत कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से जूझ ही रहा है कि देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ भी कहर बरपाने लगी है। ऐसे में, जरूरी है कि क्षेत्र के सभी देश एक साथ आएं और विषम परिस्थितियों का मिलकर सामना करें, लेकिन नेपाल ने मानो हमारे खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। पहले उसने अपना राजनीतिक नक्शा जारी किया, तो उसके बाद अयोध्या को नेपाल में बताया। नेपाल का बदलता रवैया भारतीय सीमावर्ती इलाकों में भी देखने को मिल रहा है, जहां बांध-निर्माण में रुकावट, सीमा पर झड़प जैसी तमाम वारदातें हो रही हैं। इससे पता चलता है कि नेपाल अब चीन की जुबान बोलने लगा है। अगर उसका यही रवैया रहा, तो भारत-नेपाल द्विपक्षीय संबंधों में दरार पड़ सकती है। यह स्थिति नेपाल के लिए नुकसानदेह होगी।
मुकेश कुमार, मोतिहारी, पूर्वी चंपारण
 

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