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तेल का खेल

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में इजाफा होने से पेट्रोलियम पदार्थों की घरेलू कीमतों में बढ़ोतरी लाजिमी है। सरकारी तेल कंपनियों के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के...

तेल का खेल
हिन्दुस्तानSun, 27 Feb 2022 11:53 PM

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अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में इजाफा होने से पेट्रोलियम पदार्थों की घरेलू कीमतों में बढ़ोतरी लाजिमी है। सरकारी तेल कंपनियों के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के आधार पर डीजल और पेट्रोल की स्थानीय कीमतें तय होती हैं। हालांकि, हकीकत कुछ और ही है। पिछले वर्ष नवंबर के पहले हफ्ते के बाद से डीजल और पेट्रोल की घरेलू कीमतों में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। जान यही पड़ता है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के कारण ऐसा किया गया है! इसी तरह, कोरोना काल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें पिछले 17 वर्षों के निचले स्तर पर थीं, लेकिन अपने देश में तेल की कीमतें कम नहीं हुई थीं। यह जानते हुए भी कि पेट्रो उत्पादों की कीमतों में वृद्धि से अन्य सभी सामग्रियों की कीमतें प्रभावित होती हैं, सरकारों को तत्परता दिखानी चाहिए थी। सरकारों को अपना खजाना भरने के बजाय महंगाई को नियंत्रित करने के लिए पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी लानी चाहिए। जनता के प्रति उनका यह पहला दायित्व होना चाहिए।
हिमांशु शेखर, गया

दोहरी नीति
आखिर ये नेता लोग जनता से चाहते क्या हैं? लोगों की समस्याओं को सुलझाने, गरीबी-बेरोजगारी दूर करने और महंगाई कम करने के बजाय उन्होंने पूरे देश को अखाड़ा बना दिया है। जनता से तो वे अमन-शांति की अपील करते हैं, लेकिन सत्ता हथियाने के लिए स्वयं एक-दूसरे पर अनर्गल टीका-टिप्पणी करते हैं। एक तरफ, सभ्यता, संस्कृति और परंपराओं की दुहाई देकर महिलाओं को परदे में रहने को कहते हैं, तो दूसरी तरफ उनको बेपरदा भी करते हैं। स्कूल की किताबों में बच्चों को धार्मिक एकता का पाठ पढ़ाया जाता है, तो वहीं देश के धर्मस्थलों को निशाना बनाया जाता है। नेतागण धार्मिक उन्माद पैदा करके अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते रहते हैं। रूस का यूक्रेन पर हमला करना अगर गलत है, तो क्या धार्मिक हिंसा करके देश की अखंडता और समरसता को भंग करना सही है? गांधी के देश में प्रजातंत्र बस नाम का रह गया है। यहां तो मुट्ठी भर स्वार्थी राजनेताओं का राजतंत्र चल रहा है।
विभा गुप्ता, बेंगलुरु

कर्तव्य है मतदान
कल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का एक और चरण संपन्न हुआ। यह सुखद है कि पहले की तुलना लोग अब ज्यादा मतदान में हिस्सा लेने लगे हैं, लेकिन एक जीवंत लोकतंत्र होने के नेता यह हम सबकी बड़ी जिम्मेदारी है कि हम राष्ट्रहित में मतदान करें। जरा सोचिए, यदि हम तानाशाही व्यवस्था में होते, तो हमें कतई अपने मत के इस्तेमाल का अधिकार नहीं मिल पाता। ऐसे में, किसी प्रलोभन में आए बिना हम सबको सरकार चुनने का कर्तव्य जरूर निभाना चाहिए।
अंजनी गुप्ता, दिघवारा, छपरा

शहीद नहीं, बलिदानी
भारतीय सेना में देश पर बलिदान होने वाले सैनिकों को अब शहीद नहीं कहा जाएगा। सेना ने शहीद के स्थान पर उन्हें बलिदानी, वीरगति प्राप्त वीर, वीर योद्धा, दिवंगत नायक कहने का सुझाव दिया है। यह सुझाव सराहनीय है। वैसे भी, शहीद शब्द को लेकर कभी कोई अधिसूचना जारी नहीं हुई थी। यह शब्द तो 1990 के बाद बलिदान होने वाले सैनिकों के लिए प्रयोग किया जाने लगा। हालांकि, कई विचारक इस शब्द को धर्म से भी जोड़ते हैं, जबकि हमारे सैनिक मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देते हैं। इसलिए, मातृभूमि की रक्षा करते हुए जान गंवाने वाले वीर सैनिकों के लिए शहीद कहना न्यायसंगत नहीं है। भारतीय सेना की यह पहल सराहनीय है। इससे तमाम बलिदानियों का सम्मान बढ़ेगा। हर आदमी, निश्चय ही, इस सुझाव को खुशी-खुशी अपनाएगा।
ललित शंकर, गाजियाबाद
 

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