अभिजीत से उम्मीदें
अर्थशास्त्र के लिए इस साल के नोबेल पुरस्कार विजेता, भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात और उनके साथ भारतीय अर्थव्यवस्था सहित तमाम मसलों पर हुई लंबी चर्चा के गहरे...
अर्थशास्त्र के लिए इस साल के नोबेल पुरस्कार विजेता, भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात और उनके साथ भारतीय अर्थव्यवस्था सहित तमाम मसलों पर हुई लंबी चर्चा के गहरे निहितार्थ हैं। अभिजीत वाम विचारधारा से प्रभावित माने जाते हैं और पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के घोषणापत्र में जिस ‘न्याय’ योजना का जिक्र था, उसका संबंध भी उन्हीं से है। इस मुलाकात के बाद न सिर्फ अभिजीत ने भारतीय प्रधानमंत्री के लिए काफी कुछ सकारात्मक कहा, बल्कि प्रधानमंत्री ने भी उनकी उपलब्धियों पर गर्व जताते हुए उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं। अभिजीत बनर्जी से अब यही अपेक्षा है कि वह भारत की आर्थिक तरक्की के लिए कुछ ठोस उपाय लेकर सामने आएंगे।
चंदन कुमार, देवघर
त्योहारी ऑफर का लालच
त्योहार को खास बनाने के लिए आमतौर पर लोग अपनी हैसियत के मुताबिक कुछ न कुछ खरीदने की कोशिश करते हैं। दिवाली के मौके पर भी तमाम कंपनियों ने बाजार में ऑफरों की झड़ी लगा रखी है। मगर ऐसे मौकों पर परोसी जाने वाली योजनाओं के अपने नफा-नुकसान भी हैं। ऐसे में, कोई बड़ी खरीदारी करने से पहले किसी भी ऑफर की पूरी पड़ताल जरूर करें। विज्ञापन पर आंखें मूंदकर भरोसा करना नुकसानदेह हो सकता है। अक्सर यही देखा जाता है कि कंपनियां अपने विज्ञापनों में दावे तो बड़े-बड़े करती हैं, लेकिन उसकी हकीकत कुछ और होती है। सिर्फ छूट के लालच में आकर कोई सामान खरीदने से आपकी जेब पर भी डाका पड़ सकता है। त्योहार को यादगार जरूर बनाएं, पर धोखा और फरेब में फंसे बिना।
सुभाष बुड़ावन वाला, खाचरौद
भारत करे पहल
गुरुवार को प्रकाशित संपादकीय ‘गुटनिरपेक्षता और हम’ पढ़ा। एक समय था, जब गुटनिरपेक्ष आंदोलन को तीसरा गुट कहा जाता था, मगर सोवियत संघ के विघटन के साथ ही वैश्विक राजनीति बदल गई और यह आंदोलन अप्रासंगिक हो गया। वक्त की करवट देखिए, 2019 के गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन की मेजबानी वह देश कर रहा है, जो कभी सोवियत संघ का हिस्सा था। किसी भी संगठन की प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए जरूरी है कि उसकी नीति और विचारधारा में वक्त के साथ बदलाव होते रहें। दुनिया में अनेक ऐसे संगठन हैं, जो गुटनिरपेक्ष आंदोलन से भी पुराने हैं, पर गुजरते समय के साथ बदलते रहने की वजह से वे आज भी प्रासंगिक हैं। भारत के अलावा गुटनिरपेक्ष आंदोलन के बाकी दोनों संस्थापक सदस्यों में से युगोस्लाविया का विघटन हो चुका है और 2010 के अरब आंदोलन के बाद मिस्र की परिस्थितियां भी बदल चुकी हैं। ऐसे में, भारत की यह जिम्मेदारी बनती है कि इस आंदोलन को एक नई दिशा और आयाम दे। गुटनिरपेक्ष आंदोलन को मजबूत करने से वैश्विक राजनीति में भारत की साख और धमक बढ़ेगी।
बृजेश माथुर, गाजियाबाद
धनतेरस का संदेश
दीपावली से दो दिन पहले मनाया जाने वाला धनतेरस आजकल धन से जुड़ा त्योहार बनकर रह गया है। इस दिन लोग सोना, चांदी, पीतल, गाड़ी, इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि खरीदते हैं, जबकि पुराणों में लिखा है कि इस दिन समुद्र मंथन में धन्वंतरि की उत्पत्ति हुई थी और वह अमृत कलश लिए हुए थे। उन्होंने मनुष्य को जीने की कला सिखाई कि मनुष्य किस प्रकार लंबा जीवन जी सकता है। उनके संदेश का मूल यही है कि हम जब तक स्वस्थ रहेंगे, तभी तक धरती पर मिलने वाले तमाम पदार्थों का उपयोग कर सकेंगे। स्वस्थ देह रहने पर ही स्वस्थ चित्त और स्वस्थ बुद्धि संभव है। मगर आज दिक्कत यह है कि पैसों के पीछे आदमी इतना भाग रहा है कि अपनी सेहत को नजरंदाज कर रहा है।
आनंद पांडेय, रोसड़ा, समस्तीपुर