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शिक्षित भविष्य की चिंता

हमारा देश पिछले एक साल से भी अधिक समय से कोरोना महामारी से लड़ रहा है। इसकी वजह से देश के वर्तमान के साथ-साथ भविष्य पर भी खतरा मंडरा रहा है। भविष्य का यह खतरा शिक्षा को लेकर ज्यादा है। बच्चों को देश...

शिक्षित भविष्य की चिंता
हिन्दुस्तानTue, 22 Jun 2021 11:17 PM
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हमारा देश पिछले एक साल से भी अधिक समय से कोरोना महामारी से लड़ रहा है। इसकी वजह से देश के वर्तमान के साथ-साथ भविष्य पर भी खतरा मंडरा रहा है। भविष्य का यह खतरा शिक्षा को लेकर ज्यादा है। बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है, लेकिन जब बच्चों को ही उचित शिक्षा नहीं मिलेगी, तो वे देश का अच्छा भविष्य कैसे बन सकेंगे? ऑनलाइन शिक्षा जरूर चल रही है, लेकिन इसका लाभ गरीब बच्चे नहीं उठा रहे हैं। उनके लिए तो इस कठिन समय में दो वक्त की रोटी जुटा पाना ही बहुत मुश्किल हो रहा है। साफ है, देश और बच्चे, दोनों का भविष्य तभी सुरक्षित रहेगा, जब सभी बच्चों तक शिक्षा पहुंच सकेगी। और, यह काम कोरोना-काल में नहीं हो रहा।
अंजली नर्वत, फरीदाबाद

आपातकाल
इंदिरा गांधी ने जून, 1975 में आपातकाल लगाया था, जिसमें जयप्रकाश सहित कई नेताओं को जेल भेज दिया गया। उन दिनों को लोग आज भी काला दिन के रूप में याद करते हैं। इसी आपातकाल के कारण इंदिरा गांधी 1977 का चुनाव हार गईं, हालांकि 1980 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिर से बहुमत पा लिया। उस आपातकाल में जनता को कोई तकलीफ नहीं हुई, ट्रेनें वगैरह समय पर चलती रहीं, सरकारी बाबू समय पर दफ्तर आने लगे, और सभी काम तय वक्त पर होने लगा। यही वजह है कि विनोबा भावे ने उसे ‘अनुशासन पर्व’ बताया। उल्लेखनीय है कि जिस काले दिन को हम आज भी मनाते हैं, वह मात्र 21 महीनों का था। मगर आज तो प्रजातंत्र सात साल से अपना दम तोड़ रहा है, और हम मौन हैं।
अरुण दत्त, नालंदा

चीन से सबक
आबादी के हिसाब से भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है, जो चिंता का विषय है, क्योंकि देश के सीमित संसाधनों पर एक विशाल जनसंख्या निर्भर है। बढ़ती जनसंख्या के कारण ही बेरोजगारी और निर्धनता जैसी समस्याएं गहरी हुई हैं। अब खबर है कि असम,उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्य जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कानून बनाने वाले हैं। इसमें सिर्फ दो बच्चे पैदा करने का प्रावधान होगा, और कानून का पालन न करने वालों को महत्वपूर्ण सरकारी सुविधाओं और योजनाओं से वंचित रखा जाएगा। यह कानून काफी हद तक चीन की ‘टू चाइल्ड पॉलिसी’ से मिलता-जुलता है। उल्लेखनीय है कि इसी नीति से चीन ने अपनी जनसंख्या को नियंत्रित किया। मगर बाद के वर्षों में उसे इसका नुकसान भी उठाना पड़ा। बुजुर्ग होती जनसंख्या और असमान लिंगानुपात की वजह चीन की यही नीति रही। इसलिए चीन की खामियों को याद रखते हुए अपने यहां सरकारों को कानून बनाने चाहिए। उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि जनसंख्या नियंत्रण कानून से अपने यहां असमान लिंगानुपात जैसी समस्याएं पैदा नहीं हों।
अजय धनगर, दिल्ली विवि.

राजनीति नहीं, सेवा नीति
राजनीति का अर्थ होता है, राज करने की ऐसी नीति, जो जाति-धर्म, अमीर-गरीब, ऊंच-नीच जैसी असमानताओं से परे देश के प्रत्येक नागरिक को समानता का एहसास कराने का अवसर प्रदान करे। किंतु नेताओं की निजी महत्वाकांक्षा की वजह से अब राजनीति शब्द को सुनते ही लोग उसमें भ्रष्टाचार और शोषण की बू खोजने लगते हैं। इसलिए यह उचित समय है कि राजनीति शब्द को सेवा नीति में बदल दिया जाए। आज नेताओं ने राजनीति की परिभाषा बदल दी है और वे खुद को जनसेवक नहीं, बल्कि राजा समझकर देश व समाज पर राज करना चाहते हैं। मगर सेवा नीति शब्द से न केवल जनता नेताओं से सेवा लेने के लिए जागरूक होगी, बल्कि नेताओं के मन में भी राज करने की भावना की जगह सेवा करने की भावना पनपेगी। 
रघुकुल यथार्थ, वाराणसी
 

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