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बेहाल राजधानी

किसी भी देश के विकास का आकलन आमतौर पर उसकी राजधानी से होता है। भारत इसका अपवाद नहीं है। लेकिन दिल्ली में, जहां देश की सारी शक्तियां मौजूद हैं, वहां एक अंडरपास में हल्की वर्षा के कारण हुए जलभराव में...

बेहाल राजधानी
हिन्दुस्तानTue, 21 Jul 2020 11:53 PM
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किसी भी देश के विकास का आकलन आमतौर पर उसकी राजधानी से होता है। भारत इसका अपवाद नहीं है। लेकिन दिल्ली में, जहां देश की सारी शक्तियां मौजूद हैं, वहां एक अंडरपास में हल्की वर्षा के कारण हुए जलभराव में एक आदमी डूबकर मर जाता है। यह अटपटा जरूर है, लेकिन सच है। सवाल यह है कि जब राजधानी का यह हाल है, तो देश के अन्य इलाकों की क्या स्थिति होगी? जिस तरह यहां ऐतिहासिक मिंटो ब्रिज वृद्धावस्था में है, उसी तरह यमुना नदी पर बने लोहे का पुल भी इतिहास संजोने के बावजूद आज जलभराव के कारण ही ख्याति प्राप्त है। इसी तरह, आईटीओ के पास तेज रफ्तार से बहते नाले ने अपने साथ एक झुग्गी और एक दो मंजिले मकान को बहा लिया। विकास की गंगा बहाने की बात मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खूब करते हैं, मगर दिल्ली की क्या हालत है, यह इन तस्वीरों से पता चलता है। दिल्ली सरकार उचित कदम आखिर कब उठाएगी? (मोहम्मद आसिफ, जामिया नगर, दिल्ली)

बढ़ती चिंता
कोरोना संकट के बीच आई प्राकृतिक आपदा ने चिंता बढ़ा दी है। अभी कोरोना के साथ-साथ देश के कई हिस्सों में बाढ़ का तांडव मचा हुआ है। लाखों लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। भले ही राज्य सरकारें राहत-कार्य चला रही हैं, फिर भी बडे़ स्तर पर नुकसान की खबर है। भारी बरसात और बाढ़ से कई लोगों के मरने की भी सूचना है। इससे निपटने में बड़ी मुश्किल यह है कि बाढ़ की वजह बनने वाली नदियां एक से अधिक देशों से जुड़ी हुई हैं। इस वजह से उन्हें लेकर कोई समग्र नीति नहीं बन पाती। इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। हर देश चाहता है कि वह दूसरे देश पर दबाव बनाने के लिए कुदरती आपदा के दौरान सहयोग करने से परोक्षत: कन्नी काटे। यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। इसलिए एक से अधिक देशों से जुड़ा कुदरती आपदा का मसला हो, तो उसके निपटारे के लिए अंतरराष्ट्रीय नियम बनने चाहिए और उनका पालन हर देश को करना चाहिए। (मधु कुमारी, बोकारो, झारखंड)

सरकारी नौकरी की व्यथा
कहा जाता है कि इंसान के जीवन का सुनहरा दौर छात्र जीवन होता है। इस समय वह यही सपने देखता है कि 12वीं पास करेगा, सरकारी नौकरी की तैयारी करेगा और एक अच्छा रोजगार हासिल करेगा। इसके लिए वह जी-जान से मेहनत भी करता है। मगर उसे पता नहीं होता कि शासन-प्रशासन का जाल उसका इंतजार कर रहा है, जहां न तो वह चैन से खा सकता है, और न सो सकता है। दरअसल, मेरिट होने के बाद भी कई प्रतियोगी सरकारी नौकरी से वंचित रह जाते हैं, क्योंकि मामला अदालत में चला जाता है। यह स्थिति प्रतियोगियों के लिए ही नहीं, उनके माता-पिता के लिए भी कष्टदायक है। आखिर अभिभावक के भी कुछ सपने होते हैं। इस दुखद स्थिति का निदान निकलना चाहिए, ताकि उचित योग्यता रखने वालों को नौकरी मिल सके। (सीमा सिंह, ज्ञानस्थली, हाजीपुर)

मंझधार में गहलोत सरकार
मध्य प्रदेश में सियासी उठापटक के बाद अब राजस्थान में भी गहलोत सरकार मुश्किलों में फंसी दिख रही है। इब तो आए दिन यह देखने को मिल रहा है कि सांसद और विधायक अपनी स्वार्थ-पूर्ति के लिए दलबदल करने से जरा भी नहीं शरमाते। जनता उनको वोट देकर किसी एक दल का प्रतिनिधि बनाती है, पर वे स्वार्थ-वश किसी और पार्टी में पहुंच जाते हैं। चुनाव के वक्त तो वे जनता के दरवाजे पर एक दल के गीत गाते हैं, लेकिन दल बदलते समय उन्हें उसी जनता का ख्याल नहीं आता। क्या लोकतांत्रिक देश में जनता द्वारा चुने गए नेताओं का यूं पाला बदलना शोभा देता है? (पूनम चंद सीरवी, कुक्षी, मध्य प्रदेश)

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