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मानसिक गंदगी

बुधवार को प्रकाशित संपादकीय ‘अश्लीलता के विरुद्ध’ पढ़ा। यह फिल्मों में काम दिलाने के नाम पर युवक-युवतियों के होते शोषण के खिलाफ अलख जगाता दिखा। चूंकि फिल्मों का ग्लैमर काफी ज्यादा है,...

मानसिक गंदगी
हिन्दुस्तानWed, 21 Jul 2021 10:29 PM

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बुधवार को प्रकाशित संपादकीय ‘अश्लीलता के विरुद्ध’ पढ़ा। यह फिल्मों में काम दिलाने के नाम पर युवक-युवतियों के होते शोषण के खिलाफ अलख जगाता दिखा। चूंकि फिल्मों का ग्लैमर काफी ज्यादा है, इसलिए प्रतिभावानों का उस तरफ आकर्षित होना लाजिमी है। ऐसे में, आज अश्लीलता के विरुद्ध एक बड़ी जंग की जरूरत है, क्योंकि इसके आकर्षण में हमारी युवा पीढ़ी खप रही है। इससे यौन शोषण और यौन अपराधों को भी बढ़ावा मिलता है। राज कुंद्रा का चरित्र आईपीएल से ही सामने आ चुका था। उनसे अश्लील फिल्मों के निर्माण और उसके अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन के कई राज खुल सकते हैं। मगर इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति व संकल्प के साथ सरकार को कार्रवाई करनी होगी, अन्यथा कई बार जांच आगे बढ़ते-बढ़ते नए एंगल पर जाकर टिक जाती है, जैसा कि सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के मामले में हुआ।
अमृतलाल मारू ‘रवि’, धार

कानून भी, जागरूकता भी
वर्तमान में जिस गति से भारत की जनसंख्या बढ़ रही है, वह दिन दूर नहीं, जब जनसंख्या की दृष्टि से हम चीन को भी पीछे छोड़ देंगे। तमाम लोग जनसंख्या नियंत्रण के लिए कठोर कानूनी कदम की मांग करते हैं, जबकि कानून के साथ-साथ जन-जागरूकता की भी जरूरत है। तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या, बेरोजगारी को जन्म देती है। रोजगार न मिलने पर लोग भटक जाते हैं। ऐसी स्थिति में वर्तमान सरकार को युवाओं को साथ लेकर, देश में उत्पन्न बेरोजगारी की समस्या को सबसे पहले दूर करने का प्रयास करना चाहिए। और, इसके लिए जरूरी है कि लोग शिक्षा व जनसंख्या नियंत्रण के महत्व को समझें। आबादी के नियंत्रित होने के बाद ही जन-हितकारी सार्वजनिक योजनाएं सफल होंगी और अपने उद्देश्य 
को पा सकेंगी।
प्रमोद अग्रवाल गोल्डी, नैनीताल

वाजिब है चिंता
जनता को बहुत आशा थी कि उनके चुने माननीय मानसून सत्र में जन-कल्याणकारी मुद्दों को उठाएंगे। कोरोना, वैक्सीन, तीसरी लहर, महंगाई, पेट्रोल-डीजल, बेरोजगारी जैसे आवश्यक मसलों पर सकारात्मक बहस की आशा थी, लेकिन दो दिन से सदनों की हालत देखकर ऐसा लगा कि नेताओं को जनता की नहीं, सिर्फ अपनी राजनीति की चिंता है। संसद की कार्यवाही लाइव प्रसारित की जाती है। इन हंगामों को देखकर दुनिया के सामने भारत की कैसी छवि बनती होगी, यह आसानी से समझा जा सकता है। संगठित, अनुशासित और मजबूत विपक्ष लोकतंत्र की रीढ़ है, लेकिन यहां तो विपक्ष लकीर का फकीर बना हुआ है। सदन अब गंभीर बहसों का मंच न रहकर महज राजनीति का अड्डा बन गया है। यह सब देखकर मन व्यथित हो जाता है।
मनोज मिश्र

अश्लील गीतों के खिलाफ
इन दिनों भोजपुरी गीतों में अश्लीलता की खूब चर्चा की जा रही है। किंतु न सरकार और न संस्कृति मंत्रालय इसे दूर करने को लेकर गंभीर दिख रहा है। आलम यह है कि अब लोग खुद भोजपुरी गायकों को निशाने पर लेने लगे हैं। सोशल मीडिया में तो इसे लेकर जबर्दस्त अभियान चल रहा है। यह हर किसी को समझना होगा कि अश्लीलता हमारी आने वाली पीढ़ी को बर्बाद कर देगी। कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि एक खास तबका गीतों में अश्लील शब्द पसंद करता है। मगर यह तर्क सही नहीं है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में पहले भी अशालीन गीत गाए जाते थे, लेकिन वे खास मौकों पर गाए जाते थे और अशालीन होने के बावजूद उनमें अश्लीलता नहीं होती थी। इसलिए भोजपुरी गायक, निर्माता-निर्देशकों के साथ-साथ आम प्रबुद्ध लोगों की भी यह जिम्मेदारी है कि वे भोजपुरी गीतों को अश्लीलता से मुक्त कराएं। 
यशवंत कुमार पाल
 रोहतास, बिहार 
 

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