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दल बदलने का खेल

नेताओं की महत्वाकांक्षाओं ने सदैव लोकतंत्र की सार्थकता में रुकावट डाली है। अपनी स्वार्थ-पूर्ति के लिए दल बदलने में उन्हें कभी कोई संकोच नहीं हुआ। इसी अवसरवादी चरित्र के कारण राजीव गांधी की सरकार ने...

दल बदलने का खेल
हिन्दुस्तान Sun, 19 Jul 2020 11:05 PM
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नेताओं की महत्वाकांक्षाओं ने सदैव लोकतंत्र की सार्थकता में रुकावट डाली है। अपनी स्वार्थ-पूर्ति के लिए दल बदलने में उन्हें कभी कोई संकोच नहीं हुआ। इसी अवसरवादी चरित्र के कारण राजीव गांधी की सरकार ने दलबदल कानून बनाया था, जिसे कालांतर में वाजपेयी सरकार ने और सख्त बनाया। फिर भी, नेताओं के पाला बदलने की रीति का अंत नहीं हो सका। जनता नेता को अपना प्रतिनिधि चुनकर लोकसभा या विधानसभा में भेजती है, लेकिन वही नेता अपनी सत्ता लोलुपता के चलते दल बदलने में क्षण भर भी संकोच नहीं करता। नेताओं की इस लोभी प्रवृत्ति पर जनता मन मसोसकर रह जाती है और खुद को ठगा हुआ महसूस करती है। लोकतंत्र की इस तरह से हत्या रुकनी चाहिए।
आयुष कुमार, दरभंगा

रफ्तार थामनी होगी
देश में तेजी से पैर पसारती महामारी अब अधिक भयावह रूप में सामने आ रही है। देश में कोरोना का पहला मामला 30 जनवरी को केरल में मिला था, लेकिन अब साढे़ पांच माह बाद इसकी संख्या बढ़कर 10 लाख को पार कर गई है। बीते 15 दिनों से तो हर दिन 25 हजार से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। हालांकि मृत्यु-दर में काफी सुधार है, लेकिन मरीजों की संख्या में यदि निरंतर इजाफा होता रहा, तो वह दिन दूर नहीं, जब पूरी व्यवस्था अव्यवस्था में बदल जाएगी और साधारण उपचार न हो पाने से भी मृत्यु-दर में वृद्धि होने लगेगी। एक अन्य आंकडे़ के मुताबिक, जुलाई के 15 दिनों में जितने मामले सामने आए हैं, उतने पूरे जून में आए थे। इससे स्पष्ट होता है कि कोरोना-संक्रमण की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है। अगर इसे काबू में लाना है, तो संपूर्ण लॉकडाउन ही एकमात्र रास्ता दिख रहा है।
अरविंद पाराशर, फतेहपुर, उत्तर प्रदेश

आत्मनिर्भर होगा भारत
बदलते वैश्विक समीकरण में भारत का आत्मनिर्भर होना ही श्रेष्ठ विकल्प है। इसके लिए सुसंगठित-सामाजिक संरचना में व्यक्ति (नागरिक) का जीवंत इकाई होना परम आवश्यक है। इस जीवंतता का प्रखर रूप हमारे वैदिक काल में दिखता है। जैसे- यजुर्वेद में ‘वयं राष्ट्रे जागृयाम...’ कहा गया है, अर्थात हम सब अग्रसर होकर राष्ट्र को जागृत करें। इसी प्रकार, अथर्ववेद में घोषणा की गई है कि ‘उत्तरं राष्ट्रं प्रजयोत्तरावत’, यानी उत्तम प्रजा जनों से राष्ट्र उत्तम रहता है, और ‘माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या:’, यानी धरती मां है और हम सब उसकी संतान हैं। देश की आजादी के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जन-भागीदारी, स्वावलंबन, विकेंद्रित शासन के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय आदि के क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन की बात कही थी, पर वे भी मूल अर्थों में व्यवहार में नहीं आ सके। इससे गरीबी और अमीरी की खाई बढ़ती गई। इसलिए अब आशावादी दृष्टि के साथ नवाचार, और भविष्योन्मुख नजरिया अपनाना होगा, तभी राष्ट्र आत्मनिर्भर बन सकेगा।
सत्य प्रकाश, लखीमपुर खीरी

आपराधिक नेटवर्क
हाल ही में उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुए गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर ने फिर से यह साबित कर दिया है कि हमारे देश में पहले सियासी इस्तेमाल के लिए आम लोगों को गैंगस्टर बना दिया जाता है, और जब वही गैंगस्टर जब सियासी आकाओं के लिए रास्ते का कांटा बन जाता है, तो उसको बड़ी आसानी से खत्म करवा दिया जाता है। राजनीतिक आश्रय में पलता बढ़ता अपराध एक सभ्य समाज के लिए बेहद चिंताजनक बात है। भारत जैसे लोकतंत्र में तो यह और भी दुखद है, क्योंकि लंबे संघर्षों के बाद हमने सांविधानिक व्यवस्था हासिल की है। ऐसे में, देश में अपराध को रोकने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और निष्पक्ष सियासी एकजुटता की जरूरत है। पर क्या ऐसा हो सकेगा?
यशपाल माहवर, मुक्तसर, पंजाब
 

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