अधिकारों का दुरुपयोग
यूं तो लोकतंत्र ‘जियो और जीने दो’ की अवधारणा पर गतिशील होता है, किंतु आजकल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सार्वजनिक मार्गों को अवरुद्ध करना एक फैशन बन गया है। मानवाधिकारों की दुहाई...
यूं तो लोकतंत्र ‘जियो और जीने दो’ की अवधारणा पर गतिशील होता है, किंतु आजकल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सार्वजनिक मार्गों को अवरुद्ध करना एक फैशन बन गया है। मानवाधिकारों की दुहाई देने वाले इस स्थिति में भी अराजक तत्वों के विरुद्ध की जाने वाली कार्रवाई को सवालिया घेरे में रखने से परहेज नहीं करते। मुद्दे चाहे जो भी हों, पक्ष-विपक्ष में आवाज उठाने से कोई किसी को नहीं रोकता है, मगर सार्वजनिक मार्ग में अवरोध उत्पन्न करके उसे अपना लोकतांत्रिक अधिकार बताने वाले तत्वों को इतनी समझ तो होनी ही चाहिए कि जगह-जगह अवरोधक बनकर सड़कों पर तंबू तानकर किसी भी क्षेत्र विशेष को पंगु बनाया जाता है, तो यह अराजकता की श्रेणी में आता है और इसके लिए अवश्य ही दंडनीय प्रावधान हैं। लोग अब यही सोच रहे हैं कि मार्ग जाम किए जाने वाले कदमों को लोकतांत्रिक अधिकारों का अतिक्रमण मानकर कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए। (सुधाकर आशावादी, ब्रह्मपुरी, मेरठ)
देश में विरोध
हमारे देश में हर दिन विरोध का कोई न कोई मुद्दा तैयार रहता है, जिससे देश में शांति भंग होती रहती है। कभी-कभी यह विरोध विपक्ष की पार्टियां करती हैं, तो कभी-कभी यह किसी समुदाय या लोगों द्वारा किया जाता है। नतीजतन, देश के विकास और अर्थव्यवस्था में तेजी से गिरावट आ रही है। दिक्कत यह है कि इन विरोध-प्रदर्शनों का कोई शांतिपूर्ण हल नहीं निकाला जाता। सरकार को ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति करनी चाहिए, जो विरोध की आवाज को सुनें और उसका समाधान निकालें। विरोध के उठते स्वर को कम किया जाना जरूरी है, तभी देश विकास की राह पर आगे बढ़ सकेगा। (नीति)
बेरोजगारी का संकट
आज के भारत की सबसे बड़ी मांग रोजगार है। कहा जाता है कि देश की 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है। उनमें प्रतिभा की भी कमी नहीं है। फिर भी, दिन-प्रतिदिन कम होता रोजगार एक गंभीर संकट पैदा कर रहा है। स्थिति यह है कि एक-एक पद के लिए हजारों आवेदक अपना आवेदन भेजते हैं। ऐसे वक्त में, जब नौजवानों को देश का भविष्य बताया जा रहा है, तब नौजवानों को नजरंदाज करना सत्तासीन दलों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। जाति-पांति की तमाम बहसों से ऊपर उठकर सत्तानायकों को देश के लिए सोचना चाहिए। मगर मुश्किल यह है कि सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, सब अपने-अपने हितों के लिए नौजवानों को छलते आए हैं। (आयुष राज, आरा)
लचीला कानून
हमारे देश का कानून कितना लचीला है, यह निर्भया केस से पता चलता है। सात वर्ष हो गए, पर अब तक निर्भया के माता-पिता को इंसाफ नहीं मिल सका है। सजा टालने के तमाम पैंतरे दोषियों द्वारा अपनाए जा रहे हैं। इस कारण उनकी फांसी टलती जा रही है। इससे ऐतराज नहीं कि आरोपी को अपनी बेगुनाही साबित करने का पूरा मौका मिलना चाहिए, लेकिन जब उसका दोष साबित हो जाए, तो फिर न्याय में देरी क्यों? क्या निर्भया मामले से हम कोई सबक लेंगे। दोष साबित हो जाने के बाद सजा मिलने में देर नहीं होनी चाहिए। (छविराम वर्मा, शाहजहांपुर)
किसानों को मुआवजा
टिड्डी दल के आक्रमण से राजस्थान का पश्चिमी क्षेत्र प्रभावित है। इसने फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया है। हालांकि कई जन-प्रतिनिधियों ने इस इलाके का दौरा भी किया है, पर अभी तक किसानों को किसी प्रकार का मुआवजा नहीं मिला है। केंद्र और राज्य सरकार को इस ओर संवेदनशीलता और गंभीरता दिखाने की जरूरत है। (अली खान, जैसलमेर, राजस्थान)