मुनाफे की रनवे पर
एअर इंडिया की घर वापसी बहुत ही सुखद है। यह बेहद जरूरी था, क्योंकि टाटा समूह ही इसके घाटे को पाटने की हिम्मत रखता है। अब इस एयरलाइन्स के बुरे दिन खत्म होने के आसार बढ़ गए हैं। एक समय ऐसा भी था, जब इसकी...
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एअर इंडिया की घर वापसी बहुत ही सुखद है। यह बेहद जरूरी था, क्योंकि टाटा समूह ही इसके घाटे को पाटने की हिम्मत रखता है। अब इस एयरलाइन्स के बुरे दिन खत्म होने के आसार बढ़ गए हैं। एक समय ऐसा भी था, जब इसकी गिनती दुनिया की प्रतिष्ठित विमान सेवाओं में हुआ करती थी। इसके वे सुनहरे दिन फिर से लौट सकते हैं। टाटा समूह के पास एक अच्छा मौका है कि वह एअर इंडिया को फिर से उसकी पहचान और सम्मान दिलाए। एअर इंडिया को अत्यधिक ऑपरेटिंग कॉस्ट और विदेशी मुद्रा में घाटे के चलते भारी नुकसान उठाना पड़ रहा था। उम्मीद है, टाटा समूह इस समस्या का उचित समाधान खोज लेगा। टाटा समूह के इतिहास को देखते हुए कहा तो यही जाएगा कि एअर इंडिया फिर से मुनाफे की रनवे पर अपनी उड़ान भर सकती है।
समराज चौहान, असम
सतर्कता और टीकाकरण
कोरोना महामारी की दूसरी लहर थमने के बाद आर्थिक गतिविधियां पुराने दिनों में लौट चुकी हैं। बाजार में पहले की भांति भीड़ देखने को मिल रही है। यातायात के साधन अपनी पूरी क्षमता के साथ यात्रियों को सेवा देने लगे हैं। विमानों को भी पूर्ववत उड़ान भरने की अनुमति दे दी गई है। बाजार, शॉपिंग मॉल, होटल, पार्क आदि सभी गुलजार हो रहे हैं। कमोबेश सभी राज्यों ने अपने-अपने यहां स्कूल खोल दिए हैं, जिनमें बच्चों का आना जारी है। ये सभी तस्वीरें सुखद एहसास देती हैं। मगर इन सबमें एक और बात सामान्य है। लोग अब सावधानी भूलते जा रहे हैं। शायद ही अब चेहरों पर मास्क दिखता है। सामाजिक दूरी का पालन तो खैर होता ही नहीं। त्योहारों के मौसम में यह लापरवाही भारी पड़ सकती है। हमें समझना होगा कि सतर्कता और टीकाकरण ही कोरोना का बचाव है।
हिमांशु शेखर, गया
बेजा विवाद
हमारे देश में स्वतंत्रता की लड़ाई विभिन्न चरणों में लड़ी गई। हर बार स्वतंत्रता सेनानियों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए खुशी-खुशी तमाम प्रताड़नाएं सहीं और फांसी का फंदा चूमा। मगर अब आजादी के सात दशकों के बाद जब राजनीतिक दल किसी स्वतंत्रता सेनानी को लेकर विभिन्न तरह की बातें करते हैं, तब हर किसी के दिल में तरह-तरह के सवाल उठने लगते हैं। वीर सावरकर भी ऐसा ही एक नाम है, जिनकी मातृभूमि के प्रति प्रतिबद्धता को लेकर समय-समय पर सवालिया निशान खड़े किए जाते हैं। ऐसा कतई नहीं होना चाहिए। हर स्वतंत्रता सेनानी ने भारत को आजाद दिलाने के लिए हर मुमकिन जंग लड़ी है। सभी का विशेष योगदान रहा है। सावरकर का भी है। इसलिए, हमें उनकी प्रतिबद्धता पर टीका-टिप्पणी करने से बचना चाहिए। यह सर्वथा अनुचित है।
विजय कुमार धानिया, नई दिल्ली
मुश्किल में उपभोक्ता
क्या सच में देश कोयले के संकट से जूझ रहा है या इसमें सरकार की कोई राजनीति है? यह सवाल इसलिए, क्योंकि इस मामले में सभी एक-दूसरे पर दोष डाल रहे हैं। केंद्र सरकार का कहना है कि उसने राज्यों को पहले ही आगाह कर दिया था। कोल इंडिया ने भी बिजली संयंत्रों को मार्च में ही पत्र लिखकर कोयले का भंडारण बढ़ाने की सलाह देने की बात कही है। उधर राज्यों का रुख अलग है। वे पूरा ठीकरा केंद्र पर डाल रहे हैं। उल्टे पूछा जा रहा है कि जब बारिश में कोयले के खदान बंद हो जाते हैं, तब कोल इंडिया ने खुद भंडारण क्यों नहीं किया? इन आरोपों-प्रत्यारोपों में आलम यह है कि कुछ राज्यों में बिजली कटौती शुरू हो गई है। विपक्ष का मानना है कि बिजली के दाम बढ़ाने के लिए यह प्रपंच किया जा रहा है। अब सच्चाई चाहे जो हो, इन सबसे देश के आम उपभोक्ता ही परेशान हो रहे हैं।
सिरेन गुप्ता, भोजपुर