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सत्य से दूर

शुक्रवार को संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित अनुराग बेहर का लेख ‘झूठ की गठरियां उतारेंगे, तभी मजबूत होगा तंत्र’ पढ़ा। अध्यापकगण सदैव से सिखाते रहे हैं कि सदा सत्य बोलो। यदि यह जिया गया होता, तो...

सत्य से दूर
हिन्दुस्तान Fri, 15 Jan 2021 10:51 PM
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शुक्रवार को संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित अनुराग बेहर का लेख ‘झूठ की गठरियां उतारेंगे, तभी मजबूत होगा तंत्र’ पढ़ा। अध्यापकगण सदैव से सिखाते रहे हैं कि सदा सत्य बोलो। यदि यह जिया गया होता, तो क्या 21वीं सदी में भी सदियों से घिसे जा रहे इस वाक्य को सिखाने-रटाने की जरूरत महसूस होती? शायद नहीं। तकनीक के इस दौर में सूचनाओं के अथाह भंडार में आज अध्यापकों के लिए यह बेहद जरूरी है कि सत्य को सिखाने के लिए उसे जिया जाए, क्योंकि अध्यापक के आचरण का विद्यार्थी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मूल प्रकृति और स्वधर्म के अनुसार आनंदपूर्ण जीवन जीना और सामाजिक क्षेत्र में लोगों के जीवन में आनंद लाने वाला किया गया प्रत्येक आचरण ही सत्य है। इसी सत्य को व्यवहार में लाना और इसके लिए संघर्ष करना इसके साथ जीना है। कई बार अंत:प्रेरणा के माध्यम से भी स्वयं ही सत्य की रक्षा के लिए सत्य सीखा और जिया जा सकता है, हमारे इतिहास में ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है। सत्य सीखना जीने का सलीका है।
हरीश कुमार, डोहर खुर्द

कुंभ का आगाज
धर्मनगरी हरिद्वार में कुंभ का आगाज हो चुका है। इसे आस्था का महापर्व माना जाता है। लाखों लोग इस पर्व में गंगा में डुबकी लगाते हैं। इस बार भी पचास लाख के करीब लोग हरिद्वार में जुटेंगे। कोरोना का कहर बेशक कम होता दिख रहा है, लेकिन यह वक्त जिम्मेदारियों से भागने का नहीं है। सभी लोगों को अपने तईं कोरोना से बचाव के उपाय करने होंगे। इस बार कुंभ की सफलता प्रशासन के साथ-साथ आम लोगों के जिम्मेदारी-निर्वाह से तय होगी।
अंकिता प्रकाश, रुड़की

ऐतिहासिक दिन
आज से प्रारंभ होने वाला देशव्यापी टीकाकरण अभियान ऐतिहासिक, सुखद और गौरवान्वित करने वाला क्षण है। इसकी हमें 9-10 महीनों से प्रतीक्षा थी। रिकॉर्ड समय में वैक्सीन तैयार करके वैज्ञानिकों ने अपनी मेधा का लोहा मनवाया है। दिनकर जी के शब्दों में कहें, तो ‘जलद-पटल में छिपा, किंतु रवि कब तक रह सकता है’? एक प्रकार से कहें, तो यह उत्सव मनाने जैसा दिवस है। लेकिन इस उत्सव के उमंग को स्थाई रूप में बदलने के लिए चिकित्सक समुदाय को अपना योगदान एक बार पुन: सुनिश्चित करना है। पहले चरण का टीकाकरण इस संपूर्ण अभियान की बुनियाद है, जिसकी मजबूती के लिए चिकित्सकों को अपना आदर्श प्रस्तुत करना होगा। चिकित्सकों को टीका लगाते देखकर आम लोगों में भरोसा मजबूत होगा, जिसका असर बाकी के चरणों में दिखेगा। यहां पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शब्द भी प्रासंगिक हो जाते हैं, ‘आओ, फिर से दीया जलाएं’।
मनोज कुमार शर्मा, स्याना

किसान बनाम सरकार
भूपिंदर सिंह मान बेशक किनारे हो गए हैं, पर सुप्रीम कोर्ट की चार सदस्यों वाली समिति पर अविश्वास जताते हुए किसानों ने यह साफ कर दिया है कि जिन कानूनों में बुनियादी खामियां हों, उनमें भला क्या बदलाव हो सकता है? अदालत के समक्ष मामले को सुलझाने का एक बेहतर अवसर था कि वह एक ऐसी समिति  बनाती, जिसमें निरपेक्ष लोग होते, पर हुआ उल्टा। नतीजतन, किसान और सरकार के बीच चल रहे तनाव में तीसरे पक्ष की दखलंदाजी से मामला और तूल पकड़ने लगा। कृषि कानूनों को लेकर कई संदेह और आशंकाएं हैं, लेकिन अन्य पक्षों ने जिस तरह से आग में घी डालने का काम किया, उससे लगता यही है कि यह मामला इतनी जल्दी निपटने वाला नहीं। किसान सरकार के सामने कमजोर क्यों न दिखते हों, पर जन-समर्थन सरकार से ज्यादा किसानों के पास है। जाहिर है, देश की राजधानी से किसान हुंकार भरेंगे, तो उसकी गूंज पूरे देश में सुनी जाएगी। 
काव्यांशी मिश्रा, मैनपुरी
 

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