फोटो गैलरी

सबको मदद मिले

मोदी सरकार द्वारा घोषित आर्थिक पैकेज एक सराहनीय प्रयास है। इससे लॉकडाउन के शिकार छोटे और बड़े उद्योग-धंधों, कारोबारियों और अन्य वर्गों को राहत देने की कोशिश की गई है। लेकिन जरूरी यह भी है कि जिन...

सबको मदद मिले
हिन्दुस्तान Thu, 14 May 2020 08:45 PM
ऐप पर पढ़ें

मोदी सरकार द्वारा घोषित आर्थिक पैकेज एक सराहनीय प्रयास है। इससे लॉकडाउन के शिकार छोटे और बड़े उद्योग-धंधों, कारोबारियों और अन्य वर्गों को राहत देने की कोशिश की गई है। लेकिन जरूरी यह भी है कि जिन उद्योगों, कारोबारियों को सरकार के इस पैकेज का लाभ मिले, वे अपने कर्मचारियों-मजदूरों की भी आर्थिक मदद करें, न कि उनके वेतन काटकर उन्हें आर्थिक संकट में डालें। मोदी सरकार ने हरेक तरह के उद्योग-धंधों और कारोबार को संजीवनी देने का प्रयास किया है, लेकिन इनमें से ज्यादातर ऐसे होंगे, जो लॉकडाउन के कारण व्यापार न होने की वजह से अपने कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थ होंगे। ऐसे लोगों की मदद सरकार कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) में जमा राशि से करे। ऐसा होने से हर जरूरतमंद को सीधा लाभ मिलेगा और इससे इन लोगों की आर्थिक मुश्किलें भी कम होंगी।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर

सख्ती की जरूरत
लगातार प्रयासों के बावजूद भारत में कोरोना का संक्रमण नियंत्रित होता नहीं दिख रहा है। इससे यही कहा जा सकता है कि अभी तक के निर्णय अपर्याप्त साबित हुए हैं। लोगों को इस बीमारी की भयावहता समझनी चाहिए। केंद्रीय और स्थानीय प्रशासन के बीच समन्वय और सामाजिक जन-जागरूकता को बढ़ाना होगा। अगर हम अपनी तुलना चीन से करें, तो वहां निरंकुश सरकार ने कम समय के लिए कठोरतापूर्वक लॉकडाउन लगाकर वायरस को फैलने से रोक दिया। इतना ही नहीं, ज्यादा से ज्यादा लोगों को जांच कराने के लिए भी प्रेरित किया गया। भले ही चीन पर संक्रमण और मौत की असली संख्या छिपाने के आरोप लगाए जा रहे हैं, लेकिन कठोर निर्णयों से उसने वायरस की शृंखला को तोड़ दिया। लोकतंत्र में हम निश्चय ही वैसी कठोरता की कल्पना नहीं कर सकते, लेकिन हमें भी आक्रामक तरीका अपनाना ही होगा, तभी इस वायरस पर जल्दी नियंत्रण पा सकेंगे। इसलिए सरकार को तत्काल एक सर्वदलीय मीटिंग बुलाकर सेना के उपयोग, आपातकाल लगाने, रक्षा खरीद में कटौती करने सहित अपनी अधिकतम क्षमता एवं संसाधनों का उपयोग करने पर विचार करना चाहिए। कोरोना वायरस का संक्रमण रोकना अब बहुत जरूरी है।
प्रीतीश पाठक, बलवाहाट, सहरसा

उचित कदम उठाएं
घर वापसी की आस लिए मजदूरों की सड़क हादसों में मौत बहुत दुखद है। औरंगाबाद की घटना के बाद मध्य प्रदेश से पलायन कर रहे मजदूरों की जिस तरह मौत हुई है, वह सरकार से कई सवाल पूछ रही है। सरकार ने मजदूरों को वापस लाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन की शुरुआत तो की, लेकिन क्यों इसका फायदा ज्यादातर मजदूरों को नहीं मिल पा रहा? मजदूरों का सब्र टूट रहा है। सरकारें उनकी मौत के बाद मुआवजे का एलान कर देती हैं, अगर यही राशि उन्हें जीते जी गंतव्य तक पहुंचाने पर खर्च की जाए, तो ऐसी अप्रिय घटनाएं ही न हों।
आबिद खां, धरॉव, चंदौली

कैसी आत्मनिर्भरता
इन दिनों ‘बीस लाख करोड़’ रुपये की खूब चर्चा हो रही है। राष्ट्र के नाम संबोधन में ‘आत्मनिर्भर’ बनने का नारा भी दिया गया। अब यही विषय है अध्ययन का। क्या हम अब तक दूसरों पर निर्भर थे? आत्मनिर्भरता का क्या यह मतलब होगा कि हम उन तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बाहर कर देंगे, जो भारत में चल रही हैं? क्या हम दूसरे देशों के उत्पाद अपने यहां नहीं आने देंगे? या विश्व व्यापार में भारत अब आयात नहीं, सिर्फ निर्यात करेगा? लगता है, हर काम सरकार के इवेंट का हिस्सा है। ऐसा नहीं होता, तो सरकारी राशि शुरुआत से ही उन लाचार-फटेहाल मजदूरों पर खर्च की जाती, जो आज हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा करने को मजबूर हैं।
जंग बहादुर सिंह,  जमशेदपुर
 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें