दागी उम्मीदवारों के खिलाफ
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में राजनीतिक पार्टियों को अपने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड जनता के साथ साझा करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ एक अहम कदम...
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में राजनीतिक पार्टियों को अपने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड जनता के साथ साझा करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ एक अहम कदम माना जा रहा है। इसको सराहा जाना चाहिए। संपत्ति के ब्योरे की तरह अब दागी उम्मीदवारों के अपराधों का ब्योरा शायद मतदाताओं की आंखें खोल सके! वरना अभी तक तो लोग अपने प्रतिनिधियों के जघन्य अपराधों से अनजान होकर ही वोट दिया करते थे। सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद राजनीतिक दल दागी उम्मीदवारों को टिकट देने से पहले कई बार सोचेंगे। हालांकि अच्छा होता, यदि शीर्ष अदालत थोड़ा और सख्त रुख अपनाते हुए दागी प्रतिभागियों के चुनाव लड़ने पर ही पाबंदी लगा देती। इससे न रहता बांस, न बजती बांसुरी। हालांकि देर-सवेर ऐसा होगा ही। (सुभाष बुड़ावनवाला, काटजू नगर)
बेगानी शादी में
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का अस्तित्व दिन-प्रतिदिन खत्म होता जा रहा है। इस पार्टी को अपना वजूद बचाए रखने के लिए अथक संघर्ष करना पड़ रहा है। राष्ट्रीय राजधानी से तो यह लुप्तप्राय: हो गई है। यहां कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगातार गिरता जा रहा है। हालांकि इससे भी दुखद बात यह है कि कांग्रेस के नेताओं को न तो गिरते वोट प्रतिशत की चिंता है, न ही गिरते साख की। वे तो सिर्फ बीजेपी की हार से खुश हैं। उनको पिछले दो विधानसभा चुनावों में एक भी सीट न मिलने का कोई पछतावा नहीं है। यह कितना हास्यास्पद है कि पार्टी अपनी हार पर मंथन करने की बजाय इस बात पर ताली बजा रही है कि भाजपा हार गई। चुनाव में जीत-हार स्वाभाविक है, लेकिन जिस तरह से दिल्ली में कांग्रेस ने हथियार डाल दिए हैं, वह इस राष्ट्रीय पार्टी के लिए शर्मनाक है। (नीरज कुमार पाठक, नोएडा)
भाजपा के लिए सबक
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आए नतीजों के दो संदेश हैं। पहला, आम आदमी पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई, और दूसरा, भाजपा को पिछले दो वर्षों में विधानसभा चुनावों में सातवीं बार हार का सामना करना पड़ा। राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड जैसे राज्यों को गंवा चुकी भाजपा कुछ महीने पहले तक देश के 70 फीसदी हिस्सों पर सत्ता में थी, मगर जल्दी ही यह आंकड़ा घटकर 40 फीसदी से भी नीचे आ गया। यह शायद ही किसी ने सोचा होगा कि 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत मिलने के बाद पार्टी की यह गति होगी। यह स्पष्ट संकेत है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को नए सिरे से नीतियों का निर्माण करना होगा। उन्हें समझना होगा कि स्थानीय चुनावों में स्थानीय मुद्दे ही जीत दिला सकते हैं। इसके अलावा, पार्टी को स्थानीय चुनावों के लिए नरेंद्र मोदी का वैकल्पिक चेहरा भी ढूंढ़ना होगा। हर चुनाव प्रधानमंत्री के नाम पर नहीं जीता जा सकता। अगर ऐसा नहीं किया जाएगा, तो भाजपा भी कांग्रेस की तरह एक चेहरे के ईद-गिर्द सिमटकर रह जाएगी। (कमलेश भट्ट, देहरादून)
सुशासन की जीत
दिल्ली की ‘गुड गवर्नेंस थीम’ ने राजनीतिक गलियारों में शंखनाद का काम किया है। इसे हम पुनर्जागरण के रूप में देख सकते हैं, जो राज्य के विधानसभा चुनाव में नया सवेरा लेकर आएगी। कई राज्य सरकारों ने भावी चुनाव के मद्देनजर इससे प्रेरणा लेना शुरू कर दिया है। स्थानीय मुद्दे, जैसे सरकारी स्कूलों के मॉडल, मोहल्ला क्लीनिक, महिलाओं की सुरक्षा, बिजली-पानी के मामले आदि, कल्याणकारी राज्यों का सुनहरा सपना पूरा करने में मील का पत्थर साबित होंगे। इस तरह के प्रयोग धु्रवीकरण की नकारात्मक राजनीति को भी कमजोर करने में सहायक सिद्ध होंगे। देखा जाए, तो भावी भविष्य हमें सकारात्मक, ऊर्जावान और विकाशशील रास्ते की ओर ही संकेत कर रहा है। (अंशिका गुप्ता, पीपीयू)