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आंदोलन के खिलाफ

नौजवानों का हिंसक गतिविधियों में शामिल होना चिंतनीय है। हाल ही में बिहार सरकार ने एक दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा है कि हिंसक-गतिविधियों में शामिल युवाओं के लिए सरकारी नौकरी की राह मुश्किल होगी।...

आंदोलन के खिलाफ
हिन्दुस्तान Thu, 11 Feb 2021 11:25 PM
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नौजवानों का हिंसक गतिविधियों में शामिल होना चिंतनीय है। हाल ही में बिहार सरकार ने एक दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा है कि हिंसक-गतिविधियों में शामिल युवाओं के लिए सरकारी नौकरी की राह मुश्किल होगी। सरकार चाहती है कि हमारे युवा हिंसक न हों। बेशक हिंसा देशहित व समाजहित में नहीं है, मगर सवाल यह है कि अगर नौजवान जायज मांग के लिए आंदोलन कर रहे हों और कुछ असामाजिक तत्व आंदोलन को हिंसक रूप दे दें, तब क्या होगा? ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि हिंसक आंदोलनों में निर्दोष ही फंस जाते हैं। उसमें पुलिस की क्या भूमिका रहती है, इसे कहने की जरूरत नहीं है? राजनीतिक दलों की भूमिका भी किसी से छिपी नहीं है। इससे लगता है कि सरकार चाहती है, राज्य के युवा उसके खिलाफ कोई आंदोलन न करें। अगर हिंसा रोकना मकसद है, तो सरकार क्या उन नेताओं पर भी अंकुश लगाएगी, जो किसी राजनीतिक आंदोलन को हिंसक रूप देते हैं?
अरुणेश कुमार, मोतिहारी, बिहार

डिजिटल होता भारत
जिस प्रकार से केंद्र सरकार ने डिजिटल इंडिया का आह्वान किया और जनता की हर जगह पहुंच आसान बनाने की कोशिश की, वह आज के दौर में काबिले-तारीफ है। वाकई, आज हमें इसकी सर्वाधिक जरूरत थी, क्योंकि पूरी दुनिया वैज्ञानिक तकनीकी में तमाम तरह के प्रयोग कर रही है और दूसरे ग्रहों तक पर अपनी पहुंच बनाने को आतुर है। ऐसे में, हमारा देश भला पीछे रहे यह कतई ठीक नहीं। प्रधानमंत्री की सोच और प्रयासों से हमारा देश डिजिटल होने की अपेक्षित राह पर आज तेजी से बढ़ चला है।
श्याम सुंदर, भरुहिया चंदौली

बढ़ते दाम, घटती कमाई
कोरोना महामारी के कारण पहले से ही आम आदमी के जीवन में उथल-पुथल है, लेकिन अब पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम से पूरा जनजीवन अस्त-व्यस्त होता दिख रहा है। भले ही इससे केंद्र और राज्य सरकारों की आर्थिक गाड़ी पटरी पर लौट आएगी, लेकिन आम लोगों के जीवन की गाड़ी बेपटरी हो जाएगी। कोरोना के दुष्प्रभाव से लड़ते लोगों के लिए बढ़ते ईंधन का भार एक कठोर प्रहार है, क्योंकि पेट्रोल-डीजल हो या रसोई गैस, ये सभी चीजें आम लोगों की जरूरतें हैं। कोरोना संक्रमण काल की वजह से बढ़ी महंगाई के बीच इन सबके दामों में तेजी से जनता बेचारी बन गई है। आज सबके मन में यही डर है कि कहीं इन पेट्रो उत्पादों के दाम शतक न लगा दें। सरकार ऐसे प्रयास करे कि आम जनता को राहत मिले। तभी सुस्त पड़ा भारतीय बाजार भी गति पकड़ सकेगा।
आदित्य जयसवाल, धनबाद,  झारखंड 

तबाही की वजह
हम एक के बाद दूसरी तबाही से जूझ रहे हैं। अभी कोरोना-काल की तबाही पूरी तरह खत्म भी नहीं हुई है कि उत्तराखंड में कुदरती सैलाब आ गया। इस घटना के जो वीडियो सामने आए हैं, वे बेहद डरावने हैं। न जाने कितने लोगों को पहाड़ी सैलाब बहा ले गया। इसकी कल्पना मात्र से ही हृदय बेचैन हो जाता है। ऐसे में, हमें यह सोचना चाहिए कि आखिर क्यों इस तरह की आपदाएं मानव जाति को चुनौती दे रही हैं? मेरा मानना है कि इस तरह की मुश्किलों का जन्मदाता मानव खुद है। हम अब भी इससे अनभिज्ञ जान पड़ते हैं कि हरियाली का विनाश मानव जाति के लिए कितना घातक है? मानव अपने स्वार्थवश वनों की कटाई कर रहा है और पहाड़ों को तोड़ता जा रहा है। नतीजतन, वह अपने ही हाथों अपनी मौत खरीद रहा है। औद्योगिकीकरण के नाम पर जगह-जगह कारखाने बन रहे हैं, जिनसे निकलने वाले अति-विषैले प्रदूषक तत्व तापमान को गरम करते हैं। इसका असर ग्लेशियर पर भी पड़ता है। लिहाजा, ‘हरियाली बढ़ाओ, देश बचाओ’ पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है।
माधुरी शुक्ला, सारनाथ, वाराणसी

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