हिंसा की वजह
करीब 200 वर्षों में पहली बार अमेरिकी संसद पर हमला हुआ है। इस हिंसा का प्रमुख कारण निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चुनावी हार को नकारना है। आरोप है कि उन्होंने अपने समर्थकों को ऐसा करने के...
करीब 200 वर्षों में पहली बार अमेरिकी संसद पर हमला हुआ है। इस हिंसा का प्रमुख कारण निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चुनावी हार को नकारना है। आरोप है कि उन्होंने अपने समर्थकों को ऐसा करने के लिए उकसाया। हालांकि, अमेरिकी समाज में श्वेत और अश्वेत के बीच बढ़ती खाई ने भी लोगों को उकसाया है। इस विभाजन को अमेरिकी चुनाव में खूब हवा दी गई है। कोरोना काल में इस तरह का विभाजन अमेरिका के लिए घातक साबित हो सकता है, क्योंकि सामाजिक उथल-पुथल से यह देश कमजोर होगा। ऐसे में, नजर अब इसी बात पर होगी कि जो बाइडन इस खाई को कैसे पाटते हैं? सभी को यह समझना होगा कि अस्वीकार्यता अराजकता का पर्याय नहीं है। अपने यहां भी ऐसे काफी सारे तत्व हैं, जो अस्वीकार्यता की आड़ में अराजकता को बढ़ावा देना चाहते हैं। उनसे सतर्क रहने की जरूरत है।
वीरेंदर कनोजिया
पर्यावरण के हित में
शिक्षा का मतलब मात्र किताबी ज्ञान या डिग्री हासिल करना नहीं है, बल्कि देश, समाज, पर्यावरण आदि के हित के बारे में भी जानना जरूरी है, वरना यह साल भी पुराने वर्ष की तरह नाउम्मीदी में बीत जाएगा। मोदी सरकार ने शिक्षा नीति में बदलाव करके एक सराहनीय काम किया है। नई नीति में भावी पीढ़ी को देश की राष्ट्रभाषा, स्थानीय भाषा, यहां तक कि संस्कृत भाषा से गूढ़ परिचय कराने और छठी कक्षा के बाद से ही वोकेशनल विषय से रूबरू कराने का प्रावधान है। यही नहीं, इस नीति में उच्च कक्षाओं के विद्यार्थियों को खेल, संगीत, पर्यावरण आदि के साथ जोड़ने का भी सराहनीय प्रयास किया गया है। इन सबसे बच्चों में मूल्य, हुनर और कौशल का विकास होगा। मगर यह तभी संभव होगा, जब जमीन पर इस नीति को संजीदगी से लागू किया जाएगा।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
साथ में मुकाबला
कुछ लोगों का मानना है कि 2021 पिछले साल से बेहतर होगा, लेकिन कई लोग इससे इत्तफाक नहीं रखते। तमाम तरह की भविष्यवाणियां की जा रही हैं। असलियत का पता तो समय के साथ ही होगा, लेकिन जो भी हो, हमें हौसला कायम रखना चाहिए। परिस्थितियां कैसी भी हों, उनका डटकर मुकाबला करना ही जीवन की परीक्षा में हमें सफल बना सकता है। यदि हम पहले से निराश और हताश होकर बैठ जाएंगे, तो कठिन परिस्थिति का सामना करने के कतई काबिल नहीं रहेंगे। हमारा दायित्व है कि हम स्वयं संभलें और अपने आसपास जितना संभव हो, दूसरों को संभालें। यदि आत्मिक चैन मिलता रहेगा, तो कोई भी विपरीत परिस्थिति हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। इसलिए एक-दूसरे का हाथ थामने की अभी हमें भले मनाही हो, पर दिल के तार जुड़े रहने चाहिए।
रंजना मिश्रा, कानपुर, उत्तर प्रदेश
ताकि बर्बादी न हो
भारतीय संस्कृति में अन्न को देवता का दर्जा प्राप्त है। यही कारण है कि भोजन को जूठा करके छोड़ना या उसका अनादर करना पाप माना जाता है। मगर आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम अपना यह संस्कार भूल गए हैं। नतीजतन, होटल-रेस्तरां के साथ-साथ शादी-विवाह जैसे आयोजनों में ढेर सारा खाना बर्बाद करते हैं। एक तरफ असंख्य लोग दाने-दाने को मोहताज हैं, तो दूसरी तरफ अन्न की यूं बर्बादी हो रही है। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में बढ़ती संपन्नता के साथ लोग खाद्यान्न के प्रति असंवेदनशील भी हो गए हैं। खर्च करने की क्षमता बढ़ने के साथ उनमें खाना फेंकने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है। इस सोच को खत्म करना बहुत जरूरी है। हमारे देश में हर साल 25.1 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन होता है, लेकिन हर चौथा भारतीय भूखे पेट सोता है। इस चुनौती से पार पाने के लिए ठोस नीति बनानी पड़ेगी।
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम