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तालिबान की वापसी

आखिरकार अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी हो ही गई। दो दशक के बाद काबुल एक बार फिर तालिबान के कब्जे में है। उसके लड़ाकों ने जिस आक्रामकता के साथ काबुल कूच किया, वह दुनिया को हैरान करने वाला था।...

तालिबान की वापसी
हिन्दुस्तानThu, 09 Sep 2021 10:53 PM

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आखिरकार अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी हो ही गई। दो दशक के बाद काबुल एक बार फिर तालिबान के कब्जे में है। उसके लड़ाकों ने जिस आक्रामकता के साथ काबुल कूच किया, वह दुनिया को हैरान करने वाला था। अफगानिस्तान में मची अफरा-तफरी का दुनिया ने जो मंजर देखा, उसके पीछे तालिबानी शासन का वह खौफनाक अतीत था, जिसे लोग फिर से जीना नहीं चाहते। बहरहाल, तालिबान अब अफगानी समाज की नई राजनीतिक सच्चाई है और शरिया ही उसका संविधान होगा, तो लोगों को उसी के अनुरूप व्यवहार करने की बाध्यता होगी। नई सरकार ने इसे लेकर अपनी प्रतिबद्धता भी जाहिर कर दी है। इसलिए अफगानी समाज समेत पूरी दुनिया की निगाहें जिस पर टिकी हैं, वह है स्थानीय लोगों को दी जाने वाले आजादी और अधिकार, खासतौर से महिलाओं व लड़कियों को लेकर तालिबानी नेतृत्व क्या व्यवस्था बनाता है, यह देखने वाली बात होगी।
बीरेंद्र कुमार, बेगूसराय

दिवस किसके लिए
कल हिमालय दिवस मनाया गया। इसका उद्देश्य हिमालय के प्रति अपने कर्तव्य को समझना है। कई लोगों ने पर्यावरण को लेकर चिंता जताई, लेकिन क्या वास्तव में ऐसी चिंताओं का महत्व है। अगर लोग इतने ही चिंतित हैं, तो इस बात को बार-बार जाहिर करने की क्या आवश्यकता है कि आज फलां दिवस है, तो आज ढिकाना दिवस। पर्यावरण को लेकर इस प्रकार के और भी दिवस मनाए जाते हैं, जैसे- 5 जून को पर्यावरण संरक्षण दिवस, 11 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस। दरअसल, जैव विविधता, औषधीय वनस्पतियों और खनिज संपदा के लिए विख्यात हिमालय के संरक्षण पर आज सवाल उठ रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर क्यों मनुष्य अपने नैतिक मूल्यों से विचलित हो जाता है और उसको बार-बार विभिन्न दिवस आयोजित करके नैतिकता का बोध कराना पड़ता है? यहां हरिशंकर परसाई की यह पंक्ति उचित लगती है कि दिवस कमजोरों का मनाया जाता है, जैसे- महिला दिवस, मजदूर दिवस आदि। कभी थानेदार दिवस नहीं मनाया जाता। क्या प्रकृति को भी हमने कमजोर की श्रेणी में रख दिया है?
शिवानी शर्मा, हरिद्वार 

उचित सुझाव
गुरुवार को प्रकाशित आलेख खेती पर भारी पड़ता टकराव पढ़ा। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री वाई के अलघ ने नए कृषि कानूनों और इनके विरोध में आंदोलन कर रहे किसानों के संदर्भ में जो बातें कही हैं, वे अत्यंत सराहनीय हैं। केंद्र सरकार और विशेषकर केंद्रीय कृषि मंत्री को वाई के अलघ की बातों पर गौर करना चाहिए। कुल मिलाकर, शुरुआत सरकार को ही करनी होगी। जितनी जल्दी वह इस प्रयास को शुरू करेगी, अर्थव्यवस्था व खेती को उतना कम नुकसान होगा। किसान आंदोलन के संबंध में जो गतिरोध है, उसे समाप्त करने और समस्या के समाधान का सर्वमान्य विकल्प इससे बेहतर शायद नहीं हो सकता।
अशोक सिंह, जहानाबाद, बिहार

पशुओं से बर्बरता
कर्नाटक में 100 से भी ज्यादा कुत्तों को जहर देकर मारने के बाद दफनाने की घटना सामने आई है। शिमोगा जिले में कुत्तों को पहले जहर दिया गया, फिर उनके मरने के बाद दफना दिया गया। पुलिस ने इस मामले की जांच करते हुए एक ग्राम पंचायत अधिकारी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। कर्नाटक में ही कुछ दिनों पहले 150 बंदरों को मारने की घटना देखने को मिली थी। मूक पशुओं के प्रति इतनी घृणा और क्रूरता निंदनीय है, जबकि कुत्ते जैसा वफादार कोई जीव नहीं। कर्नाटक सरकार को इस मामले में सख्त से सख्त कदम उठाना चाहिए, ताकि भविष्य में कोई जानवरों के साथ ऐसी क्रूरता न कर सके।
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम
 

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