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संकीर्ण सोच

देश के वैज्ञानिकों ने कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए स्वदेशी टीका बनाकर सभी भारतीयों को नए साल का तोहफा दिया है। इस नेक कार्य में शामिल सभी लोग बधाई के पात्र हैं। परंतु सबसे अचंभित करने वाला सच यह है...

संकीर्ण सोच
हिन्दुस्तानTue, 05 Jan 2021 09:20 PM
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देश के वैज्ञानिकों ने कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए स्वदेशी टीका बनाकर सभी भारतीयों को नए साल का तोहफा दिया है। इस नेक कार्य में शामिल सभी लोग बधाई के पात्र हैं। परंतु सबसे अचंभित करने वाला सच यह है कि विपक्षी दल इस पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं, मानो उन्होंने हर विषय पर सरकार का विरोध करने का निर्णय कर लिया हो! वैक्सीन लगवाना या न लगवाना, किसी का निजी फैसला हो सकता है, लेकिन यह जाहिर करना कि भाजपा सरकार के समय का टीका नहीं लगवाएंगे, एक संकीर्ण सोच है। इस प्रकार की टीका-टिप्पणी नि:स्वार्थ भाव और परहित में लगे लोगों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। राजनीति को अगर दरकिनार कर दें, तब भी शोध-अनुसंधान के क्षेत्र में यह एक बड़ी उपलब्धि है, और इसके सफल परिणाम दूसरे देशों को भी हमारी ओर आकर्षित करेंगे। इससे देश को सम्मान और अर्थ, दोनों लाभ प्राप्त होंगे।
मृदुल कुमार शर्मा,  गाजियाबाद


दिशा भटकता आंदोलन
देश का संविधान प्रत्येक नागरिक को सरकार की नीतियों का विरोध करने का हक देता है, लेकिन उस विरोध से किसी के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए और न सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचना चाहिए। किसान आंदोलन इस लिहाज से भटकता हुआ दिख रहा है। किसानों को अपने अधिकारों के लिए बेशक लड़ना चाहिए, लेकिन आंदोलन के नाम पर मोबाइल टावर तोडे़ जा रहे हैं, टोल-नाके और मॉल बंद किए जा रहे हैं, नेताओं के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है, देश-विरोधी मामलों में आरोपित लोगों की रिहाई की मांग की जा रही है, और अब तो गणतंत्र दिवस समारोह में रुकावट डालने की तैयारी की जा रही है। यह बिल्कुल सही नहीं है।
सुनील कुमार सिंह, मोदीपुरम, मेरठ


घटिया निर्माण रुके
देश में घटिया निर्माण की वजह से कई बार नव-निर्मित भवन और ब्रिज गिरे हैं, लेकिन कभी किसी सरकार ने इस समस्या को जड़ से समाप्त करने का प्रयास नहीं किया है। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के मुरादनगर में कुछ भ्रष्ट लोगों की करतूत से 20 से अधिक लोग श्मशान घाट में ही अपनी जान गंवा बैठे। इस तरह की हर घटना के बाद शोक-संवेदनाओं और मुआवजे की घोषणा आम बात है, लेकिन यह समस्या का समाधान नहीं है। स्थानीय लोगों ने निर्माण के समय ही घटिया सामग्री की शिकायत की थी, लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई। नेताओं व वरीय अधिकारियों की मिलीभगत का यह कुफल है। इसलिए यदि सरकार ऐसी समस्या का अंत करना चाहती है, तो उसे इस निर्माण-कार्य से जुडे़ सभी लोगों के विरुद्ध हत्या का मामला दर्ज करना चाहिए। घटिया निर्माण-कार्य सरकार के माथे पर कलंक है। इसे धोना उसका फर्ज होना चाहिए।
हिमांशु शेखर, गया


कब सुनेगी सरकार
इतनी ठंड और बारिश में जब छोटे बच्चे और बूढे़ सड़क पर पड़े हों, तब कोई कैसे आराम से सो सकता है? सरकार यदि इनको किसान नहीं मानती, जैसा कि माहौल बना दिया गया है, तो बातचीत का ढोंग क्यों किया जा रहा है? और यदि इनको किसान मानती है, तो उनके प्रति यह निष्ठुरता कोई भी संवेदनशील इंसान भला कैसे बर्दाश्त कर सकता है? लोकतंत्र में अपने अधिकारों की मांग करना क्या गलत है? आखिरकार सरकार कब इन अन्नदाताओं की सुनेगी? कृषि पर आधारित हमारी अर्थव्यवस्था देश के करोड़ों लोगों को रोजी-रोटी देती है। ऐसे में, यदि किसान नहीं चाहते, तो सरकार क्यों नहीं कानूनों को वापस ले लेती है? जब जीवन का विषय हो, तब अच्छे राजनेता को जनहित में झुक जाना चाहिए, पर यहां तो सरकार अड़ी हुई है। केंद्र सरकार को अन्नदताओं की मांगों पर गंभीरता से सोचना चाहिए।
मुनीश कुमार, रेवाड़ी

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