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मदरसों में एनसीईआरटी

मदरसों में एनसीईआरटी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मदरसों में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम को लागू करना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। इससे मदरसों में पढ़ने वाले छात्र दीनी तालीम के साथ-साथ दुनियावी और वैज्ञानिक...

मदरसों में एनसीईआरटी
हिन्दुस्तानThu, 02 Nov 2017 09:50 PM
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मदरसों में एनसीईआरटी
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मदरसों में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम को लागू करना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। इससे मदरसों में पढ़ने वाले छात्र दीनी तालीम के साथ-साथ दुनियावी और वैज्ञानिक तालीम भी हासिल कर सकेंगे। इससे जाहिर तौर पर मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों के लिए और ज्यादा संभावनाएं बढ़ेंगी। असल में, एक भ्रांति हमारे समाज में लगातार फैलाई जाती रही है कि मदरसों में मजहबी कट्टरता की शिक्षा दी जाती है, जबकि सच्चाई यह नहीं है। अच्छा है कि एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के लागू होने के बाद लोग मदरसों को और ज्यादा करीब से समझ सकेंगे। तब उन्हें यह पता चलेगा कि मदरसों में नैतिकता और एक आदर्श नागरिक बनने का पाठ पढ़ाया जाता है, न कि कट्टरता का।
मोहम्मद राशिद अली, रामपुर

निष्क्रिय क्यों है सरकार
संसद व राज्य विधानसभा के चुनावों से सजायाफ्ता प्रत्याशी को दूर रखने में हमारी लोकसभा व राज्यसभा अक्षम रही है। ऐसे में, सुप्रीम कोर्ट का इस विषय पर संजीदा होना महत्वपूर्ण है। अदालत ने कहा है कि दागी नेताओं के केस की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बनने चाहिए। हालांकि चुनाव आयोग ने यह जवाब दिया है कि वह सजायाफ्ता सांसदों-विधायकों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के पक्ष में है, पर सवाल यह है कि क्या केंद्र सरकार इस मसले पर गंभीर होगी? सच यही है कि केंद्र में चाहे जिस किसी पार्टी की सरकार रही हो, दागी नेताओं को चुनाव से दूर रखने में किसी ने भी गंभीरता नहीं दिखाई। सरकारें बीस सूत्रीय कार्यक्रम, नसबंदी कार्यक्रम, मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने, नोटबंदी जैसे बड़े फैसले तो सजग होकर ले लेती हैं, पर वे दागी नेताओं को चुनाव से दूर करने से बचती रही हैं। शायद इसीलिए अब सुप्रीम कोर्ट ने यह काम करने का बीड़ा उठाया है। 
घनश्याम जी बैरागी, भिलाईनगर

स्कूली बच्चों की सुरक्षा 
स्कूल वह जगह है, जहां बच्चों को घर के बाद सबसे सुरक्षित माना जाता है। पर अब स्कूलों में बच्चों के साथ बलात्कार, छेड़खानी, हत्या जैसे मामले बढ़ रहे हैं। इससे अभिभावकों में अविश्वास गहरा रहा है। ऐसी घटनाओं की वजह बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाए गए नियमों की अनदेखी व शिक्षा का व्यवसायीकरण है। हाल ही में एक खबर में बताया गया कि दिल्ली के अधिकतर सरकारी स्कूलों में बच्चों के पास पहचान पत्र नहीं है। ऐसा इसलिए, क्योंकि स्कूलों के पास इन्हें बनवाने के लिए किसी विशेष फंड की व्यवस्था नहीं है। ऐसी लापरवाही समझ से परे है। उम्मीद है कि सरकार इस मसले पर जल्द गौर करेगी और उचित कदम उठाते हुए बच्चों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देगी।
गौरव त्रिपाठी

बढ़ता सियासी तापमान
हिमाचल प्रदेश में तमाम पार्टियां अपना-अपना एजेंडा लेकर मतदाताओं के बीच जा रही हैं। सभी को अपनी जीत की उम्मीद है। मगर जहां तक मतदाताओं की बात है, तो इस पहाड़ी राज्य की जनता कई समस्याओं का सामना कर रही है। वह मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित है। चुनाव के दौरान पार्टियां लोक-लुभावन वादे तो करती हैं, पर चुनाव संपन्न होने के बाद सभी वादे बिसरा दिए जाते हैं। अब तक भाजपा और कांग्रेस, दोनों ने बारी-बारी से इस प्रदेश पर शासन किया है, पर इस राज्य की स्थिति नहीं बदल सकी है। अभी राज्य में कांग्रेस का शासन है, पर राज्य के मुखिया वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी पर आय से अधिक संपत्ति का मामला भी चल रहा है। बहरहाल, किसी बहकावे में आकर  प्रत्याशी की ईमानदारी की जांच किए बिना वोट देना गलत होगा। प्रदेश के विकास के लिए जो पार्टी आगे आकर भरोसा दिलाएगी, जनता को उसे ही वोट देना चाहिए। यह सही है कि मतदाताओं को कई तरह के लालच दिए जा रहे हैं, पर वे उसमें कितना फंसते हैं, यह तो वक्त ही बताएगा।
कांतिलाल मांडोत, सूरत

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