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साजिश या हादसा

साजिश या हादसा रेल मंत्री को बदलने के बाद भी रेल गाड़ियां लगातार बेपटरी हो रही हैं। इन घटनाओं को कुछ लोग सियासी साजिश के तौर पर देख रहे हैं। मगर हकीकत में ऐसा नहीं लगता। यह समझने की बात है कि महज...

साजिश या हादसा
हिन्दुस्तानMon, 11 Sep 2017 11:22 PM
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साजिश या हादसा
रेल मंत्री को बदलने के बाद भी रेल गाड़ियां लगातार बेपटरी हो रही हैं। इन घटनाओं को कुछ लोग सियासी साजिश के तौर पर देख रहे हैं। मगर हकीकत में ऐसा नहीं लगता। यह समझने की बात है कि महज चेहरे बदलने से या किसी के इस्तीफे मात्र से कुछ नहीं होने वाला। जरूरत बुनियादी समस्या को दूर करने की है। जैसे, रेलवे में कर्मचारियों, सही इन्फ्रास्ट्रक्चर और पारदर्शी दायित्व का घोर अभाव है। दुर्भाग्य से जनसंख्या वृद्धि के बाद भी यह हालत है, जबकि माना यही जाता है कि अगर मानव-संसाधन पर्याप्त मात्रा में हों, तो ऐसे हादसे रोके जा सकते हैं। रेल हादसे को रोकने के लिए कर्मचारियों को जरूरी साजो-सामान मुहैया कराना होगा और इन्फ्रास्ट्रक्चर दुरुस्त करना होगा, लेकिन दुर्भाग्य से सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही।
वेद मामूरपुर,नरेला

मौत पर राजनीति
किसी की मौत पर हमारे देश में राजनीति कोई नई बात नहीं है। मौका मिलते ही सभी एक-दूसरे पर आक्षेप करने में जुट जाते हैं। गौरी लंकेश का ही उदाहरण लें। लंकेश चाहे किसी भी विचारधारा से संबंध रखती हों, पर उनकी हत्या को लेकर नेताओं द्वारा राजनीति करना मानवीय आधार पर शोभनीय नहीं है। इसी बात का फायदा असामाजिक तत्व उठाते हैं। असल में, इस पूरी घटना को सत्य का गला दबाने के रूप में देखा जाना चाहिए। पत्रकार प्रबुद्ध समाज का वह हिस्सा है, जो अपनी लेखनी के बल पर देश व समाज को सच का आईना दिखाता है, इसलिए उसकी मौत को तमाशा मत बनाइए। लंकेश की हत्या की निष्पक्षता से जांच हो और जो भी दोषी हो, उसे सजा मिले। पत्रकार फिर कभी सच की बेदी पर न चढ़ पाएं, इसकी भी कोशिश होनी चाहिए।
अनुपमा अग्रवाल, आगरा रोड, अलीगढ़

हमारी आभासी दुनिया
पहले के जमाने में खेल शब्द सुनते ही मन में जोश और उमंग का संचार होने लगता था। शारीरिक श्रम वाले खेल बच्चों को मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाते थे। उनमें नेतृत्व-क्षमता और सामुदायिक भावना का विकास होता था। मगर अब खेल अकेले ही खेले जाते हैं, और वह भी इंटरनेट या कंप्यूटर पर। इन खेलों के माध्यम से लोग बाहरी दुनिया से कट जाते हैं और एक आभासी दुनिया से घिर जाते हैं। उन्हें अपने आस-पास से कोई मतलब नहीं होता। इस कारण हमारी संवेदनाएं भी खत्म होने लगती हैं और हम अतिवादी कदम उठाने लगते हैं। ब्लू व्हेल से होने वाली मौतें इसके उदाहरण हैं। यह सही है कि आज सोशल मीडिया का महत्व बढ़ चला है, पर हमें इसके नकारात्मक पहलू की ओर भी ध्यान देना चाहिए। यदि हम इसके नकारात्मक पहलुओं को किनारे कर पाएं, तो इंटरनेट का काफी फायदा उठ सकते हैं। 
अच्युत द्विवेदी, लखनऊ

स्कूलों में सुरक्षा 
गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में सात साल के मासूम छात्र प्रद्युम्न की निर्मम हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया है। आखिर उस अबोध ने किसी का क्या बिगाड़ा था? उसने तो अभी जिंदगी के साथ कदमताल मिलाना शुरू ही किया था। इस हत्या के पीछे असली वजह क्या है, इसका पता तो उचित जांच-पड़ताल से ही चलेगा, मगर यह भयावह घटना स्कूल-प्रशासन की ओर से सुरक्षा मामलों  को लेकर बरती जाने वाली गंभीर लापरवाही को भी दर्शाती है। सवाल यह भी है कि आखिर बच्चों के साथ स्कूल परिसर में छेड़छाड़, यौन-शोषण जैसे हादसे दिनोंदिन क्यों बढ़ते जा रहे हैं? ऐसी घटनाओं में आमतौर पर नामी स्कूलों का नाम ही सामने आता है। अभिभावकों से भारी-भरकम फीस लेने के बावजूद नौनिहालों की सुरक्षा को नजरअंदाज करना विद्यालय प्रबंधन की संवेदनहीनता व काहिली को उजागर करता है। भविष्य में ऐसे हादसे न हों, इसके लिए शासन-प्रशासन को तमाम शिक्षण संस्थानों, खासकर निजी विद्यालयों में नियमन की व्यवस्था दुरुस्त करनी होगी। 
नीरज मानिकटाहला, यमुना नगर, हरियाणा

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