दिल्ली में गंदगी
दिल्ली हाईकोर्ट ने गंदगी को लेकर एमसीडी को फटकार लगाई है। वाकई यह समझ में नहीं आ रहा कि देश की राजधानी को कौन चला रहा है? राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के लिए इतने निचले स्तर की सियासत कर रहे हैं कि...
दिल्ली हाईकोर्ट ने गंदगी को लेकर एमसीडी को फटकार लगाई है। वाकई यह समझ में नहीं आ रहा कि देश की राजधानी को कौन चला रहा है? राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के लिए इतने निचले स्तर की सियासत कर रहे हैं कि दिल्ली का ध्यान रखने वाला कोई नहीं रह गया है। राजधानी में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है, पर कोई नेता इससे जनता को निजात दिलाता हुआ नहीं दिखता। उसे तो बस वोट चाहिए। मेट्रो जैसे सार्वजनिक परिवहन के किराये में बेतहाशा वृद्धि की वजह भी समझ में नहीं आ रही कि सरकार ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने वाहन सड़क पर लाने के लिए मजबूर कर रही है या जनता को सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल के लिए प्रेरित कर रही है? ऑड-ईवन फॉर्मूला से लेकर दिन-रात गाड़ियों से आने वाली कानफोड़ू शोर पर भी कोई नेता बात करने को तैयार नहीं है। क्या सभी नेताओं को मिल-बैठकर दिल्ली की साफ-सफाई के बारे में नहीं सोचना चाहिए?
मोहन सूर्यवंशी, नई दिल्ली
दिव्यांगों को मिले छूट
जीएसटी कौंसिल ने अपनी हालिया बैठक में दिव्यांगों के सहायक उपकरणों पर पांच से 18 प्रतिशत तक जीएसटी लागू करने का प्रस्ताव दिया है। इस प्रस्ताव के तहत बैसाखी, ट्राई साइकिल, ह्वील चेयर, कृत्रिम अंग, घूमने वाले सहायक उपकरण आदि पर पांच फीसदी जीएसटी लगेगी, जबकि ब्रेल पेपर, ब्रेल घड़ियां, श्रवण यंत्रों पर 12 प्रतिशत। ब्रेल टाइपराइटर और कार खरीदने वालों को अब 18 फीसदी जीएसटी चुकाना होगा। उल्लेखनीय है कि ये सभी उपकरण वर्तमान में सभी करों से मुक्त हैं। जाहिर है, जीएसटी लागू हो जाने से इन वस्तुओं की कीमत में कई गुना की वृद्धि हो जाएगी। इससे दिव्यांगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। इसलिए जीएसटी में दिव्यांगों के उपकरण को कर-मुक्त किया जाना जरूरी है।
अरुण कुमार सिंह, झारखंड
पाकिस्तान का बहाना
जैसे ही यह खुलासा हुआ कि काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक का दावा करने वाली प्रधानमंत्री की गेम चेंजर योजना ‘नोटबंदी’ दरअसल देश की अर्थव्यवस्था को गर्त में ले गई और गरीबों की कल्याण योजनाएं भी कल्याणकारी साबित नहीं हुईं, तो लोगों का ध्यान बंटाने के लिए पाकिस्तान का बहाना खोज लिया गया। अब पाकिस्तान पर गोलाबारी को सनसनी फैलाकर पेश किया जा रहा है। पर काठ की हांडी एक बार चढ़ गई, तो इसका मतलब यह नहीं कि उसे बार-बार चढ़ाया जाता रहेगा। इसी तरह, भले ही जीएसटी को गेमचेंजर बताया जा रहा हो, मगर अर्थशास्त्री इसे अर्थव्यवस्था को चौपट करने का एक ठोस कारक भी मान रहे हैं। उन्होंने तो सरकार से गुजारिश भी की है कि जीएसटी पर जल्दबाजी में कोई फैसला न लिया जाए। भारत का 80 फीसदी कारोबार हाटों और लघु-बाजारों में होता है, जो जीएसटी लागू होने से बर्बाद हो जाएंगे। क्या सरकार इन पहलुओं पर गंभीरता से सोचेगी?
एल पी श्रीवास्तव, मुज्जफरनगर
नशे में फंसती युवा पीढ़ी
नौजवान देश के भविष्य हैं। देश के विकास में उनका खासा योगदान रहा है। भविष्य के लिए भी उन पर बड़ी जिम्मेदारी है। मगर इन दिनों युवा वर्ग तेजी से नशे की गिरफ्त में फंस रहा है। देश में हर साल लगभग 60 हजार लोगों की मौत नशे के कारण होती है। कुछ तो अपनी मर्जी से नशा करते हैं, तो कई लोग शौकिया तौर पर ऐसा करते हैं। मगर ऐसा करते हुए वह यह भूल जाते हैं कि नशे से उनकी उम्र घट रही है। भारत में 15 करोड़ से अधिक व्यक्ति धूम्रपान करते हैं। 15 से 45 वर्ष के आयु-वर्ग के यह आंकड़ा 30 फीसदी है। उत्तराखंड के शहरी इलाकों में नशे की लत, खासकर उच्च-मध्यम वर्ग में ज्यादा है, जो महंगे पबों और होटलों में बेफिक्री का धुआं उड़ाते हैं। सरकार को अपने जन-जागरूकता अभियान में तेजी लानी चाहिए।
पूजा ऐठानी, देहरादून