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जरा याद करो कुर्बानी: कौन थे शहीद खुदीराम बोस के 6 साथी जो इतिहास में गुमनाम रह गए?

शहीद खुदीराम बोस इन छह क्रांतिकारियों के साथ ही रहते थे। देश की आजादी के लिए खुदीराम बोस अपने इन्हीं छह साथियों के साथ योजना बनाते थे। प्रो अशोक अंशुमन ने बताया कि यह छह क्रांतिकारी कहां के रहने वाले थे और इनके क्या नाम थे, इसका भी कुछ पता नहीं चला है।

जरा याद करो कुर्बानी: कौन थे शहीद खुदीराम बोस के 6 साथी जो इतिहास में गुमनाम रह गए?
Sudhir Kumar हिन्दुस्तान, मुजफ्फरपुरSun, 11 Aug 2024 08:19 AM
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अमर शहीद खुदीराम बोस से पहले ही अंग्रेजों ने उनके छह साथियों को गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के बाद अंग्रेजों ने उनको कहां गायब कर दिया, इसका आज तक पता नहीं चल सका। एलएस कॉलेज की स्मारिका वैशाली में इसका जिक्र है। हालांकि वे गुमनाम साथी कौन थे और उनका क्या नाम था, इसका जिक्र स्मारिका में भी नहीं है। एलएस कॉलेज से सेवानिवृत्त इतिहास के प्रोफेसर प्रो अशोक अंशुमन ने बताया कि वर्ष 1907 में क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल मानते हुए अंग्रेजों ने इन छह छात्रों को गिरफ्तार किया था। यह छात्र तब एलएस कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे और ड्यूक हॉस्टल में रहते थे। अंग्रेज अफसरों ने ड्यूक हॉस्टल में छापामारी कर इन क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया था लेकिन गिरफ्तारी के बाद यह छह छात्र कहां भेज दिए गए, इसका कुछ पता नहीं चला।

शहीद खुदीराम बोस इन छह क्रांतिकारियों के साथ ही रहते थे। देश की आजादी के लिए खुदीराम बोस अपने इन्हीं छह साथियों के साथ योजना बनाते थे। प्रो अशोक अंशुमन ने बताया कि यह छह क्रांतिकारी कहां के रहने वाले थे और इनके क्या नाम थे, इसका भी कुछ पता नहीं चला है। गिरफ्तारी के बाद अंग्रेजों ने इन छह क्रांतिकारियों के साथ क्या सलूक किया, यह गुमनामी के पन्नों में दर्ज है। यह छह क्रांतिकारी खुदीराम बोस के साथ ही हमेशा रहते थे।

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अंग्रेजों को थी आशंका

प्रो अशोक अंशुमन ने बताया कि अंग्रेजों को आशंका थी कि खुदीराम बोस अकेले क्रांतिकारी नहीं हैं, उनके साथ और लोग हैं। पुलिस को आशंका थी कि ड्यूक हॉस्टल क्रांतिकारियों का स्थल है, इसलिए यहां छापेमारी की और छह क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया।

जहां खुदीराम ने फेंका था बम, वह जगह नहीं हुई संरक्षित

शहीद खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद्र चाकी ने 30 अप्रैल 1908 को किंग्सफोर्ड की बग्गी समझ जिस यूरोपियन क्लब (अब मुजफ्फरपुर क्लब) गेट पर बम फेंका था, यह जगह वर्तमान में बदहाली झेल रहा है। यहां चिकेन शॉप और टेन्ट हाउस चलता है। जिला प्रशासन भी इसे संरक्षित करने में रुचि नहीं दिखा रहा है। इस बार तो इस जगह की साफ-सफाई तक नहीं कराई गई है। प्रशासन के इस रवैये से स्थानीय लोगों में रोष है। लोगों का कहना है कि जिस जगह पर युवा क्रांतिकारी ने अंग्रेजों से पंगा लिया, इसे स्मारक के रूप में विकसित करना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी इससे रू-ब-रू हो सके। बाल स्वतंत्रता सेनानी मधुसूदन झा ने बताया कि किग्सफोर्ड उस वक्त क्रूर जज के रूप में जाना जाता था। खासकर वह युवा क्रांतिकारियों को कठोर दंड सुनाता था। उसकी हत्या की योजना बंगाल में बनी। इसके बाद बंगाल के क्रांतिकारियों ने अपने बीच से प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस को उसकी हत्या के लिए तैयार किया। दोनों क्रांतिकारी 1908 में मुजफ्फरपुर पहुंचे। पुरानी धर्मशाला में ठहरकर किंग्सफोर्ड की रेकी की। फिर 30 अप्रैल 1908 को किंग्सफोर्ड पर उस समय बम फेंक दिया, जब वह बग्घी पर सवार होकर यूरोपियन क्लब से बाहर निकल रहा था। लेकिन जिस बग्घी पर बम फेंका गया, उसमें किंग्सफोर्ड नहीं बल्कि दो यूरोपियन महिलाएं थीं। दोनों इस हमले में मारी गईं।

‘अरे बच गया’ ...

मधुसूदन झा बताते हैं कि किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम मारने के बाद दोनों रातोंरात नंगे पांव ही 24 मील दूर वैनी (खुदीराम बोस पूसा रोड) स्टेशन पहुंच गए। यहां दोनों चाय पीने के लिए रुके थे। इस दौरान कुछ लोग चर्चा कर रहे थे कि किंग्सफोर्ड बच गया। इसपर अचानकर खुदीराम बोस के मुंह से निकल पड़ा, ‘अरे बच गया’। इतना सुनने के बाद वहां तैनात रेलवे कर्मचारी ने पुलिस को सूचना दे दी और खुदीराम बोस को अंग्रेजों ने पकड़ लिया। हालांकि प्रफुल्ल चंद्र चाकी मौके से भाग निकले थे, लेकिन अंग्रेज पुलिस ने उनका पीछा किया। मोकामा स्टेशन पर पुलिस ने उन्हें घेर लिया, तब वह खुद को गोली मारकर अपनी जान दे दी।

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