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आस्था: देव के विश्व विख्यात सूर्य मंदिर का त्रेतायुग में हुआ था निर्माण

बिहार के औरंगाबाद जिले के देव में विश्व विख्यात सूर्य मंदिर का निर्माण त्रेतायुग में राजा ऐल ने किया था। देव में बिहार के अलावा झारखंड, यूपी मध्य प्रदेश, दिल्ली से लोग यहां छठ करने आते हैं। यहां...

आस्था: देव के विश्व विख्यात सूर्य मंदिर का त्रेतायुग में हुआ था निर्माण
पटना हिन्दुस्तान टीमFri, 25 Oct 2019 10:53 AM
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बिहार के औरंगाबाद जिले के देव में विश्व विख्यात सूर्य मंदिर का निर्माण त्रेतायुग में राजा ऐल ने किया था। देव में बिहार के अलावा झारखंड, यूपी मध्य प्रदेश, दिल्ली से लोग यहां छठ करने आते हैं। यहां सूर्य मंदिर के गर्भ गृह में तीन देवताओं की मूर्तियां हैं, जिनके दर्शन यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु करते हैं। छठ के दौरान यहां पूजा करने का विशेष महत्व है।  

बताया जाता है कि राजा ऐल कुष्ठ रोग से पीडि़त थे। यहां वे पहुंचे और एक गड्ढे के जल से कुष्ठ वाली जगह को साफ किया। इससे उनका कुष्ठ रोग दूर हो गया। मुख्य पुजारी सच्चिदानंद पाठक ने बताया कि जो लोग कुष्ठ रोग से पीडि़त होते हैं, वे सूर्यकुण्ड तालाब में स्नान करते हैं। कुछ धार्मिक गतिविधियों का पालन करना पड़ता है। देव सूर्य मंदिर के गर्भ गृह में तीन देवताओं की मूर्तियां हैं जिनके दर्शन यहां पूजन के लिए पहुंचने वाले लोग करते हैं। इस दिन पूजन का विशेष महत्व होता है। उन्होंने कहा कि छठ पूजन के दौरान देव इलाके के लोग नमक का त्याग करते हैं जो यहां मान्यता से ही जुड़ा विषय है। विभिन्न गांवों में इस दिन मीठा भोजन बनता है। कहा कि यहां हर तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जिन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं होती है वे लोग मन्नत मांगते हैं।  

ऐतिहासिक है मंदिर

एक लाख 50 हजार 19 वर्ष पहले सूर्य मंदिर के निर्माण का आकलन शिलालेख के आधार पर होता है। यहां मंदिर के बाहर एक शिलापट्ट लगा है जिसमें कहा गया है कि 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग बीत जाने के बाद इला के पुत्र पुरूरवा ऐल ने कराया था। यहां ब्राह्म लिपी में इसकी जानकारी दी गई है।

पश्चिमाभिमुख है मंदिर

सूर्य मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिमाभिमुख है। कहा जाता है कि एक लुटेरे ने मंदिर को तोड़ने का प्रयास किया तो पुजारियों ने रात भर का समय मांगा था। रात में इसका प्रवेश द्वार दूसरी दिशा में मुड़ गया जिसके बाद इसे नहीं तोड़ा गया।

देव पहुंचने वाले छठ व्रतियों में मुंडन और मनौती से जुड़े लोगों की संख्या काफी होती है। एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष छठ में यहां दो लाख से अधिक बच्चों का मुंडन होता है। मन्नत माने हजारों लोग यहां व्रत करने आते हैं। मुंडन के लिए यहां सूर्य मंदिर समिति के द्वारा टेंडर निकाला जाता है। जो इसका टेंडर लेता है वह नाई के कई ग्रुप बनाकर इस कार्य को पूरा करता है। प्रत्येक मुंडन पर सौ से 500 रुपए तक की राशि खर्च हो जाती है। मुंडन का कार्य सूर्य मंदिर परिसर और सूर्य कुंड परिसर के समीप होता है। कई लोग यहां पुत्र प्राप्ति की कामना से भी आते हैं। मान्यता है कि देव में छठ व्रत करने के बाद मन्नतों के अनुरूप भगवान भास्कर पुत्र की सौगात देते हैं। कुष्ठ रोग के निवारण के लिए भी बड़ी संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि सूर्य कुंड में स्नान करने से कुष्ठ रोग खत्म हो जाता है। मुंडन, पुत्र प्राप्ति, कुष्ठ रोग निवारण आदि को लेकर लोग पहुंचते हैं।

कई जगहों पर बने गेट
देव आने वाले वाहनों को ड्रॉप गेट पर रोक दिया जाता है। देव बाजार में वाहनों के प्रवेश पर मनाही होती है। यह ड्रॉप गेट बहुआरा के समीप, महाराणा प्रताप कॉलेज के समीप, भवानीपुर में, सिंचाई कॉलोनी के समीप, मदनपुर रोड में बाला पोखर के समीप बनेगा।

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