क्या नीतीश और जेडीयू को फिर से लालू की आरजेडी के पास जाने देगी बीजेपी
बिहार में राजनीतिक भूचाल आ गया है। जेडीयू में हलचल मची है। सीएम नीतीश कुमार के अगले कदम को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं लेकिन एनडीए के बड़े घटक दल बीजेपी ने चुप्पी साध ली है।
बिहार में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की दरार साफ-साफ नज़र आ रही है। कहा जा रहा है कि गठबंधन टूट की कगार पर है। हालांकि अभी तक जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष लल्लन सिंह, प्रदेश अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा और पार्टी से इस्तीफा दे चुके आरसीपी सिंह के बयान तो आए हैं बीजेपी की ओर से कोई बयान नहीं है। बताया जा है पार्टी हाईकमान ने शाहनवाज हुसैन और रविशंकर प्रसाद जैसे कछ बड़े नेताओं को विचार-विमर्श के लिए दिल्ली बुलाया है तो वहीं पटना में नेताओं से तीन दिन तक गठबंधन पर कुछ न बोलने को कहा है।
जेडीयू की ओर से लगातार बयानबाजी के बावजूद बीजेपी जिस तरह एहतियात बरत रही है उससे यह सवाल बार-बार खड़ा हो रहा है कि क्या वो जेडीयू और नीतीश कुमार को एक बार फिर लालू यादव की आरजेडी में जाने देगी?
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उधर, मीडिया में लगातार कहा जा रहा है कि एक-दो दिन में जेडीयू बीजेपी से अलग होने का ऐलान कर सकती है। जेडीयू ने अपने सांसद-विधायकों को पटना तलब कर लिया है। बताया जा रहा है कि सीएम नीतीश कुमार ने रविवार को सोनिया गांधी से भी बात की। उधर, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राजद की ओर से शिवानंद तिवारी जैसे वरिष्ठ नेता ने कहा है कि यदि नीतीश कुमार एडीए से निकलते हैं तो उस स्थिति में हमारा दायित्व बनता है कि हम उनका समर्थन करें। हालांकि राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने स्पष्ट कर दिया है कि राजद ने नीतीश कुमार को कोई आमंत्रण नहीं दिया है।
न ही ऐसा कोई प्रस्ताव भेजा है। जगदानंद सिंह ने कहा कि फिलहाल गठबंधन के बारे में किसी से कोई बात नहीं हुई है। खबर है कि राजद ने अपना मीडिया पैनल भंग कर दिया है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और जगदानंद सिंह को ही इस बारे में मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत किया गया है। हालांकि राजद ने भी अपने विधायकों की एक बैठक बुलाई है। मंगलवार को राजद, जेडीयू और जीतनराम मांझी की हम के अलावा बिहार कांग्रेस की भी बैठक होने की सम्भावना है। जाहिर है नई परिस्थितियों का हर राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से आकलन करने में जुटा है।
उधर, बीजेपी भी 2024 के मिशन लोकसभा से पहले बिहार की सत्ता में कोई फेरबदल नहीं चाहती है, ऐसे संकेत लगातार उसके नेता दे रहे हैं। बताया जा रहा है कि बीजेपी और जेडीयू के बीच तनातनी की ताजा वजह आरसीपी सिंह हैं। जेडीयू अध्यक्ष लल्लन सिंह ने तो साफ तौर पर आरोप लगा दिया है कि आरसीपी सिंह बीजेपी की सहमति से केंद्रीय मंत्री बने थे। उधर, प्रदेश अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने क्षेत्रीय दलों के खत्म हो जाने के बारे में नड्डा के बयान की आलोचना की है। बताया जा रहा है जेेेडीयू, बीजेपी से राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन के लिए आयोजित बैठक में चिराग पासवान को बुलाए जाने से भी खफा है। जेडीयू मानती है कि चिराग की वजह से पिछले विधानसभा चुनाव में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा था।
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उन्होंने कहा कि बिहार में क्षेत्रीय दलों के साथ ही एनडीए की सरकार चल रही है। ऐसे में बयान देने से पहले सोचना चाहिए। इन सबके बावजूद बिहार के मौजूदा राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए बीजेपी शांत रुख अपनाए हुए है। उसने अपने नेताओं को तीन दिन तक गठबंधन या आरसीपी सिंह पर कुछ न बोलने की हिदायत दी है। पार्टी की नजर सीएम नीतीश कुमार पर है कि वह क्या निर्णण्य लेते हैं। उधर, अंदरखाने से यह दावा भी किया जा रहा है कि बीजेपी के बड़े नेता जेडीयू नेताओं के सम्पर्क में हैं और सब कुछ ठीक ठाक है।
विधानसभा में क्या हैं समीकरण
बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में से सबसे अधिक 79 सीटें लालू यादव की राजद के पास हैं। बीजेपी के पास 77 विधायक हैं जबकि जेडीयू के पास 45, कांग्रेस के पास 19, सीपीआई (एमएल) के पास 12 और जीतनराम मांझी की हम के पास चार विधायक हैं। इसके अलावा सीपीआई के पास दो, सीपीएम के पास दो और एक निर्दलीय विधायक है।
जाहिर है बीजेपी से अलग होने के बाद नीतीश कुमार को 77 विधायकों की जरूरत पड़ेगी। सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों के सपोर्ट की जरूरत होती है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बिहार में यदि जेडीयू और राजद फिर एक बार साथ आते हैं तो इस गठबंधन में कांग्रेस के 19 और सीपीआई (एमएल) के 12 विधायक भी शामिल हो जाएंगे और तब इस गठबंधन के पास बहुमत से कहीं ज्यादा 155 विधायक हो जाएंगे।
बताया जा रहा है कि बदली परिस्थितियों में जीतनराम मांझी भी अपने चार विधायकों के साथ भविष्य का फैसला ले सकते हैं जिससे जेडीयू-राजद गठबंधन को और मजबूती मिल सकती है। राजनीतिक जानकारों का कहना कि सीटों के इस गणित के बीच बीजेपी भरसक नहीं चाहेगी कि जेडीयू और नीतीश से उसका साथ छूटे और बिहार की सत्ता हाथ से फिसल जाए। इसी वजह बीजेपी पूरे प्रकरण में कुछ भी कहने से बच रही है और फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।