बिहार में चल रही सिपाही बहाली मामले में ट्रांसजेंडर कॉलम नहीं होने पर पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब-तलब किया है। मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ ने वीरा यादव की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए 22 दिसंबर को जवाब दायर करने निर्देश दिया है।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि सिपाही बहाली में ट्रांसजेंडर के लिए आवेदन का प्रावधान नहीं किया गया है। इस कारण वे आवेदन करने से वंचित हो गए हैं। वहीं, राज्य सरकार के अधिवक्ता अजय ने दलील दी कि चूंकि यह सरकार का नीतिगत मामला है, इसलिए सरकार को जवाब देने की मोहलत दी जाए।
बता दें कि राज्य में ट्रांसजेंडर की संख्या 40 हजार है। इनमें आठ प्रतिशत की उम्र 18-32 साल है। इनमें 46 फीसदी 12वीं पास हैं। इस हिसाब से 15 सौ सिपाही बहाली में भाग ले सकते हैं। केरल, तमिलनाडु, राजस्थान, छतीसगढ़ और ओडिशा में ट्रांसजेंडर को पुलिस बहाली में मौका दिया जा रहा है। खास बात यह है कि ट्रासजेंडर की शारीरिक दक्षता परीक्षा महिला कैटेगरी में ही ली जाती है। छत्तीसगढ़ में ट्रांसजेंडर को शारीरिक दक्षता परीक्षा पास करने के लिए विशेष प्रशिक्षण शिविर लगाया जाता है। वहां 2018 में ही ट्रांसजेंडर को मौका दिया जा चुका है। पृथिका यशिनी ट्रांसजेंडर होते हुए सब इंस्पेक्टर पद पर कार्यरत है। वहीं, राजस्थान में गंगा भवानी ट्रांसजेंडर है और वह सिपाही के पद पर कार्यरत है।
ट्रांसजेंडरों का कहना है कि बिहार में सबसे पहले ट्रांसजेंडर पहचान को अपनाया है, लेकिन सिपाही बहाली प्रक्रिया में भाग लेने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। राजधानी की ट्रांसजेंडर वीरा यादव ने सिपाही बहाली में ट्रांसजेंडर कॉलम शामिल करने की मांग को लेकर हाईकोर्ट को पत्र लिखा है। क्योंकि ट्रांसजेंडर एक्ट 2019 को केन्द्र सरकार ने संसद से पारित कर दिया है। इसको लेकर नीति निर्धारित कर दी गई है। फिर भी बिहार पुलिस चयन पर्षद इसका पालन नहीं कर रहा है। जबकि केन्द्र सरकार पारामिलिट्री फोर्सेस की बहाली में जगह दे दी है।