1857 में हुई थी फांसी, लेकिन बिहार के वारिस अली को अब मिला शहीद का दर्जा
बिहार के तिरहुत प्रमंडल से आने वाले वारिस अली को अंततः शहीद का दर्जा मिल गया है। 1857 में वारिस अली को फांसी दी गई थी, लेकिन शहीद का दर्जा नहीं मिला था। इंडियन काउंसिल फॉर हिस्टोरिकल रिसर्च...

बिहार के तिरहुत प्रमंडल से आने वाले वारिस अली को अंततः शहीद का दर्जा मिल गया है। 1857 में वारिस अली को फांसी दी गई थी, लेकिन शहीद का दर्जा नहीं मिला था। इंडियन काउंसिल फॉर हिस्टोरिकल रिसर्च (आईसीएचआर) के सहयोग से संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रकाशिक डिक्शनरी ऑफ मार्टर्स- इंडियाज फ्रीडम स्ट्रगल (1857-1947) में वारिस अली का नाम शामिल किया गया है।
वारिस अली मुजफ्फरपुर जिले के बरुराज थाना क्षेत्र में एक जमादार थे। 1857 के जून महीने में उन्हें विद्रोहियों को समर्थन देते हुए देशद्रोही पत्र लिखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। 7 जुलाई 1857 को वारिस अली को फांसी दे दी गई। दशकों तक उनके बलिदान से देश अपरिचित ही रहा और वारिस अली का नाम केवल सरकारी रिकॉर्ड तक ही सीमित रह गया। 2017 में वारिस अली और 27 अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को तिरहुत क्षेत्र से शहीद का दर्जा दिलाने का प्रयास किया गया था। नई लिस्ट प्रकाशित होने के बाद वारिस अली तिरहुत के पहले शहीद बन गए हैं। अभी तक क्रातिकारी खुदीराम बोस को तिरहुत का पहला शहीद माना जाता था, जिन्हें 1908 में फांसी दे दी गई थी।
डिक्शनरी ऑफ मार्टर्स के राज्य समन्वयक और एलएस कॉलेज मुजफ्फरपुर में इतिहास के प्रोफेसर डॉ अशोक अंशुमान ने कहा कि आखिरकार 162 वर्षों के बाद देश के स्वतंत्रता संग्राम में तिरहुत द्वारा किए गए योगदान और बलिदान को मान्यता दी गई है। डिक्शनरी ऑफ मार्टर्स के प्रकाशन ने तिरहुत के इतिहास को लगभग बदल दिया है। डॉ अशोक अंशुमान ने कहा कि तिरहुत के 27 स्वतंत्रता सेनानियों को युद्ध नायक का दर्जा दिया गया है। इन्हें स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों ने पोर्ट ब्लेयर भेज दिया था।