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परम्परा : 16 रुपये मन लगती है घी की बोली, खरीदने को होती है प्रतिस्पर्धा

घी महंगा हो चुका है। लेकिन, पावापुरी में 16 रुपये प्रति मन घी की बोली लगती है। एक मन में चालीस किलो होते हैं तो इसे इस प्रकार समझ सकते हैं। 16 रुपये में 40 किलोग्राम, यानी 40 पैसे प्रति किलोग्राम।...

परम्परा : 16 रुपये मन लगती है घी की बोली, खरीदने को होती है प्रतिस्पर्धा
पावापुरी (नालंदा) | अनिल उपाध्यायWed, 07 Nov 2018 11:50 AM
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घी महंगा हो चुका है। लेकिन, पावापुरी में 16 रुपये प्रति मन घी की बोली लगती है। एक मन में चालीस किलो होते हैं तो इसे इस प्रकार समझ सकते हैं। 16 रुपये में 40 किलोग्राम, यानी 40 पैसे प्रति किलोग्राम। जैन परंपरा में अभी भी इसका पालन किया जा रहा है। भगवान महावीर के निर्वाणोत्सव पर देश और विदेश के जैन धर्मावलंबियों की दिली इच्छा होती है कि वे भगवान महावीर के मंगल दिवस और आरती पर घी की ज्यादा से ज्यादा बोली लगाएं। यहां घी की बोली लगाने के लिए प्रतिस्पर्धा होती है। उसी प्रतिस्पर्धा में सैकड़ों मन घी की बोली लगाई जाती है। उसकी राशि जैन प्रबंधनों को सौंपी जाती है।

भगवान महावीर को निर्वाण दिवस के दिन लड्डू चढ़ाने की परंपरा है। एक किलो से लेकर सवा मन तक के लड्डू चढ़ाए जाते हैं। इसके लिए खास तौर पर कारीगर बिहारशरीफ व अन्य शहरों से पहुंचते हैं। जैन श्वेताम्बर और दिगंबर प्रबंधन की खास देखरेख में लड्डू का निर्माण किया जाता है। फिर उसे जैन श्रद्धालु अपने माथे पर लेकर निर्वाण स्थली अर्थात जलमंदिर तक लेकर जाते हैं। और, उसे अर्पित करते हैं।

दिवाली की रात हिलता है महावीर की चरण पादुका का छत्र!

निर्वाण भूमि में जैन श्रद्धालुओं की अच्छी खासी भीड़ यहां एक विशेष मान्यता के कारण जुटती है। मान्यता है कि भगवान महावीर की अंतिम संस्कार भूमि जलमंदिर, जहां पर अभी भगवान की चरण पादुका उनके दो शिष्यों गौतम स्वामी और सुधर्मा स्वामी के साथ अवस्थित है वहां भगवान महावीर की चरण पादुका का छत्र दिवाली की मध्य रात्रि को हिलता डुलता है। इस दृश्य को जो भी जैन श्रद्धालु देखते हैं उनका जीवन धन्य हो जाता है। इस दृश्य को ही देखने के लिए हजारों श्रद्धालु यहां रातभर टकटकी लगाये रहते हैं। 

40 पैसे प्रति किलोग्राम घी के लिए लगाई जाती है बोली

01 किलोग्राम से सवा मन तक के लड्डू चढ़ाए जाते हैं

भगवान महावीर को निर्वाण दिवस के दिन चढ़ाया जाता है लड्डू

लड्डू श्वेताम्बर और दिगंबर दोनों के प्रबंधनों की देखरेख में बनते हैं 

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