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सूर्य सप्तमी: गया में तीनों काल के हैं सूर्य, दूर-दूर तक फैली है महिमा

गयाधाम में भगवान विष्णुचरण के अलावा तीनों काल के भगवान सूर्य के मंदिर हैं। तीनों मंदिरों की महिमा मगध प्रमंडल के अलावा दूर तक फैली हुई है। सूबे में औरंगाबाद जिले देव के अलावा गया शहर में ही...

सूर्य सप्तमी: गया में तीनों काल के हैं सूर्य, दूर-दूर तक फैली है महिमा
सुजीत कुमार, गयाThu, 25 Jan 2018 12:39 PM
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गयाधाम में भगवान विष्णुचरण के अलावा तीनों काल के भगवान सूर्य के मंदिर हैं। तीनों मंदिरों की महिमा मगध प्रमंडल के अलावा दूर तक फैली हुई है। सूबे में औरंगाबाद जिले देव के अलावा गया शहर में ही प्रात:कालीन, मध्यकालीन और सायंकालीन भगवान सूर्य के मंदिर हैं। इन मंदिरों का निर्माण द्वापर युग में हुआ था। इसका वर्णन वायुपुराण में है। ऐसी मान्यता है कि इन मंदिरों में सूर्य की उपासना से अन्न-धन, स्वास्थ्य और पुत्र की प्राप्ति होती है। छठ व्रत पर सूर्य मंदिरों वाले फल्गु के इन घाटों पर व्रतियों और श्रद्धालु अपार भीड़ होती है। सालों भर दूर-दराज के श्रद्धालु अपनी मनोकामना लिए मंदिरों में पूजा-अर्चना को आते हैं।
मोक्षदायिनी के तट पर स्थित  हैं तीनों मंदिर 

मोक्षदायिनी फल्गु के तट पर तीनों काल के सूर्य मंदिर हैं। पितामहेश्वर घाट पर प्रात:कालीन उतरायण सूर्य भगवान ब्रह्म के रूप में मौजूद हैं। ब्राह्मणी घाट पर मध्याह्न सूर्य भगवान शंकर और देवघाट (सूर्यकुंड) में दक्षिणायन भगवान विष्णु के रूप में हैं। तीनों मंदिरों में छठ व्रत में भारी भीड़ होती है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए सूर्यकुंड के सूर्य मंदिर और उगत आदित्य को अर्घ्य देने के लिए पितामहेश्वर व ब्राह्मणी घाट पर भारी भीड़ होती है। सालों भर रविवार को इन मंदिरों में भीड़ होती है। वैशाख माह के हर रविवार को तो विशेष भीड़ जुटती है।
सूर्योपासना से कंचन काया और पुत्र की होती है प्राप्ति 

आचार्य लाल भूषण मिश्र का कहना है कि तीनों काल के अतिप्राचीन सूर्यमंदिरों के द्वापर युग में निर्माण व इसकी महत्ता का वर्णन वायुपुराण में वर्णित है। इन मंदिरों का निर्माण वेद व्यास ने कराया था। सूर्य सप्तमी के मौके पर ब्राह्मणी घाट पर भगवान सूर्य को सामूहिक अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य जयंती पर बुधवार को यहां होने वाले सूर्य सप्तमी महोत्सव एवं सूर्ययज्ञ में सामूहिक अर्घ्य दिया जाएगा। आचार्य नवीचंद्र मिश्र वैदिक ने कहा कि तीनों काल के सूर्य मंदिरों का वर्णन वायुपुराण के अलावा हिमाद्रि ग्रंथ (चर्तुवर्ग चिंतामणि ग्रंथ) में भी है। विष्णुनगरी गया में स्थित इन मंदिरों में आराधना से कंचन काया (स्वस्थ शरीर) और पुत्र की प्राप्ति होती है। 
 

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