अनुज प्रेम- प्यार में कहां चूक हुई कि रामचन्द्र छोड़ कर चला गया: रामविलास पासवान
हमलोगों के प्यार में कहां चूक हुई कि रामचन्द्र छोड़कर चला गया। उससे जुड़ी बातें याद करना नहीं चाहता हूं। लेकिन भूल भी नहीं पाता हूं। सबका दुलारा था। चिराग तो अब तक सदमे से उबर नहीं पाया है। लोजपा...
हमलोगों के प्यार में कहां चूक हुई कि रामचन्द्र छोड़कर चला गया। उससे जुड़ी बातें याद करना नहीं चाहता हूं। लेकिन भूल भी नहीं पाता हूं। सबका दुलारा था। चिराग तो अब तक सदमे से उबर नहीं पाया है।
लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने गुरुवार को अपने छोटे भाई व सांसद रामचन्द्र पासवान पर चर्चा शुरू की तो आंखों से आंसू रोकने की हर कोशिश बेकार थी। दिल में उमड़ती भावनाएं जुबान खुलने नहीं दे रही थी। फिर भी सिलसिला जारी रखा तो कई पॉज लेने पड़े।
पासवान ने कहा कि 11 जुलाई को संसद में रेल बजट पर जोरदार भाषण दिया। शाम को खबर मिली की रामचन्द्र को अस्पताल ले जाया जा रहा है, तब भी उसने मुझे वहां आने से मना कर दिया। फिर भी पहुंचा तो सबकुछ हंसते हुए झेल रहा था। दो दिन में सब ठीक हो गया था। लेकिन भनक ही नहीं लगी कि काल ने कब दस्तक दे दी। वह साये की तरह मेरे साथ रहता था। संसद में जहां भी बैठता उसकी निगाहें मुझे ही निहारते रहती थीं, तभी तो दो मिनट के लिए भी बाहर आता तो मेरे पीछे वह खड़ा रहता था। विदेश यात्रा में बराबर साथ रहता था। एक बार इलाज कराने के लिए लंदन गये तो उसे नहीं ले गये। तीन दिन तक खाना नहीं खाया।
रामचन्द्र का जन्म दस नवम्बर 1957 को हुआ था। आपातकाल के दौरान जब मैं भूमिगत था तो केवल उसे ही पता रहता था कि मै कहां हूं। एक बार मैं उसको भी बिना बताये एक मित्र के यहां चला गया। दो दिन बाद देखा कि वहां भी पहुंच गया। मैं भी चकित था कि उसे कैसे पता चला। मैं 1969 में विधायक बन गया तो मेरे साथ ही एमएलए फ्लैट में रहता था। पिताजी के रहते ही मैं और पारस बाबू (मंझले भाई पशुपति कुमार पारस) दोनों मंत्री हो गये थे। पिताजी की इच्छा थी कि रामचन्द्र भी विधायक बने। वह 1999 में पहली बार रोसड़ा से सांसद बना, लेकिन तब तक पिताजी नहीं थे।