राजनीतिक दलों व शूरमाओं को नहीं दिखती जहरीली आबोहवा
बीते साल जारी वायु प्रदूषण की वैश्विक रिपोर्ट में टॉप-30 शहरों में से 22 भारत के थे। इनमें पटना दुनिया का सातवां सबसे प्रदूषित शहर था। मतलब साफ है कि बिहार की आवोहवा में जहर घुला है। जल और वायु दोनों...
बीते साल जारी वायु प्रदूषण की वैश्विक रिपोर्ट में टॉप-30 शहरों में से 22 भारत के थे। इनमें पटना दुनिया का सातवां सबसे प्रदूषित शहर था। मतलब साफ है कि बिहार की आवोहवा में जहर घुला है। जल और वायु दोनों प्रदूषित हैं। सुप्रीम कोर्ट से लेकर एनजीटी तक सब इसे लेकर चिंतित हैं। मगर राजनैतिक दलों और उनके चुनावी शूरमाओं को इतना बड़ा मुद्दा नहीं दिखता। अगर दिखाई देता तो उनकी दलीय घोषणाओं और भाषणों में इसका जिक्र जरूर होता।
देश की सर्वोच्च पंचायत में 40 सदस्य बिहार से चुनकर जाते हैं। केंद्र की मौजूदा सहित अब तक की हर सरकार में राज्य का प्रतिनिधित्व भी ठीक-ठाक रहता है। संघ लोक सेवा आयोग के परीक्षा परिणाम गवाह हैं कि देश को सर्वश्रेष्ठ मेधा भी बिहार बहुतायत में मुहैया कराता रहा है। पर कैसी विडंबना है कि इनमें से किसी की भी प्राथमिकता में राज्य की आवोहवा की शुद्धता नहीं है। नतीजतन इस राज्य के बाशिंदों को सांस लेने के लिए न शुद्ध हवा मिल पा रही है और न ही पानी। इसकी पुष्टि इस बात से की जा सकती है कि देश में प्रदूषित शहरों की सूची में बिहार की राजधानी पटना, मुजफ्फरपुर व गया लगातार बने हुए हैं।
हर मिनट ऑक्सीजन खत्म कर रहे वाहन
सड़कों पर दौडऩे वाले वाहन हर मिनट ऑक्सीजन को खत्म करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक एक मिनट में 1135 लोगों को सांस लेने में जितनी ऑक्सीजन की जरूरत होती है, वह एक वाहन से नष्ट हो जाती है। बिहार में पंजीकृत वाहनों की संख्या करीब 55 लाख है। वाहनों से पटना सहित पूरे राज्य में बेतहाशा प्रदूषण बढ़ रहा है। इसकी रोकथाम के लिए 15 साल से पुराने वाहनों को बंद करने के आदेश कोर्ट ने दिए थे पर अब तक इसपर अमल नहीं हुआ। बेतहाशा धुंआ उगलने वाली पीले रंग की तमाम पुरानी बसें और टेंपो पटना सहित अन्य स्थानों पर धड़ल्ले से चल रहे हैं।
प्रदूषण ने किया बिहार को बीमार
प्रदूषण ने लोगों को विभिन्न प्रकार की बीमारियां दी है। चिकित्सकों के मुताबिक दमा, मानसिक, श्वास व हृदय संबंधी बीमारियां, आंतों का कैंसर आदि फैल रहा है।
लगातार गिर रहा जलस्तर
राज्य के 20 से अधिक जिलों के जलस्तर में गिरावट आ रही है। पहले चरण के चुनाव में जमुई और नवादा के जिन बूथों पर बहिष्कार की बात उठी, वहां पानी की किल्लत भी एक मुद्दा था।
माप की व्यवस्था नहीं
दरअसल तीन ही शहर इस इंडैक्स में इसलिए दिखते हैं कि बाकी शहरों में प्रदूषण की माप की व्यवस्था ही नहीं है। महज एडवाइजरी जारी करने तक सीमित राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आज तक प्रदूषण घटाना तो दूर, बाकी शहरों में मापने की व्यवस्था नहीं कर पाया है।
‘वायु व जल प्रदूषण पटना सहित बिहार के शहरों में यह समस्या गंभीर होती जा रही है। अधिक जनसंख्या घनत्व के अलावा सड़क व दूसरे निर्माण कार्यों के चलते डस्ट पार्टिकल्स बढ़ गए हैं। पेट्रोलियम पदार्थों से भी दिक्कत बढ़ी है।’ -डॉ.शारदेंदु, पर्यावरणविद्, कोआर्डिनेटर बायो टेक्नालॉजी विभाग, साइंस कॉलेज, पटना
अन्य मुख्य कारक
बीते सालों में तेजी से हुए निर्माण कार्यों के चलते धूलकणों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई।
घनी आबादी भी एक कारण है। राज्य का जनसंख्या घनत्व बाकी राज्यों की तुलना में तीन गुना से अधिक है।
अवैध बालू खनन राज्य में बड़े पैमाने पर होते हंै। इस वजह से जल प्रदूषण बढ़ रहा है।