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एक-दो लीटर शराब पकड़कर पुलिस खुद को शेर समझती है, जब पटना हाई कोर्ट ने लगाई फटकार

पटना हाई कोर्ट ने भोजपुर पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि एक-दो लीटर शराब पकड़कर दारोगा और हवलदार खुद को शेर समझते हैं। जबकि दूसरे क्राइम पर कोई ध्यान नहीं है।

एक-दो लीटर शराब पकड़कर पुलिस खुद को शेर समझती है, जब पटना हाई कोर्ट ने लगाई फटकार
Jayesh Jetawatहिन्दुस्तान,पटनाSat, 27 Jul 2024 02:46 PM
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पटना हाई कोर्ट ने 11 माह से लापता नाबालिग बच्ची का पता नहीं लगाने पर बिहार की भोजपुर जिला पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने भरी अदालत में कहा कि पुलिस एक-दो लीटर शराब पकड़कर अपने आप को शेर समझती है। मगर शराबबंदी कानून के तहत टैंकर और बड़े-बड़े सिंडिकेट को क्यों नहीं पकड़ पाती। जस्टिस सत्यव्रत वर्मा की एकलपीठ ने शुक्रवार को सियाराम पासवान की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट में भोजपुर एसपी को फटकार लगते हुए पुलिस की कार्यशैली पर न सिर्फ हैरानी जताई, बल्कि उसके कामकाज पर नाराजगी भी जाहिर की। 

नवंबर 2023 से गायब नाबालिग बच्ची के पिता ने जिस लड़के को इस अपहरण मामले का आरोपी बनाया था, आवेदक उसके पिता हैं। कोर्ट ने भोजपुर के एसपी से जब पूछा कि लड़की की बरामदगी के लिए पिछले 11 महीने से क्या कदम उठाए गए। एसपी संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। उनका कहना था कि पिछले माह ही उनका तबादला भोजपुर हुआ है। एसपी ने बताया कि बच्ची के मोबाइल लोकेशन और उसके सोशल साइट अकाउंट को खंगाला गया है। इस पर कोर्ट ने कहा कि यह कदम आप के आने के बाद उठाया गया। इससे पहले पुलिस क्या कर रही थी। महिला आईओ भी कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे पाई।

कोर्ट ने एसपी से जानना चाहा कि ऐसे दक्षता वाले पुलिस अधिकारी से कैसे क्राइम कंट्रोल होगा। दारोगा और हवलदार केवल शराब पकड़ने में अपनी दक्षता दिखाते हैं। नाबालिगों का अपहरण, महिलाओं के गले से सोने की चेन छीनने जैसे अपराध लगातार हो रहे हैं। उसपर लगाम लगाने के लिए कड़ी कार्रवाई नहीं हो रही है। कोर्ट ने कहा कि शराबबंदी मामलों में दर्ज प्राथमिकी को पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है कि किसी हिस्ट्रीशीटर या दुर्दांत अपराधी को पकड़ लिया गया हो। जब भोजपुर एसपी से नाबालिग को बरामद करने के बारे में पूछा तो उन्होंने एक माह के भीतर बच्ची को बरामद कर लेने का आश्वासन दिया।

अधिकारी पदस्थापित ही नहीं था तो फिर उसे कैसे दंड दिया : कोर्ट
पटना हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के अजीबोगरीब आदेश पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि जब अधिकारी वहां पदस्थापित ही नहीं था तो फिर उसे कैसे दंड दे दिया गया। न्यायमूर्ति विवेक चौधरी के एकलपीठ ने आईएएस के लिए अनुशंसित अधिकारी तारा नंद महतो वियोगी की ओर से दायर रिट याचिका पर सुनवाई के बाद विभागीय दंड के आदेश को निरस्त कर दिया। मामला भभुआ के महिला शेल्टर होम में 2013 से 31 अक्टूबर, 2017 के बीच हुए यौन शोषण से संबंधित है। आवेदक भभुआ में वरीय उपसमाहर्ता थे। उनके जवाब पर विचार किए बिना उन्हें दंड दे दिया गया। कोर्ट ने विभागीय कार्रवाई को कानूनन गलत करार देते हुए दंड को निरस्त कर दिया।