बिहार के सरकारी स्कूलों में बच्चों की सिर्फ 20% हाजिरी, बुनियादी ढांचा भी नहीं, सर्वे में चौंकाने वाला खुलासा
बिहार में सरकारी स्कूलों का हाल क्या हैं? इसका सच एक सर्वे में सामने आया है। जिसमें दावा किया गया है कि सरकारी स्कूलों में सिर्फ 20 फीसदी बच्चे ही आते हैं। सर्वे जन जागरण शक्ति संगठन ने किया है।
बिहार में सरकारी स्कूलों पर किए गए एक सर्वे में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। जिसमें दावा किया गया है कि सरकारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बेहद कम रहती है। सर्वेक्षण के दिन बमुश्किल 20% छात्र उपस्थित थे। शिक्षक नियमित रूप से स्कूल रजिस्टरों में उपस्थिति के आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता जीन ड्रेज़ ने कहा कि यह जानकर दुख होता है कि सरकारी स्कूलों में नामांकित बच्चों में से बमुश्किल 20 फीसदी बच्चे प्राथमिक और उच्च प्राथमिक कक्षाओं में जाते हैं। एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज (ANSISS)में भारत में शिक्षा की स्थिति पर सर्वेक्षण 'कहां हैं बच्चे' जारी करने के बाद ये टिप्पणी की। ये सर्वेक्षण एक गैर सरकारी संगठन जन जागरण शक्ति संगठन (जेजेएसएस) द्वारा आयोजित किया गया था
उन्होंने कहा कि सरकार को आरटीई अधिनियम के अनुसार, छात्रों को कम से कम चार घंटे पढ़ाना सुनिश्चित करना चाहिए, किताबों के लिए नकद राशि और ड्रेस योजना को बंद करना चाहिए और छात्रों को कक्षाओं में वापस लाने के लिए मिड डे मील में स्वाद और पोषण जोड़ना चाहिए। ड्रेज़ ने कहा निजी कोचिंग कक्षाओं पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। और सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को केवल आरटीई अधिनियम के तहत ही काम करना चाहिए।
सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि प्राथमिक कक्षाओं में नामांकित केवल 23% बच्चे सर्वेक्षण के समय कक्षाओं में उपस्थित थे। जबकि लगभग 20% छात्र उच्च प्राथमिक कक्षा में उपस्थित थे। सर्वेक्षण रिपोर्ट में दावा किया गया है, शिक्षक नियमित रूप से छात्रों की उपस्थिति बढ़ाते हैं, फिर भी पंजीकृत उपस्थिति केवल 40-44% है। सर्वेक्षण रिपोर्ट में दावा किया गया है कि स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात आरटीई अधिनियम प्रावधानों की सीमा से कम है।
जेजेएसएस पदाधिकारियों ने कहा कि यह रिपोर्ट कटिहार और अररिया के लगभग 81 स्कूलों के दौरे के आधार पर तैयार की गई है, जो कमोबेश पूरे बिहार के परिदृश्य को दर्शाती है। यह सर्वेक्षण इस साल जनवरी और फरवरी महीने के दौरान आयोजित किया गया था। ड्रेज़ ने दावा किया कि पाठ्यपुस्तकों का न होना स्कूलों में छात्रों की गैर-उपस्थिति का प्रमुख कारण हो सकता है। जैसा कि सर्वेक्षण रिपोर्ट में बताया गया है। किताबें और ड्रेस खरीदने के लिए (डीबीटी) की प्रथा को बंद किया जाना चाहिए और छात्रों को कैश के बजाय किताबें और ड्रेस प्रदान की जानी चाहिए। मिड डे मील में हफ्ते में एक बार की बजाय रोजाना अंडे देने चाहिए।
एएनएसआईएसएस के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर ने कहा कि नकदी किताबों का विकल्प नहीं हो सकती। दिवाकर ने दावा किया, "सरकार द्वारा नियुक्त एजेंसियां समय पर गुणवत्तापूर्ण किताबें उपलब्ध नहीं करा रही थीं और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। क्योंकि वे सत्तारूढ़ दलों से अच्छी तरह जुड़े हुए हैं। सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश स्कूलों में छात्रों के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। सर्वेक्षण में शामिल लगभग 90% स्कूलों में उचित सीमा, खेल का मैदान या पुस्तकालय नहीं था। 5000 स्कूलों में उचित भवन नहीं है।
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