बिहार में अब 45 लाख टन धान की होगी खरीद, नीतीश सरकार के अनुरोध पर केन्द्र ने बढ़ाया लक्ष्य

केन्द्र सरकार ने राज्य में धान खरीद का लक्ष्य बढ़ा दिया है। सरकार ने पहले से तय तीस लाख टन के लक्ष्य को धान की जगह चावल में बदल दिया। यानी अब तीस लाख टन चावल की सरकारी खरीद होगी। इसके लिए राज्य सरकार...

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बिहार में अब 45 लाख टन धान की होगी खरीद, नीतीश सरकार के अनुरोध पर केन्द्र ने बढ़ाया लक्ष्य
Malay Ojha पटना, हिन्दुस्तान टीम
Sat, 5 Dec 2020 12:49 PM

केन्द्र सरकार ने राज्य में धान खरीद का लक्ष्य बढ़ा दिया है। सरकार ने पहले से तय तीस लाख टन के लक्ष्य को धान की जगह चावल में बदल दिया। यानी अब तीस लाख टन चावल की सरकारी खरीद होगी। इसके लिए राज्य सरकार को लगभग 45 लाख टन धान की खरीद करनी होगी। राज्य में धान खरीद का अब तक यह सबसे बड़ा लक्ष्य है। 

राज्य सराकर ने इस वर्ष धान खरीद का लक्ष्य बढ़ाने के लिए केन्द्र से अनुरोध किया था। खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री बिजेन्द्र यादव ने इसके लिए केन्द्र सरकार को पत्र लिखा था। इसी आलोक में केन्द्र ने यह फैसला लिया है, लेकिन केन्द्र ने गुणवत्ता से समझौता नहीं करने की शर्त भी लगा दी है। साथ ही राज्य सरकार को सलाह दी है कि इसके लिए पर्याप्त संख्या में क्वालिटी कंट्रोल से जुड़े अधिकारियों को लगाया जाए। 

विशेषज्ञ और प्रशिक्षित लोगों की निगरानी में धान खरीदने का आग्रह सरकार ने किया है। धान खरीद का लक्ष्य तो बढ़ गया, लेकिन शेष प्रावधानों में कोई बदलाव नहीं किया गया। अभियान 31 मार्च तक ही चलेगा। रैयत किसान दो सौ और गैर रैयत 7र्5 ंक्वटल धान बेच सकेंगे। खरीद में लगे व्यापारमंडल व पैक्सों को हर हाल में चावल मिल से जोड़ा जाएगा। अगर किसी जिले में धान की खरीद की मात्रा की क्षमता भर चावल मिल नहीं होगा तो वहां के पैक्सों या व्यापारमंडलों को पड़ोसी जिले की मिलों से जोड़ा जाएगा। मिलों को पहले चावल देना होगा उसके बाद धान पैक्स देंगे। चावल लेने की अंतिम तारीख 31 जुलाई होगी। 

लक्ष्य बढ़ने से बाजार भाव पर पड़ेगा असर 
राज्य में धान खरीद का लक्ष्य कभी प्राप्त नहीं हुआ है। अलबत्ता सरकार कभी लक्ष्य के करीब भी नहीं पहुंच सकी। लेकिन लक्ष्य बढ़ाने से क्रय एजेन्सियों पर एक मानसिक दबाव होता है। साथ ही इसका असर बाजार भाव पर भी पड़ता है। इस साल भी अभी अभियान ने गति नहीं पकड़ा है। अभी नौ जिलों में ही खरीद शुरू हो पाई है। गत वर्ष तीस लाख टन की जगह बीस लाख टन ही खरीद हुई, वह भी तब संभव हुआ जब एक महीना इसके लिए समय बढ़ाया गया। 

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