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मनरेगा मजदूरी कम होने से नहीं रुकता पलायन

राज्य से मजदूरों का पलायन और उनकी मजदूरी राजनीतिक दलों के लिए प्रमुख मुद्दा रहा है। खासकर वाम दल इसे प्रमुखता से उठाते रहे हैं। इनका मानना है कि अन्य राज्यों के मुकाबले बिहार में मजदूरी कम मिलने से...

मनरेगा मजदूरी कम होने से नहीं रुकता पलायन
पटना | विश्वपतिFri, 03 May 2019 03:03 PM
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राज्य से मजदूरों का पलायन और उनकी मजदूरी राजनीतिक दलों के लिए प्रमुख मुद्दा रहा है। खासकर वाम दल इसे प्रमुखता से उठाते रहे हैं। इनका मानना है कि अन्य राज्यों के मुकाबले बिहार में मजदूरी कम मिलने से आम मजदूर विशेषकर खेत मजदूरों का पलायन कभी थमता नहीं है। विभिन्न सरकारों ने इस अंतर को पाटने के लिए कुछ नहीं किया। मनरेगा जैसे महत्वाकांक्षी सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में भी मजदूरी में कमी आड़े आ जाती है। 

राज्य में मनरेगा मजदूरों को मात्र 177 रुपए दिहाड़ी मिलती है। दूसरी ओर राज्य सरकार ने अकुशल मजदूरों के लिए 268 रुपए रोजाना की दर तय कर रखी है। मजदूरी की दर में यह अंतर उन्हें पलायन को मजबूर कर देता है। राज्य के सभी वाम दल व उनसे संबद्ध श्रमिक संगठन मजदूरी के अंतर को पाटने की कोशिश में लगे हैं। उनका मानना है कि मजदूरी में बड़ा अंतर मजदूरों को दिल्ली, मुंबई से लेकर हरियाणा, कोलकाता आदि दूसरे राज्यों में जाने को मजबूर करता है।

मजदूरी के सवाल को वाम दलों ने अपने घोषणा पत्रों में भी उठाया है। सरकार से मांग की है कि मनरेगा मजदूरी भी कम से कम राज्यों की न्यूनतम मजदूरी के समकक्ष होनी चाहिए। उधर, मनरेगा मजदूरी देने में ही विभिन्न राज्यों की दर में अंतर है। अभी सबसे अधिक मनरेगा मजदूरी हरियाणा में है। यहां 277 रुपए रोजाना मिलते हैं। इसी तरह केरल में 265, निकोबार में 249 रुपए है। हरियाणा में निजी खेतों में सामान्य मजदूरी भी 500 रुपए से अधिक है। नतीजतन पंजाब, हरियाणा, दिल्ली जाने की होड़ मची रहती है। बिहार में सरकार ने अर्द्धकुशल मजदूरों को 279 और कुशल मजदूरों के लिए 340 रुपए निर्धारित कर रखा है पर उसका धरातल पर कार्यान्वयन नहीं होता है।

मजदूरी दर में अंतर रहने के कारण ग्रामीण खुद काम मांगने नहीं जाते हैं। बिहार में 167.1 लाख जॉब कार्ड बनाए गए हैं पर मात्र 44.56 लाख जॉब कार्ड ही सक्रिय हैं। इसमें बमुश्किल 10 फीसदी को 100 दिनों का रोजगार मिलता है। जिलों में बहुधा इनको समय पर मजदूरी तक नहीं मिल पाती। इससे मनरेगा मजदूरी को पाने की कोई दिलचस्पी नहीं है। वाम दल मनरेगा में मात्र 100 दिनों के काम की सीमा भी हटाना चाहते हैं, ताकि गांवों में बचे-खुचे लोगों को भी सात-आठ महीने रोजगार मिल सके।  

क्या कहते हैं वाम नेता

मजदूरी के सवालों और चुनाव सुधार के लिए माकपा शीघ्र संघर्ष तेज करेगी। सरकार को न्यूनतम वेतन कानून को प्रभावी ढंग से लागू करना होगा तभी पलायन रोकने की परिकल्पना संभव है। 
- अवधेश कुमार, राज्य सचिव, माकपा

मनरेगा समेत अन्य सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में लगे मजदूरों को कम पैसा मिल रहा है। मजदूरों के पास न खेत हैं और न काम। रोजगार के लिए लोग बाहर जाएंगे ही। भाकपा-माले उनके सवाल पर आंदोलन और तेज करेगा।
- कुणाल, राज्य सचिव, भाकपा-माले 

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