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रोजगार, मजदूरी और मजबूरी: स्पेशल ट्रेन से बिहार लौटे प्रवासी श्रमिक लग्जरी बस में हरियाणा वापस

कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन में नौकरी जाने के बाद मजदूर श्रमिक स्पेशल ट्रेन से अपने घरों को वापस आने को मजबूर हुए। अब वहीं श्रमिक रोजगार के लिए लग्जरी बसों से वापस...

रोजगार, मजदूरी और मजबूरी: स्पेशल ट्रेन से बिहार लौटे प्रवासी श्रमिक लग्जरी बस में हरियाणा वापस
हिन्दुस्तान टाइम्स,पूर्णियाSat, 06 Jun 2020 08:08 PM
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कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन में नौकरी जाने के बाद मजदूर श्रमिक स्पेशल ट्रेन से अपने घरों को वापस आने को मजबूर हुए। अब वहीं श्रमिक रोजगार के लिए लग्जरी बसों से वापस लौट रहे हैं। बिहार के पूर्णिया जिले में कुछ दिन पहले ही प्रवासी मजदूर स्पेशल ट्रेन से अपने गृह नगर लौटे थे। क्वारंटाइन का समय पूरा करने के बाद वे फिर काम के लिए अन्य प्रदेशों का रुख करने लगे हैं।

पूर्णिया के रहने वाले सयीद और साजिद शुक्रवार को लग्जरी बस में सवार होकर हरियाणा के लिए रवाना हो गए। उनका कहना था कि इस महामारी के दौर में हम कोई रोजगार का मौका नहीं छोड़ना चाहते। दोनों हरियाणा के एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करते हैं। उन्होंने बताया कि करीब एक महीना पहले हम यहां लौटे थे। उसके बाद से ही हमें वापस आने के लिए कॉल आने लगा।

एडवांस में मिला पैसा

सयीद और साजिद की तरह ही मुजफ्फर और दिलशाद भी पूर्णिया के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि बस पर चढ़ने के पहले ही हमारे मालिक ने 20 से 30 हजार रुपए एडवांस में दे दिए। उनका कहना था कि कंपनी वालों ने भरोसा दिया है कि वे पहले के मुकाबले उसी काम के लिए एक से डेढ़ गुना ज्यादा पैसा देंगे। पहले इन्हें रोज 500 से 700 रुपए बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के काम के लिए मिलते थे।

'सरकार यहां रोजगार मुहैया नहीं करा पाएगी'

पूर्णिया के अमौर ब्लॉक के रहने वाले मोहम्मद इजहरुल (35 वर्ष) चंडीगढ़ से श्रमिक स्पेशल ट्रेन से लौटे थे। उन्होंने बताया कि मैंने अपना क्वारंटाइन पीरियड पूरा कर लिया है। मुझे नहीं लगता कि यहां कि सरकार हमारे लिए रोजगार मुहैया करा पाएगी। पूर्णिया से अभी तक 100 से ज्यादा श्रमिक हरियाणा लौट चुके हैं। उनके लिए बड़े किसान और व्यापारियों ने लग्जरी बसों को यहां पर भेजा था।

पूर्णिया के जिला अधिकारी (डीएम) राहुल कुमार कहते हैं, 'हम प्रवासी श्रमिकों के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन कर रहे हैं। हम उनसे यहीं रहने के लिए भी कह रहे हैं लेकिन अगर वह जाना चाहते हैं तो हम रोक नहीं सकते। ज्यादातर फैक्ट्रियों में काम करने वाले स्थायी कर्मचारी हैं।'

बिचौलियों की भूमिका हुई खत्म

इसीबीच, प्रवासी श्रमिकों का कहना है कि वे नौकरी के लिए कंपनियों से सीधे संपर्क में हैं। इसमें बियौलियों के लिए कोई स्थान ही नहीं है। नितेंद्र पंचायत के मोहम्मद परवेज कहते हैं कि पहले कॉन्ट्रैक्टर हमें नौकरी देने के लिए संपर्क करते थे और कमीशन लेते थे। ऐसे में हमारी तनख्वाह कम हो जाती थी, लेकिन अब सबकुछ बदल गया है। नितेंद्र पंचायत के ही मोहम्मद तारीक कहते हैं कि पहले बिचौलियों एक नौकरी के लिए 200 से 300 रुपए तक लेते थे, लेकिन अब पूरी की पूरी कमाई हमारी होगी।

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